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कवयित्री नम्रता “अश्विनसुधा” की कलम से…
ख़ामोश हुए हम
लब सिल से गये
कुछ टुकड़ों मे मिले
कुछ बिखरे से लगे
बिछड़ते से हाथ थे
एक एक कर छूटते गये
अफसोस
हम यूँ हीं खड़े देखते रहे
बस इतना ही कर पाये
खामोशी अख़्तियार कर
आग के दरिया मे गोते लगाते रहे
पता है
हाथ जल जाने को है, भावनायें मिट जाने को है
फिर भी
रिश्तों के मोह के बीच जीती सी ज़िंदगी आज भी हैं।