माँ चंद्रिका देवी मन्दिर, गाँव:कठवाड़ा, लखनऊ, उत्तरप्रदेश भाग : ४५१ ,पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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माँ चंद्रिका देवी मन्दिर, लखनऊ-सीतापुर मार्ग, गाँव:कठवाड़ा, लखनऊ, उत्तरप्रदेश भाग : ४५१

आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा, भारत के धार्मिक स्थल : श्री साईं मन्दिर, गोपीनाथ शास्त्री बाजार, दिल्ली कैंट, नई दिल्ली। यदि आपसे उक्त लेख छूट अथवा रह गया हो तो आप कृप्या करके प्रजाटूडे की वेबसाइट पर जाकर www.prajatoday.com पर जाकर धर्मसाहित्य पृष्ठ पर पढ़ दसकते हैं:

माँ चंद्रिका देवी मन्दिर, लखनऊ-सीतापुर मार्ग, गाँव:कठवाड़ा, लखनऊ, उत्तरप्रदेश भाग : ४५१

मेरे अभिनेता निर्देशक मित्र संदीपन नागर जो मथुरा निवासी कहलाए। मेरे मरहूम मित्र की माँ डॉक्टर अचला नागर जी का जन्म 2 दिसंबर, 1939 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय अमृतलाल नागर की बेटी हैं। हिन्दी साहित्य के उपन्यास सम्राट स्व. अमृतलाल नागर ने अपने उपन्यास ‘करवट’ में माँ चन्द्रिका देवी की महिमा का बखान किया जिसमें उपन्यास का नायक बंशीधर टण्डन चौक इलाके से देवी को प्रसन्न करने के लिए हर अमावस्या को चन्द्रिका देवी के दर्शन करने आता था। आज भी अमावस्या के दिन और उसकी पूर्व संध्या को माँ चन्द्रिका देवी के दर्शनार्थियों में सर्वाधिक संख्या लखनऊ के चौक क्षेत्र के देवीभक्तों की होती है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि आस्था और विश्वास से जुड़े पौराणिक महीसागर संगम तीर्थ को राजस्व विभाग के अभिलेखों में पाँच एकड़ क्षेत्र वाले सामान्य ताल के नाम से अंकित किया गया है। स्थानीय लोगों एवं श्रद्धालुओं का कहना है कि इस पौराणिक तीर्थ को सरकार अपने अभिलेखों में अवश्य दर्ज कराए।

चन्द्रिका देवी मन्दिर सिद्धपीठ जहॉ बर्बरीक ने की थी तपस्या:

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का चन्द्रिका देवी मन्दिर पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व रखने के कारण वर्ष भर भक्तों की आस्था का केन्द्र रहता है और नवरात्रों में तो मेले के साथ भक्तों की लम्बी कतारें मॉ भगवती के दर्शन को लगी रहती है. लखनऊ सीतापुर मार्ग नेशनल हाईवे नम्बर 24 पर बक्शी का तालाब से लगभग 12 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर भव्य चन्द्रिका देवी मन्दिर स्थित है.नवदुर्गाओं की सिद्धपीठ चन्द्रिका देवी धाम में एक विशाल हवन कुण्ड, यज्ञशाला, चन्द्रिका देवी का दरबार, बर्बरीक द्वार, सुधन्वा कुण्ड, महीसागर संगम तीर्थ के घाट आदि आज भी दर्शनीय हैं.मॉ चन्द्रिका देवी के दरबार में प्रदेश व देश के लोग मन्नत मांगने आते है और मनचाही मुराद प्राप्त कर देवी मॉ का गुणगान करते है.जैसा कि पत्रिका ने अपने सुधि पाठकों से वायदा किया था कि नवरात्रि के पावन पर्व पर नित नई भक्तिमय खबर ले कर आप के बीच होगा तो आज नवरात्रों के दूसरे दिन राजधानी के दूसरे बड़े और पौराणिक महत्त्व वाले चन्द्रिका देवी मन्दिर का दर्शन कीजिये और जय माता दी कहिये!

पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व:

गोमती नदी के समीप स्थित महीसागर संगम तीर्थ के तट पर एक पुरातन नीम के वृक्ष के कोटर में नौ दुर्गाओं के साथ उनकी वेदियाँ चिरकाल से सुरक्षित रखी हुई हैं.अठारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध से यहाँ माँ चन्द्रिका देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है.ऊँचे चबूतरे पर एक मठ बनवाकर पूजा-अर्चना के साथ देवी भक्तों के लिए प्रत्येक मास की अमावस्या को मेला लगता था, जिसकी परम्परा आज भी जारी है।

स्कन्द पुराण के अनुसार द्वापर युग में घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने माँ चन्द्रिका देवी धाम स्थित महीसागर संगम में तप किया था.चन्द्रिका देवी धाम की तीन दिशाओं उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में गोमती नदी की जलधारा प्रवाहित होती है तथा पूर्व दिशा में महीसागर संगम तीर्थ स्थित है.जनश्रुति है कि महीसागर संगम तीर्थ में कभी भी जल का अभाव नहीं होता क्योकिं इसका सीधा संबंध पाताल से है.आज भी करोड़ों भक्त यहाँ महारथी वीर बर्बरीक की पूजा-आराधना करते हैं.यह भी मान्यता है कि दक्ष प्रजापति के श्राप से प्रभावित चन्द्रमा को भी श्रापमुक्ति हेतु इसी महीसागर संगम तीर्थ के जल में स्नान करने के लिए चन्द्रिका देवी धाम में आना पड़ा था.त्रेता युग में लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के अधिपति उर्मिला पुत्र चन्द्रकेतु को चन्द्रिका देवी धाम के तत्कालीन इस वन क्षेत्र में अमावस्या की अर्धरात्रि में जब भय व्याप्त होने लगा तो उन्होंने अपनी माता द्वारा बताई गई नवदुर्गाओं का स्मरण किया और उनकी आराधना की.तब चन्द्रिका देवी की चन्द्रिका के आभास से उनका सारा भय दूर हो गया था. महाभारतकाल में पाँचों पाण्डु पुत्र द्रोपदी के साथ अपने वनवास के समय इस तीर्थ पर आए थे.महाराजा युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ कराया जिसका घोड़ा चन्द्रिका देवी धाम के निकट राज्य के तत्कालीन राजा हंसध्वज द्वारा रोके जाने पर युधिष्ठिर की सेना से उन्हें युद्ध करना पड़ा, जिसमें उनका पुत्र सुरथ तो सम्मिलित हुआ, किन्तु दूसरा पुत्र सुधन्वा चन्द्रिका देवी री धाम में नवदुर्गाओं की पूजा-आराधना में लीन था और युद्ध में अनुपस्थित‍ि के कारण इसी महीसागर क्षेत्र में उसे खौलते तेल के कड़ाहे में डालकर उसकी परीक्षा ली गई।

माँ चन्द्रिका देवी की कृपा के चलते उसके शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.तभी से इस तीर्थ को सुधन्वा कुण्ड भी कहा जाने लगा.महाराजा युधिष्ठिर की सेना अर्थात कटक ने यहाँ वास किया तो यह गाँव कटकवासा कहलाया.आज इसी को कठवारा कहा जाता है.चन्द्रिका देवी मन्दिर में मेले आदि की सारी व्यवस्था संस्थापक स्व. ठाकुर बेनीसिंह चौहान के वंशज अखिलेश सिंह संभालते हैं.वे कठवारा गाँव के प्रधान हैं.महीसागर संगम तीर्थ के पुरोहित और यज्ञशाला के आचार्य ब्राह्मण हैं.माँ के मंदिर में पूजा-अर्चना पिछड़ा वर्ग के मालियों द्वारा तथा पछुआ देव के स्थान (भैरवनाथ) पर आराधना अनुसूचित जाति के पासियों द्वारा कराई जाती है.ऐसा उदाहरण दूसरी जगह मिलना मुश्किल है.भक्तजन अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए माँ चन्द्रिका के दरबार में आकर मन्नत माँगते हैं, चुनरी की गाँठ बाँधते हैं तथा मनोकामना पूरी होने पर माँ को चुनरी, प्रसाद चढ़ाकर मंदिर परिसर में घण्टा बाँधते हैं।

चन्द्रिका देवी मन्दिर सिद्धपीठ जहॉ बर्बरीक ने की थी तपस्या:

