भारत के धार्मिक स्थल: केदारनाथ मन्दिर, रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड भाग: १०८
आपने पिछले भाग में पढ़ा : भारत के प्रसिद्ध धार्मिकस्थल :श्री रँग नाथ जी मन्दिर, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश ! यदि आपसे यह लेख छूट गया हो और आपमें पढ़ने की जिज्ञासा हो तो आप प्रजा टुडे की वेबसाइट पर धर्म-सहित्य पृष्ठ पर जा कर पढ़ सकते हैं! आज हम आपको बता रहे हैं:
भारत के धार्मिक स्थल: केदारनाथ मन्दिर, रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड भाग: १०८
केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित प्रसिद्ध मन्दिर है! उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पञ्च केदार में से भी एक है! यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शनों के लिए खुलता है! पत्थरों द्वारा कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था! यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है! आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया!
जून २०१३ के दौरान अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा! मन्दिर के आस पास की मकान बह गए! इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा एवँ सदियों पुराना गुबन्द अभूतपूर्व तरीके से सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह-ओ-बर्बाद हो गया!
केदारनाथ मन्दिर की बड़ी महिमा है! उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनों के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है! केदारनाथ के सम्बन्ध में कहते हैं कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल हो जाती है और केदारनाथ सहित नर नारायण मूर्ति के दर्शनों का फल, समस्त पापों के नाश पूर्वक, जीवन मुक्ति की प्राप्ति को बताया गया है! केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है! राहुल साँकृत्यायन के अनुसार ये १२वीं शताब्दी का मन्दिर है! मान्यतानुसार वर्तमान मन्दिर ८वीं शताब्दी में आदि शँकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पाँडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मन्दिर के निकट है! मन्दिर के बड़े धूसर रँग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है!
केदारनाथ जी के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र के प्राचीन ब्राह्मण हैं, उनके पूर्वज ऋषि-मुनि भगवान नर-नारायण के समय से इस स्वयँभू ज्योतिर्लिंग की पूजा करते आ रहे हैं, जिनकी संख्या उस समय ३६० थी! पाँडवों के पोते राजा जनमेजय ने उन्हें इस मन्दिर में पूजा करने का अधिकार दिया था, और वे तब से तीर्थ यात्रियों की पूजा कराते आ रहे हैं! आदि गुरु शँकराचार्य जी के समय से यहाँ पर दक्षिण भारत से जँगम समुदाय के रावल व पुजारी मन्दिर में शिवलिंग की पूजा करते हैं, जबकि यात्रियों की ओर से पूजा इन तीर्थ पुरोहित ब्राह्मणों द्वारा की जाती है! मन्दिर के सामने पुरोहितों की अपने यजमानों एवं अन्य यात्रियों के लिये पक्की धर्मशालाएं हैं, जबकि मंदिर के पुजारी एवं अन्य कर्मचारियों के भवन मन्दिर के दक्षिण की ओर हैं!
यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है! मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है! बाहर प्राँगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं! मन्दिर को तीन भागों में बाँटा जा सकता है: १.गर्भ गृह , २.मध्यभाग ३.सभा मण्डप! गर्भ गृह के मध्य में भगवान श्री केदारेश्वर जी का स्वयँभू ज्योतिर्लिंग स्थित है जिसके अग्र भाग पर गणेश जी की आकृति और साथ ही माँ पार्वती का श्री यँत्र विद्यमान है! ज्योतिर्लिंग पर प्राकृतिक यग्योपवीत और ज्योतिर्लिंग के पृष्ठ भाग पर प्राकृतिक स्फटिक माला को आसानी से देखा जा सकता है! श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग में नव लिंगाकार विग्रह विधमान है इस कारण इस ज्योतिर्लिंग को नव लिंग केदार भी कहा जाता है स्थानीय लोक गीतों से इसकी पुष्टि होती है! श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर विशालकाय चार स्तंभ विद्यमान है, जिनको चारों वेदों का धोतक माना जाता है, जिन पर विशालकाय कमलनुमा मन्दिर की छत टिकी हुई है! ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी ओर एक अखण्ड दीपक है जो कई हजारों सालों से निरँतर जलता रहता है और निरन्तर जलते रहने की ज़िम्मेदारी पूर्व काल से तीर्थ पुरोहितों की है! गर्भ गृह की दीवारों पर सुन्दर आकर्षक फूलों और कलाकृतियों को उकर कर सजाया गया है! गर्भ गृह में स्थित चारों विशालकाय खंभों के पीछे से स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान श्री केदारेश्वर जी की परिक्रमा की जाती है! पूर्व काल में श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारो ओर सुन्दर कटवे पत्थरों से निर्मित जलेरी बनाई गई थी! श्री योगेश जिन्दल, मैनेजिक डारेक्टर, काशी विश्वनाथ स्टील ,काशीपुर वालों ने मंदिर गर्भ गृह में आठ मिमी मोटी तांबे की नई जलेरी लगवाई थी! अब वतर्मान काल में जलेरी के साथ -साथ गर्भ गृह की दीवारों और मन्दिर के सभी दरवाजों को अपने तीर्थ पुरोहित की प्रेणना से किसी और दानी दाता द्वारा रजत (चाँदी) की करवा दी गई है! इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है!
मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है! प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है! तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है! इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है! उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है! भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं!
हिमालय के केदार शृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महा तपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे! उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शँकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया! यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं! पँचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पाँडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे! इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे! भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले!
वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे! भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे! दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए! भगवान शँकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले! पांडवों को संदेह हो गया था! अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया! अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शँकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए! भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अँतर्ध्यान होने लगा! तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया! भगवान शँकर पाँडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए!
उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पाँडवों को पाप मुक्त कर दिया! उसी समय से भगवान शँकर बैल की पीठ की आकृति-पिण्ड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं! ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ! अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है! शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए! इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं!
केदारनाथ धाम की यात्रा उत्तराखंड की पवित्र छोटा चार धाम यात्रा के महत्वपूर्ण चार मन्दिरों में से एक है! छोटा चार धाम यात्रा हर वर्ष आयोजित की जाती है! केदारनाथ यात्रा के अलावा अन्य मदिर बद्रीनाथ, गङ्गोत्री और यमुनोत्री हैं! केदारनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए हर वर्ष मन्दिर के खुलने की तिथि तय की जाती है! मन्दिर के खुलने की तिथि हिन्दू-पञ्चाङ्ग की गणना के बाद ऊखीमठ में स्थित ॐकारेश्वर मन्दिर के पुजारियों द्वारा तय की जाती है!
केदारनाथ मन्दिर की उद्घाटन तिथि अक्षय तृतीया के शुभ दिन और महा शिवरात्रि पर हर साल घोषित की जाती है और केदारनाथ मन्दिर की समापन तिथि हर वर्ष नवँबर के आस पास दिवाली त्योहार के बाद भाई दूज के दिन होती है! इसके बाद मन्दिर के द्वार शीत काल के लिए बन्द कर दिए जाते हैं!
केदारनाथ मन्दिर में दर्शनों का समय :
केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: ६:०० बजे खुलता है! दोपहर तीन से पाँच बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है! पुन: शाम ५ बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है!
पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके ७:३० बजे से ८:३० बजे तक नियमित आरती होती है! रात्रि ८:३० बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है! शीतकाल में केदार घाटी बर्फ़ से ढँक जाती है! यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की १५ तारीख से पूर्व वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व, बन्द हो जाता है और छ: माह बाद अर्थात वैशाखी के बाद कपाट खुलते हैं! ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पँचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं! इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं! केदारनाथ में जनता शुल्क जमा कराकर रसीद प्राप्त करती है और उसके अनुसार ही वह मन्दिर की पूजा-आरती कराती है अथवा भोग-प्रसाद ग्रहण करती है!
पूजा का क्रम संपादित करें :
भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं! मन्दिर-समिति द्वारा केदारनाथ मन्दिर में पूजा कराने हेतु जनता से जो दक्षिणा लिया जाता है, उसमें समिति समय-समय पर परिर्वतन भी करती है!
हवाईमार्ग द्वारा केदारनाथ मन्दिर कैसे पहुंचें :
देहरादून का जॉलीग्रांट हवाई अड्डा सबसे नज़दीकी हवाईअड्डा है, जो कि यहाँ से २२७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है! कैब के जरिए यहां से गौरी कुण्ड तक आसानी से पहुँचा जा सकता है! मात्र १६ किलोमीटर दूर रह जाता है केदारनाथ!
रेल मार्ग द्वारा केदारनाथ मन्दिर कैसे पहुंचें :
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है! यहाँ से २२७ किलोमीटर बस तथा कैब द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है!
सड़क मार्ग द्वारा केदारनाथ मन्दिर कैसे पहुंचें :
केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड के मुख्य राजमार्गों से जुड़ा हुआ है और यहाँ बस या निजी वाहन से आसानी से नहीँ पहुँचा जा सकता! दिल्ली से ४६६ किलोमीटर की यात्रा करके पहुँचा जा सकता है! गौरीकुण्ड से १६ किलोमीटर की पदयात्रा से आप भगवान भोलेनाथ श्री केदारनाथ जी के सहर्ष दर्शन कर रोमाँचित और भाग्यवान महसूस करोगे! ५ किलोमीटर की यात्रा आप पिट्ठू द्वारा वैंगी में या खच्चर पर भी जा सकते हो, बस आपमें केदारनाथ जी के दर्शनों की लालसा अथवा लगन होनी चाहिए!
केदारनाथ की जय हो! जय घोष हो!