अरुलमिगु अरुणाचलेश्वर मन्दिर, तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडू। भाग : ४६१
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा, भारत के धार्मिक स्थल : नानक प्याऊ गुरुद्वारा साहिब, GT करनाल रोड़, दिल्ली। यदि आपसे उक्त लेख छूट अथवा रह गया हो तो आप कृप्या करके प्रजाटूडे की वेबसाइट पर जाकर www.prajatoday.com पर जाकर धर्मसाहित्य पृष्ठ पर जा कर पढ़ सकते हैं:
अरुलमिगु अरुणाचलेश्वर मन्दिर, तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडू। भाग : ४६१
भगवान शिव शंकर का श्री अरुणाचलेश्वर शिव मन्दिर। शिव-शंभु के भक्तों को हम इस बार दर्शन करा रहे हैं श्री अरुणाचलेश्वर मन्दिर के। यह सदियों पुराना मन्दिर एक विशालकाय पर्वत पर स्थापित है, जो तिरुअन्नामलाई नामक कस्बे में स्थित है। लाखों श्रद्धालु यहां पर मुक्ति पाने के लिए विशेष अवसरों पर एकत्रित होते हैं।
पूर्णमाशी के समय दो से तीन लाख की तादाद में श्रद्धालु चौदह किलोमीटर तक नंगे पांव चलकर पवित्र पर्वत- गिरि प्रथकशणम की परिक्रमा लगाते हैं और साल में एक बार दस से पंद्रह लाख श्रद्धालु इस पर्वत पर कार्तिगई दीपम (दिव्य ज्योति) प्रज्ज्वलित करते हैं। माना जाता है कि हिंदू धर्म में धूमधाम से मनाए जाने वाले शिवरात्रि त्योहार की शुरुआत भी इसी जगह से हुई थी।
श्री अरुणाचलेश्वर मन्दिर भगवान शिव के पंचभूत क्षेत्रों में से एक है। इसे अग्नि क्षेत्रम के रूप में भी सम्मान दिया जाता है (जबकि कांची और तिरुवरुवर को पृथ्वी, चिदंबरम को आकाश, श्री कलष्टी को वायु और तिरुवनिका को जल क्षेत्र माना जाता है)।
शिवपुराणम के अनुसार भगवान विष्णु और ब्रह्मा को अपनी शक्ति का परिचय करवाने के लिए इस स्थान पर प्रभु शिव ने अखंड ज्योति स्थापित की थी। यह कथा कुछ इस प्रकार है- एक बार प्रभु विष्णु और ब्रह्मा में अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद उठ गया। वे भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे इस तथ्य की पुष्टि चाही। शिव ने उनकी परीक्षा लेने का निर्णय किया। उन्होंने इस स्थान पर अखंड ज्योति स्थापित करके इन दोनों के समक्ष यह शर्त रखी कि जो व्यक्ति पहले उनका आदि या अंत खोज लेगा, वही अधिक श्रेष्ठ होगा।
भगवान विष्णु ने वराह अवतार का रूप धरने के बाद भूमि खोदकर शिव का अंत (पांव का अंगूठा) खोजने का अथक प्रयास किया। वहीं भगवान ब्रह्मा हंस रूप में उनका आदि स्वरूप (शीश) खोजने के लिए आकाश में उड़ चले। दोनों ने कठोर प्रयास किया, परंतु दोनों ही शिव का आदि और अंत खोजने में असफल रहे।
अंत में भगवान विष्णु अपनी हार मानते हुए वापस लौट आए। दूसरी ओर ब्रह्मा जब ढूंढते हुए थक गए तो उन्हें आकाश से पृथ्वी पर गिरता एक पुष्प मिला। पुष्प से पूछने पर उन्हें पता चला कि वह पुष्प भगवान शिव के बालों से कई युगों पहले गिरा था। ब्रह्मा को एक तरकीब आई और उन्होंने पुष्प से प्रार्थना की कि वह प्रभु शिव से झूठ बोले कि ब्रह्मा ने उनका आदि अर्थात शीश देख लिया है।
झूठ सुनकर शिव क्रोधित हुए और उन्होंने स्वर्ग से धरती तक अग्नि स्तंभ स्थापित कर दिया। इस स्तंभ की भीषण गर्मी से स्वर्ग और धरती पर निवास करने वाले सभी प्राणी घबरा गए। इंद्र, यम, अग्न, कुबेर और आठों दिशाओं के पालक प्रभु शिव के चरणों में गिर पड़े और उनसे अपना क्रोध शांत करने की प्रार्थना की। शिव उनके निवेदन से पिघल गए और स्वयं को अखंड ज्योति के रूप में समेट लिया। इस घटना के बाद से यहां महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाने लगा।
लिंगोत्भव : माना जाता है यह कोध्राग्नि युगों बाद शांत हुई और वर्तमान के श्री अरुणाचलेश्वर रूप में यहां पर स्थापित है। इस बात का प्रमाण यहां पर स्थित पवित्र पर्वत है।