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का चन्द्रिका देवी मन्दिर पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व रखने के कारण वर्ष भर भक्तों की आस्था का केन्द्र रहता है और नवरात्रों में तो मेले के साथ भक्तों की लम्बी कतारें मॉ भगवती के दर्शन को लगी रहती है. लखनऊ सीतापुर मार्ग नेशनल हाईवे नम्बर 24 पर बक्शी का तालाब से लगभग 12 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर भव्य चन्द्रिका देवी मन्दिर स्थित है.नवदुर्गाओं की सिद्धपीठ चन्द्रिका देवी धाम में एक विशाल हवन कुण्ड, यज्ञशाला, चन्द्रिका देवी का दरबार, बर्बरीक द्वार, सुधन्वा कुण्ड, महीसागर संगम तीर्थ के घाट आदि आज भी दर्शनीय हैं.मॉ चन्द्रिका देवी के दरबार में प्रदेश व देश के लोग मन्नत मांगने आते है और मनचाही मुराद प्राप्त कर देवी मॉ का गुणगान करते है.जैसा कि पत्रिका ने अपने सुधि पाठकों से वायदा किया था कि नवरात्रि के पावन पर्व पर नित नई भक्तिमय खबर ले कर आप के बीच होगा तो आज नवरात्रों के दूसरे दिन राजधानी के दूसरे बड़े और पौराणिक महत्त्व वाले चन्द्रिका देवी मन्दिर का दर्शन कीजिये और जय माता दी कहिये!

पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व:

गोमती नदी के समीप स्थित महीसागर संगम तीर्थ के तट पर एक पुरातन नीम के वृक्ष के कोटर में नौ दुर्गाओं के साथ उनकी वेदियाँ चिरकाल से सुरक्षित रखी हुई हैं.अठारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध से यहाँ माँ चन्द्रिका देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है.ऊँचे चबूतरे पर एक मठ बनवाकर पूजा-अर्चना के साथ देवी भक्तों के लिए प्रत्येक मास की अमावस्या को मेला लगता था, जिसकी परम्परा आज भी जारी है।

स्कन्द पुराण के अनुसार द्वापर युग में घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने माँ चन्द्रिका देवी धाम स्थित महीसागर संगम में तप किया था.चन्द्रिका देवी धाम की तीन दिशाओं उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में गोमती नदी की जलधारा प्रवाहित होती है तथा पूर्व दिशा में महीसागर संगम तीर्थ स्थित है.जनश्रुति है कि महीसागर संगम तीर्थ में कभी भी जल का अभाव नहीं होता क्योकिं इसका सीधा संबंध पाताल से है.आज भी करोड़ों भक्त यहाँ महारथी वीर बर्बरीक की पूजा-आराधना करते हैं.यह भी मान्यता है कि दक्ष प्रजापति के श्राप से प्रभावित चन्द्रमा को भी श्रापमुक्ति हेतु इसी महीसागर संगम तीर्थ के जल में स्नान करने के लिए चन्द्रिका देवी धाम में आना पड़ा था.त्रेता युग में लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के अधिपति उर्मिला पुत्र चन्द्रकेतु को चन्द्रिका देवी धाम के तत्कालीन इस वन क्षेत्र में अमावस्या की अर्धरात्रि में जब भय व्याप्त होने लगा तो उन्होंने अपनी माता द्वारा बताई गई नवदुर्गाओं का स्मरण किया और उनकी आराधना की.तब चन्द्रिका देवी की चन्द्रिका के आभास से उनका सारा भय दूर हो गया था. महाभारतकाल में पाँचों पाण्डु पुत्र द्रोपदी के साथ अपने वनवास के समय इस तीर्थ पर आए थे.महाराजा युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ कराया जिसका घोड़ा चन्द्रिका देवी धाम के निकट राज्य के तत्कालीन राजा हंसध्वज द्वारा रोके जाने पर युधिष्ठिर की सेना से उन्हें युद्ध करना पड़ा, जिसमें उनका पुत्र सुरथ तो सम्मिलित हुआ, किन्तु दूसरा पुत्र सुधन्वा चन्द्रिका देवी री धाम में नवदुर्गाओं की पूजा-आराधना में लीन था और युद्ध में अनुपस्थित‍ि के कारण इसी महीसागर क्षेत्र में उसे खौलते तेल के कड़ाहे में डालकर उसकी परीक्षा ली गई।

