मजनूँ का टीला गुरुद्वारा साहिब, न्यू चंद्रावल, सिविल लाईन्स, नई दिल्ली भाग :४४६
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा, भारत के धार्मिक स्थल : शनि मन्दिर, निकट-बिन्दा पुर, उत्तम नगर, नई दिल्ली। यदि आपसे उक्त लेख छूट अथवा रह गया हो तो आप कृप्या करके प्रजाटूडे की वेबसाइट पर जाकर www.prajatoday.com पर जाकर धर्मसाहित्य पृष्ठ पर पढ़ दसकते हैं:
मजनूँ का टीला गुरुद्वारा साहिब, न्यू चंद्रावल, सिविल लाईन्स, नई दिल्ली भाग :४४६
मैंने अपने रूहानी मित्र बन्दा जी से पूछा अब रविवार को कौन सा गुरुद्वारे के बारे में आलेख लिखें तो भाई साहब भाई बकशीष सिंह बन्दा जी बताया : मजनू का टीला गुरुद्वारा साहेब।
मजनू का टीला गुरुद्वारा साहेब इन दिनों सुर्खियों में है। मजनू का टीला गुरुद्वारा साहेब, अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए है।
बन्दा जी ने बताया स्वयँ श्री गुरु नानक देव जी ने दिया था ये नाम। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ईरानी सूफी अब्दुल्ला जो मजनू (प्रेम में दीवाना) कहलाता था उसकी भेंट 20 जुलाई 10 को यहां सिखों के गुरु श्री गुरु नानक देव जी से हुई थी। तभी से इसका नाम मजनू का टीला पड़ गया।
मजनू का टीला गुरुद्वारा साहेब से जुड़ी बेहद रोचक कहानी :
दिल्ली स्थित मजनू का टीला गुरुद्वारा साहेब में सैकड़ों की सँख्या में लोग लॉकडाउन के कारण फंसे हुए थे जिन्हें वहां से निकाला गया। निजामुद्दीन मरकज के एक धार्मिक कार्यक्रम के बाद कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने के बाद गुरुद्वारे में फंसे लोगों को वहां से निकाला गया। निजामुद्दीन में घटी इस घटना के बाद दिल्ली में अचानक से कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या उस समय 200 के पार चली गई है। मजनू का टीला गुरुद्वारा साहेब दिल्ली का एक बेहद पुराना सिख गुरुद्वारा है। मजनू का टीला जिसका मतलब होता है मजनूओं का जहां जमावड़ा लगता हो। पुराणिक मान्यताओं के मुताबिक ईरानी सूफी अब्दुल्ला जो मजनू (प्रेम में दीवाना) कहलाता था उसकी भेंट 20 जुलाई 1505 को यहां सिखों के गुरु गुरु नानक देव से हुई थी। गुरुद्वारा के बारे में अब भी कई बातें लोगों को नहीं पता है।
मजनूं का टीला गुरुद्वारा किसने बनवाया :
मजनू का टीला गुरुद्वारा साहेब सिख मिलिट्री लीडर बघेल सिंह धालीवाल ने इसकी शुरुआत की थी। मुगल बादशाह शाह आलम ने उनसे समझौता किया था और उन्हें ये काम सौंपा था जिसके बाद उन्होंने इसे बनवाया था।
गुरुद्वारे का नाम मजनू का टीला क्यों पड़ा :
स्वयँ श्री गुरु नानक देव जी ने ये घोषणा की थी कि ये जगह मजनूं का टीला के नाम से जाना जाएगा। दुनिया के अंत होने तक लोग इस जगह को मजनूं का टीला के नाम से जानेंगे। चूंकि बड़ी संख्या में प्रेम के दीवाने मजनू इस जगह पर आशीर्वाद लेने आते थे। जिसके बाद में जब इस जगह पर गुरुद्वारा बना तो इसे नाम भी मजनू का टीला दे दिया गया।
कब बना गुरुद्वारा :
मार्बल गुरुद्वारा जो दिल्ली में आज स्थित है उसे 1980 में बनवाया गया था। कॉम्प्लेक्स के अंदर पहला गुरुद्वारा बघेल सिंह के द्वारा बनवाया गया था। जब वे अपने 40,000 सैनिकों के साथ मार्च 1783 में लाल किले में प्रवेश किया था और दीवान-ए-आम को कब्जा कर लिया था। मुगल शासक शाह आलम द्वितीय ने बघेल सिंह के साथ मिलकर एक समझौता किया जिसमें उन्हें शहर में सिखों के ऐतिहासिक जगहों पर गुरुद्वारा बनवाने का आदेश दिया। सिंह इसके बाद सब्जी मंडी के पास ही अपने सैनिकों के साथ कैंप लगाकर रुक गए और वहीं से सात जगहों की पहचान की जो सिख गुरुओं से जुड़ी हुई थी इसके बाद उन्होंने वहां गुरुद्वारा बनवानी शुरू कर दी। एंटरटेनमेंट टाइम्स में रीना सिंह के द्वारा लिखी गए लेख से ये जानकारी सामने आई है।
