@ नई दिल्ली
केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने आज चंडीगढ़ विश्वविद्यालय मोहाली में पर्यावरण विविधता और पर्यावरण न्यायशास्त्र पर सम्मेलन : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ के समापन सत्र को संबोधित किया।
यादव ने वर्तमान दौर में इसकी विषय वस्तु पर्यावरण विविधता और पर्यावरण न्यायशास्त्र की प्रासंगिकता पर जोर दिया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पर्यावरणीय विविधता पर्यावरणीय परिस्थितियों में अंतर के साथ सहसंबद्ध क्षेत्रों के बीच प्रजातियों के संयोजन की एक धारणा है। उन्होंने कहा संरक्षण योजना के लिए यह संभावित रूप से महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा हम इस बात से आंखें नहीं मूंद सकते कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा वन आश्रित समुदाय हैं। उनकी आजीविका संस्कृति और उनका अस्तित्व वन पर निर्भर है। वनों के संरक्षण के अपने उत्साह में हम वन में इतनी बड़ी संख्या में रहने वालों के अस्तित्व की अनदेखी नहीं कर सकते। उन्होंने कहा यही वजह है कि संरक्षण के पश्चिमी विचार जो स्थानीय लोगों को अलग रखते हैं उनके वन आश्रित समुदायों के अधिकार पर गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं।
इस क्रम में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमारे तटीय क्षेत्र दुनिया में सबसे बड़े मछुआरा समुदायों को आजीविका उपलब्ध कराते हैं जिनका अस्तित्व काफी हद तक तटीय क्षेत्रों की अखंडता पर निर्भर है। इसीलिए भले ही तटीय क्षेत्र में जलवायु लचीला इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर जोर देना अहम है वहीं यह सुनिश्चित करना भी समान रूप से जरूरी है कि उन लोगों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े जिनकी आजीविका इन तटों पर निर्भर है।
केंद्रीय मंत्री ने आगे वर्षों से हो रहे पर्यावरण से संबंधित मुकदमों पर बात की जो विकास में बाधक बन गए हैं। समाज को समृद्ध बनना होगा लेकिन पर्यावरण की कीमत पर नहीं और उसी प्रकार पर्यावरण पर्यावरण को सुरक्षित किया जाएगा लेकिन विकास की कीमत पर नहीं। उन्होंने जोर दिया कि इन दोनों यानी एक तरफ विकास और दूसरी तरफ प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के बीच संतुलन कायम करना आज की जरूरत है।
यादव ने इस अवसर पर बिना विनाश के विकास के भारत के दर्शन को दोहराया। उन्होंने बताया हम आर्थिक विकास के सभी क्षेत्रों में जैव विविधता संरक्षण को मुख्य धारा में लाने के लिए संबंधित मंत्रालयों और विभागों के साथ काम कर रहे हैं।उन्होंने स्थानीय समुदाय के हितों पर अधिक ध्यान देने और जैव विविधता के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए जैविक विविधता अधिनियम में संशोधन करने के प्रस्ताव के बारे में बताया जिससे हम अधिनियम के उद्देश्य को अधिक प्रभावी ढंग से हासिल कर सकते हैं।
व्यक्तिगत उद्योगों और यहां तक कि शासन के स्तर पर पर्यावरण के दोहन को समाप्त करने के लिए बीते साल ग्लासगो में हुए सीओपी 26 में माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एल आई एफ ई’ का मंत्र दिया था जिसका मतलब है लाइफस्टाइल फॉर एन्वायरमेंट जिसे मानवता और धरती की सुरक्षा के लिए दुनिया को अपनाना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान भारत के उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति किशन कौल हवाई के उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति माइकल विल्सन पंजाब और हरियाणा चंडीगढ़ उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति अगस्टाइन जॉर्ज मसीह उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और एनजीटी के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के चांसलर सतनाम सिंह संधू और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।