माँ चन्द्रिका देवी की कृपा के चलते उसके शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.तभी से इस तीर्थ को सुधन्वा कुण्ड भी कहा जाने लगा.महाराजा युधिष्ठिर की सेना अर्थात कटक ने यहाँ वास किया तो यह गाँव कटकवासा कहलाया.आज इसी को कठवारा कहा जाता है.चन्द्रिका देवी मन्दिर में मेले आदि की सारी व्यवस्था संस्थापक स्व. ठाकुर बेनीसिंह चौहान के वंशज अखिलेश सिंह संभालते हैं.वे कठवारा गाँव के प्रधान हैं.महीसागर संगम तीर्थ के पुरोहित और यज्ञशाला के आचार्य ब्राह्मण हैं.माँ के मंदिर में पूजा-अर्चना पिछड़ा वर्ग के मालियों द्वारा तथा पछुआ देव के स्थान (भैरवनाथ) पर आराधना अनुसूचित जाति के पासियों द्वारा कराई जाती है.ऐसा उदाहरण दूसरी जगह मिलना मुश्किल है.भक्तजन अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए माँ चन्द्रिका के दरबार में आकर मन्नत माँगते हैं, चुनरी की गाँठ बाँधते हैं तथा मनोकामना पूरी होने पर माँ को चुनरी, प्रसाद चढ़ाकर मंदिर परिसर में घण्टा बाँधते हैं।

माँ चंद्रिका देवी मन्दिर एक दर्शनीय स्थल :

लखनऊ में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है चंद्रिका देवी मंदिर। ए-42, जेल रोड, सेक्टर जे, आशियाना, लखनऊ

प्रवेश शुल्क और समय :

माँ चंद्रिका देवी मंदिर सप्ताह में सभी दिन सुबह 5:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक, दोपहर 2:00 बजे से रात 11:00 बजे तक खुला रहता है, कोई प्रवेश शुल्क नहीं।

स्थान का प्रकार मंदिर :

हिंदू मंदिर, धार्मिक स्थान के साथ स्थल भ्रमण करें पारिवारकि मित्रो संग घूमने का सबसे अच्छा समय नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी, मार्च है।

चंद्रिका देवी मंदिर के बारे में:

चंद्रिका देवी मंदिर लखनऊ शहर के पास कठवारा गांव में स्थित है। देवी दुर्गा को समर्पित, चंद्रिका देवी मंदिर 300 साल से अधिक पुराना बताया जाता है। मंदिर के पीठासीन देवता की मूर्ति एक चट्टान से उकेरी गई है और इसमें तीन सिर हैं। लखनऊ का यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल साल भर भक्तों की भारी भीड़ से भरा रहता है।

अमावस्या और नवरात्रि पूजा के दौरान भीड़ दोगुनी हो जाती है। यहाँ तीर्थयात्रियों को ‘हवन’ और ‘मुंडन’ जैसे विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों को करते देखा जा सकता है।

चंद्रिका देवी मंदिर के बारे में रोचक तथ्य:

चंद्रिका देवी मंदिर सभी हिंदुओं के लिए तीर्थ स्थान है और इसे माही सागर तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है।
मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो देवी दुर्गा के अवतार देवी चंडी को समर्पित है।
मंदिर का अपना प्राकृतिक सौंदर्य है, क्योंकि यह तीन तरफ से गोमती नदी से घिरा है। मंदिर रामायण के युग का इतिहास बताता है।
इतना धार्मिक महत्व होने के कारण, मंदिर में प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है; विशेष रूप से नवरात्रों के समय के दौरान, जो एक प्रमुख हिंदू त्योहार है।

पता माँ चंद्रिका देवी मन्दिर,

एनएच24, लखनऊ-सीतापुर मार्ग, गाँव:कठवाड़ा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश पिनकोड: 226202 भारत।

हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :

हवाई मार्ग से निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ का चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डा है अतः इस हवाईअड्डे से ३७.८ किलोमीटर दूर स्थित है। आप कैब द्वारा १ घण्टा ९ मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे माँ चंद्रिका देवी मन्दिर।

मेट्रो रेल मार्ग से कैसे पहुँचें :

मेट्रो मार्ग से पहुँचने में आसानी से आप लखनऊ के मेट्रो स्टेशन मानक नगर से ३ किलोमीटर दूर है,५ मिनट्स में पहुंच जाओगे माँ चंद्रिका देवी मन्दिर।

सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :

आप ISBT इन्टर स्टेट बस टर्मिनल द्वारा बस अथवा अपनी कार से ५२८.८ किलोमीटर की दूरी तय करके वाया यमुना एक्सप्रेस वे मार्ग से आसानी से ६ घण्टे ५६ मिनट्स में पहुँच जाओगे माँ चंद्रिका देवी मन्दिर। माँ चंद्रिका देवी मन्दिर का निकटतम बस स्टैंड है जो ३४ किलोमीटर दूर है।

माँ चंद्रिका देवी की जय हो। जयघोष हो।।

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