मजनू का टीला गुरुद्वारा के आसपास क्या है ;
मजनू का टीला गुरुद्वारा नॉर्थ दिल्ली में स्थित है जहां से इंटर-स्टेट बस टर्मिनस पास पड़ता है। यहां से तिब्बतियों का रिफ्यूजी कैंप भी पास में है जिसके अपोजिट में तीमारपुर कॉलोनी है। यह यमुना नदी के किनारे पर बना हुआ है। पूरनमासी के दिन गुरुद्वारा में बैसाखी सेलिब्रेट किया जाता है।
मजनू का टीला की क्या है कहानी
जब गुरु नानक देव ज अपने भक्तों के साथ बैठे हुए थे उसी समय उन्होंने एक महावत को रोते हुए सुना था जो अपने बादशाह के हाथी की मौत पर रो रहा था। इसके बाद गुरु नानक ने उस हाथी को जिंदा कर दिया जिसके बाद वह महावत भी उनका भक्त बन गय्या।
दिल्ली के ‘मजनू का टीला’ का इतिहास :
बड़ा ही रोचक है दिल्ली के ‘मजनू का टीला’ का इतिहास, जानिए कैसे पड़ा ये नाम मजनूँ का टीला : राजधानी दिल्ली को देश का दिल कहा जाता है. यहां पर कई फेमस ऐतिहासिक जगहे हैं जहां पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां मौजूद ‘मजनू का टीला’ का इतिहास भी बेहद रोचक है. अगर आप दिल्ली की सैर पर जा रहे हैं तो आज इस रिपोर्ट में हम आपको इस जगह से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।
‘मजनू का टीला’ का इतिहास 19वीं शताब्दी से भी पुराना है. कहा जाता है कि ये जगह सिकंदर लोदी के शासन से जुड़ी हुई है. इसके अलावा यहां का इतिहास सिख धर्म के गुरु से भी जुड़ा हुआ है।
अगर बात करें इस जगह के नाम की तो इसके पीछे की भी एक रोचक कहानी है. दरअसल इस जगह का नाम एक सूफी के नाम पर रखा गया है. बताया जाता है कि जब एक बार गुरु नानक सिकंदर लोदी के काल में यहां आए थे तो वो एक सूफी फकीर से मिले थे जोकि शायद ईरान का रहने वाला था।
वो फकीर सूफी था इसलिए लोग उसे मजनू कहने लगे थे. कहा जाता है कि वो फकीर यमुना के पास में मौजूद एक टीले पर रहता था, इसलिए जगह नाम मजनू का टीला ही पड़ गया।
इसके अलावा लोगों का ये भी मानना है कि उस मजनू को गुरु नानक का आशीर्वाद भी मिला हुआ था और जिस जगह पर उन्हें आशीर्वाद दिया गया था आज उसी जगह पर गुरुद्वारा बना हुआ है. वहीं कई लोगों का ये भी कहना है कि इस टीले का संबंध ऐतिहासिक प्रेमी जोड़े लैला-मजनू से भी है।
पता :
मजनूँ का टीला गुरुद्वारा साहिब, न्यू चंद्रावल, सिविल लाईन्स, नई दिल्ली पिनकोड : 110054 भारत।
हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :
पालम दिल्ली के इन्दिरगाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से कैब द्वारा 22.4 किलोमीटर की दूरी तय करके 1 घण्टा 4 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे मजनूँ का टीला गुरुद्वारा साहेब।
मेट्रो मार्ग से कैसे पहुँचें :
विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से 3.9 किलोमीटर की दूरी तय करके ई-रिक्शा कैब द्वारा 11 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे मजनूँ का टीला गुरुद्वारा साहेब।
सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :
आप ISBT इन्टर स्टेट बस टर्मिनल द्वारा बस अथवा अपनी कार से 7.2 किलोमीटर की दूरी तय करके वाया बाहरी मुद्रिका मार्ग 0 घण्टा 19 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे मजनूँ का टीला गुरुद्वारा साहेब।
श्री गुरु नानक देव जी महाराज की जय हो। जयघोष हो।।
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