@ भोपाल मध्यप्रदेश
राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने आजादी के शताब्दी वर्ष 2047 में देश को सिकल सेल रोग मुक्त बनाने का आहवान किया है। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए जरूरी है कि रोग के संबंध में जन-जागरण, स्क्रीनिंग और जेनेटिक कॉउंसलिंग के कार्य सेवा-भावना और संवेदनशीलता के साथ किये जाये। उन्होंने जनजाति समुदाय का आहवान किया कि वह वैवाहिक संबंध जेनेटिक कार्ड के मिलान के बाद ही करें। सिकल सेल वाहक आपस में विवाह नहीं करेंगे, तभी लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
राज्यपाल पटेल आज राष्ट्रीय पर्यावरणीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान भोपाल में “भारत में सिकल सेल रोग’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान जबलपुर द्वारा किया गया। कार्यक्रम में संस्थान द्वारा निर्मित सिकल सेल एनीमिया उपचार एवं फॉलोअप पुस्तिका का लोकार्पण किया गया।
राज्यपाल ने कहा कि रोग उन्मूलन के प्रयास की शुरूआत राजभवन के 55 कर्मचारी की स्क्रीनिंग से हुई, इसमें 12 वाहक और 2 पीड़ित मिले थे। उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में रोग उन्मूलन प्रयासों में अन्य चिकित्सा पद्धतियों के उपयोग के परीक्षण और प्रमाणीकरण के संबंध में भी विचार किया जाए। आँगनवाड़ी, स्कूल, कॉलेज में सिकल सेल रोग का चिन्हांकन किया जाये। गाँव-गाँव जाकर जन-जागरण के कार्य किए जाएँ। जनजातीय समुदाय को रोग के लक्षणों के संबंध में सूचित और शिक्षित किया जाए। उन्होंने कहा कि रोग उन्मूलन चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसे सबके साथ और प्रयासों से करने पर ही सफलता मिलेगी।
केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि राज्यपाल पटेल की अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसका राज्यपाल बखूबी निर्वाह कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनजाति क्षेत्रों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में अनेक चुनौतियाँ हैं, जो स्वस्थ समाज के संकल्प को साकार करने का अवसर हैं। उन्होंने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र की कमियों का आकलन कर कार्य किया जाना जरूरी है। स्वास्थ्य और शिक्षा में मूलभूत सुविधाओं की कमी और जन-जागृति का अभाव बहुत बड़ी चुनौती है।
प्रदेश के लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. प्रभुराम चौधरी ने प्रदेश में रोग उन्मूलन के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि रोग की स्क्रीनिंग, प्रबंधन, उपचार कॉउंसलिंग एवं प्रशिक्षण के सभी आयामों पर राज्य में तेजी के साथ कार्य हो रहा है। नवजात शिशुओं की 72 घंटे के भीतर होने वाली जाँच की सुविधा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उपलब्ध है। पोर्टल से सिकल सेल वाहक और पीड़ित की प्रभावी ट्रेकिंग की जा रही है।
अपर सचिव केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय आर. जया ने कहा कि रोग के उन्मूलन के लिए एकीकृत और जन-सहभागिता के साथ प्रयास आवश्यक है। रोगी और वाहक की दैनिक दिनचर्या, नवजात शिशु की देखभाल और रोग के लक्षणों आदि के संबंध में जनजातीय भाषाओं में कॉउंसलिंग जरूरी है। उन्होंने रोग उन्मूलन के प्रभावी प्रयासों में डेटा मैनेजमेंट पर विशेष बल देने की जरूरत बताई।
जनजातीय कार्य मंत्रालय की सलाहकार सु विनीता वास्तव ने देश में सिकल सेल रोग की व्यापकता के संबंध में जानकारी दी। राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अपरूप दास ने संस्थान की संरचना, गतिविधियों का विवरण दिया। संगोष्ठी की संकल्पना पर प्रकाश डाला। स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय पर्यावरणीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. राजनारायण तिवारी ने दिया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की प्रबंध संचालक प्रियंका दास ने आभार माना।जनजाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष दीपक खांडेकर, राज्यपाल के प्रमुख सचिव डी.पी. आहूजा, चिकित्सा विशेषज्ञ, सिकल सेल रोगी और छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे।