आया रंगों का त्यौहार, पिचकारी बरसा रही है प्यार

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कमल उनियाल पौडी गढवाल उत्तराखंड 

होली का त्यौहार हमारी संस्कृति उत्साह आस्था के साथ मनाया जाता है। रंगो का यह पावन पर्व सभी के जीवन खुशियो से भर देता है। पर्वतीय अंचलो मे होली बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। होली के गीत पारम्परिक लोकगीतो की एक प्रसिद्ध विधा है।मत मारो मोहन लाला पिचकारी मत, काहे को तेरो रंग बनो है।

जल कैसे भरुं यमुना गहरी जल, उँचे भरु राम जी देखे।हर फूलों से मथुरा छाई हर, पूरब झरोको मै विष्णु जी बैठे।होली खेले रघुवीरा अवध में।

जैसे पारम्परिक गीत गाते हुये होली के हुल्यार गाँव गाँव जाते हैं तो लगता है हर होल्यार मे कृष्ण लीला नजर आती है। मिलन के इस अनोखे संगम में होल्यिरो को चाय पकोडे मिष्टान तथा पारितोषिक देकर गाँववाले सतकार से उल्लासित हो जाते हैं। और देबी देबताओ के होली गीत गाकर होली के हुल्यार सबका मन
मोह लेते हैं।

मार्च का माह आते होली के मिलन तथा होली के गीतो की बयार बहने लगती है। होली के हुल्यार संजय डोबरियाल, प्रदीप रावत रिषभ नेगी श्यामल उनियाल सुरेश रावत ने कहा होली हमारा मिलन का त्यौहार है। जिसका हमे साल भर से इन्तजार रहता है जिसमे मन में प्रेम का रसवादन से ढोलक झाल मंजीरा की थाप और होली के गीतो से पुरानी रंजीश को भूलकर अबीर गुलाल लगाकर हमेशा के लिए एक हो जाते है।

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