यहां स्थापित ‘लिंगोत्भव’ नामक मूर्ति में प्रभु शिव को अग्नि रूप में, विष्णु को उनके चरणों के पास वराह रूप में और ब्रह्मा को हंस के रूप में उनके शीश के पास व आकाश से गिरते हुए फूल के दृश्य को दर्शाया गया है। यह दृश्य सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह के पीछे की दीवार पर उकेरा गया है।
इस दिव्य घटना के बाद से हर पूर्णिमा को इस स्थान पर हजारों-लाखों श्रद्धालु प्रभु शिव की आराधना के लिए एकत्रित होते हैं। इस पर्वत के चारों ओर आपको कई नंदी देव पर्वत की ओर मुख किए हुए दिखेंगे, क्योंकि इस पर्वत में शिव ने स्वयं को लिंग रूप में स्थापित किया था। पुरातात्विक दृष्टि से भी यह पर्वत प्राचीनतम पर्वतों में से एक माना जाता है।
माना जाता है कि श्रद्धालुओं और भक्तों की प्रार्थना पर प्रभु शिव ने स्वयं को इस मन्दिर में लिंग रूप में स्थापित कर लिया था, ताकि उनके भक्त उनके दर्शनलाभ ले सकें। चोल वंश के समय में यह मन्दिर इस कस्बे में था और यहां से पर्वत के रास्ते में ‘आदि अन्नामलय्यर’ मंदिर भी पड़ता था।
पर्वत तक पहुंचने के रास्ते में इंद्र, अग्निदेव, यम देव, निरूति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव द्वारा पूजा करते हुई आठ शिवलिंग स्थापित हैं। लोगों की धारणा है कि इस मंदिर में नंगे पांव जाने से व्यक्ति अपने पापों से छुटकारा पाकर ‘मुक्ति’ पा सकता है। भारत के प्रत्येक कोने से बच्चे, बड़े और बूढ़े दर्शनार्थ यहां आते हैं।
यहां के पुजारी श्री रामन्ना महर्षि के अनुसार यदि आप इस पवित्र स्थान के बारे में सोचेंगे तो यहां अवश्य पहुंच जाएंगे। वहीं संत शेषधारी स्वामीमंगल का मानना है यहां पर आकर आगंतुकों को अलौकिक अनुभव होता है।
भगवान शिव शंकर का श्री अरुणाचलेश्वर मन्दिर :
शिव-शंभु के भक्तों को हम इस बार धर्मयात्रा में दर्शन करा रहे हैं श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर के। यह सदियों पुराना मन्दिर एक विशालकाय पर्वत पर स्थापित है, जो तिरुअन्नामलाई नामक कस्बे में स्थित है। लाखों श्रद्धालु यहां पर मुक्ति पाने के लिए विशेष अवसरों पर एकत्रित होते हैं।
पूर्णमाशी के समय दो से तीन लाख की तादाद में श्रद्धालु चौदह किलोमीटर तक नंगे पांव चलकर पवित्र पर्वत- गिरि प्रथकशणम की परिक्रमा लगाते हैं और साल में एक बार दस से पंद्रह लाख श्रद्धालु इस पर्वत पर कार्तिगई दीपम (दिव्य ज्योति) प्रज्ज्वलित करते हैं। माना जाता है कि हिंदू धर्म में धूमधाम से मनाए जाने वाले शिवरात्रि त्योहार की शुरुआत भी इसी जगह से हुई थी।
श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर भगवान शिव के पंचभूत क्षेत्रों में से एक है। इसे अग्नि क्षेत्रम के रूप में भी सम्मान दिया जाता है (जबकि कांची और तिरुवरुवर को पृथ्वी, चिदंबरम को आकाश, श्री कलष्टी को वायु और तिरुवनिका को जल क्षेत्र माना जाता है)।
शिवपुराणम के अनुसार भगवान विष्णु और ब्रह्मा को अपनी शक्ति का परिचय करवाने के लिए इस स्थान पर प्रभु शिव ने अखंड ज्योति स्थापित की थी। यह कथा कुछ इस प्रकार है- एक बार प्रभु विष्णु और ब्रह्मा में अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद उठ गया। वे भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे इस तथ्य की पुष्टि चाही। शिव ने उनकी परीक्षा लेने का निर्णय किया। उन्होंने इस स्थान पर अखंड ज्योति स्थापित करके इन दोनों के समक्ष यह शर्त रखी कि जो व्यक्ति पहले उनका आदि या अंत खोज लेगा, वही अधिक श्रेष्ठ होगा।
भगवान विष्णु ने वराह अवतार का रूप धरने के बाद भूमि खोदकर शिव का अंत (पांव का अंगूठा) खोजने का अथक प्रयास किया। वहीं भगवान ब्रह्मा हंस रूप में उनका आदि स्वरूप (शीश) खोजने के लिए आकाश में उड़ चले। दोनों ने कठोर प्रयास किया, परंतु दोनों ही शिव का आदि और अंत खोजने में असफल रहे।
अंत में भगवान विष्णु अपनी हार मानते हुए वापस लौट आए। दूसरी ओर ब्रह्मा जब ढूंढते हुए थक गए तो उन्हें आकाश से पृथ्वी पर गिरता एक पुष्प मिला। पुष्प से पूछने पर उन्हें पता चला कि वह पुष्प भगवान शिव के बालों से कई युगों पहले गिरा था। ब्रह्मा को एक तरकीब आई और उन्होंने पुष्प से प्रार्थना की कि वह प्रभु शिव से झूठ बोले कि ब्रह्मा ने उनका आदि अर्थात शीश देख लिया है।
झूठ सुनकर शिव क्रोधित हुए और उन्होंने स्वर्ग से धरती तक अग्नि स्तंभ स्थापित कर दिया। इस स्तंभ की भीषण गर्मी से स्वर्ग और धरती पर निवास करने वाले सभी प्राणी घबरा गए। इंद्र, यम, अग्न, कुबेर और आठों दिशाओं के पालक प्रभु शिव के चरणों में गिर पड़े और उनसे अपना क्रोध शांत करने की प्रार्थना की। शिव उनके निवेदन से पिघल गए और स्वयं को अखंड ज्योति के रूप में समेट लिया। इस घटना के बाद से यहां महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाने लगा।
लिंगोत्भव : माना जाता है यह कोध्राग्नि युगों बाद शांत हुई और वर्तमान के श्री अरुणाचलेश्वर रूप में यहां पर स्थापित है। इस बात का प्रमाण यहां पर स्थित पवित्र पर्वत है।
यहां स्थापित ‘लिंगोत्भव’ नामक मूर्ति में प्रभु शिव को अग्नि रूप में, विष्णु को उनके चरणों के पास वराह रूप में और ब्रह्मा को हंस के रूप में उनके शीश के पास व आकाश से गिरते हुए फूल के दृश्य को दर्शाया गया है। यह दृश्य सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह के पीछे की दीवार पर उकेरा गया है।
इस दिव्य घटना के बाद से हर पूर्णिमा को इस स्थान पर हजारों-लाखों श्रद्धालु प्रभु शिव की आराधना के लिए एकत्रित होते हैं। इस पर्वत के चारों ओर आपको कई नंदी देव पर्वत की ओर मुख किए हुए दिखेंगे, क्योंकि इस पर्वत में शिव ने स्वयं को लिंग रूप में स्थापित किया था। पुरातात्विक दृष्टि से भी यह पर्वत प्राचीनतम पर्वतों में से एक माना जाता है।
माना जाता है कि श्रद्धालुओं और भक्तों की प्रार्थना पर प्रभु शिव ने स्वयं को इस मंदिर में लिंग रूप में स्थापित कर लिया था, ताकि उनके भक्त उनके दर्शनलाभ ले सकें। चोल वंश के समय में यह मंदिर इस कस्बे में था और यहां से पर्वत के रास्ते में ‘आदि अन्नामलय्यर’ मंदिर भी पड़ता था।
पर्वत तक पहुंचने के रास्ते में इंद्र, अग्निदेव, यम देव, निरूति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव द्वारा पूजा करते हुई आठ शिवलिंग स्थापित हैं। लोगों की धारणा है कि इस मंदिर में नंगे पांव जाने से व्यक्ति अपने पापों से छुटकारा पाकर ‘मुक्ति’ पा सकता है। भारत के प्रत्येक कोने से बच्चे, बड़े और बूढ़े दर्शनार्थ यहां आते हैं।
यहां के पुजारी श्री रामन्ना महर्षि के अनुसार यदि आप इस पवित्र स्थान के बारे में सोचेंगे तो यहां अवश्य पहुंच जाएंगे। वहीं संत शेषधारी स्वामीमंगल का मानना है यहां पर आकर आगंतुकों को अलौकिक अनुभव होता है।
पता :
अरुलमिगु अरुणाचलेश्वर मन्दिर, तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडू।पिनकॉड : 606601 भारत।
वायु मार्ग द्वारा कैसे पहुँचे:
चेन्नई हवाई अड्डे से तिरुवन्नामलाई अरुणाचलेश्वर मंदिर की दूरी 175 किलोमीटर है। आप कैब द्वारा ४ घण्टे में पहुंच सकते हो।
रेल मार्ग द्वारा कैसे पहुंचें:
रेल से आपको काफी घूमकर जाना पड़ेगा। यहां तक पहुंचने के लिए चेन्नई से टिंडीवनम या विल्लुपुरम पहुंचकर वहां से तिरुवन्नामलाई के लिए रेल या बस का विकल्प चुनना पड़ेगा।
सड़क मार्ग द्वारा कैसे पहुंचें:
आप ISBT से अरुणाचलेश्वर मन्दिर जाने के लिए बस अथवा अपनी कार से NH ४४ होते हुए २२८२.३ किलोमीटर की यात्रा करके ३९घण्टे ०मिनट्स में पहुंच जायेंगे। चेन्नई से यह मन्दिर 187 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप बस अथवा टैक्सी के द्वारा आ सकते हैं श्री अरुणाचलेश्वर मन्दिर ।
देवाधिदेव महादेव जी की जय हो। जयघोष हो।।
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