सीता माई मन्दिर सीता माई ग्राम करनाल, हरियाणा भाग : ३७४,पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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सीता माई मन्दिर, सीता माई ग्राम करनाल, हरियाणा भाग:३७४

आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिकस्थल : बाबा श्री पशुपतिनाथ मन्दिर, पशुपतिनाथ विहार कॉलोनी, बरेली,उत्तरप्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:

सीता माई मन्दिर, सीता माई ग्राम, करनाल, हरियाणा भाग:३७४

विश्व का एक ऐसा मन्दिर जहाँ भगवान श्री राम के बिना ही होती है माँ सीता जी की पूजा। विश्व का एक ऐसा मन्दिर जहाँ श्री रामचन्द्र जी के बिना। अक्सर हम तस्वीरों में माँ सीता और राम जी को एक साथ देखते हैं। सीता और राम की पूजा भी करते हैं।

लेकिन क्या आप जानते है कि पूरे विश्व में एक ऐसा मन्दिर भी है जहाँ बिना श्रीरामचन्द्र के ही माता सीता की पूजा होती है। रहस्यमयी तरीके से लकवाग्रस्त मरीज़ ठीक हो जाते हैं। मेरे बचपन के मित्र जिन्हें प्यार से निक्के निक्कू या निक्का कहते हैं, श्री विजय कुमार राय जी फ़रीदाबाद के रहवासी हैं, सूरदास जी के प्रसिद्ध सीही गाँव, जहाँ मेरी आदरणीय माताजी मुख्य अध्यापिका थी। वहाँ रहते हैं विजय कुमार रॉय।

विजय कुमार राय जी की धर्मपत्नी रत्ना रॉय जी को अचानक अधरँग मार गया। मुँह टेड़ा हो गया। किसी के बताने पर अपनी कार से नेविगेशन के ज़रिये पहुँच गए सीतामाई गाँव। सीतामाई गाँव पहुँच कर इन्होंने एक ग्रामवासी से पूछा, तो वह ग्रामवासी साथ हो लिया। मन्दिर में जोत जलाकर प्रणाम किया, वो ग्रामीण राहगीर अपने घर ले गया।

चाय नाश्ते के बाद ही जाने दिया। जब विजय को इस लेख के लेखक पँ० ज्ञानेश्वर हँस “देव” के बारे में पता लगा कि ज्ञानेश्वर को भी फ़ालिश यानी अधरँग हो गया है तो श्री विजय कुंमार राय जी ने दूरभाष पर जो बताया वो पाठकों को अचम्भित करने वाला है। सीतामाई गाँव में पूजा करने के बाद जैसे ही वो दिल्ली की ओर बढ़े, विजय कुमार रॉय जी की धर्मपत्नी श्रीमती रत्ना रॉय जी का टेढ़ा मुँह, यकबयक सीधा होने लगा और वाक़ई मुँह पहले जैसा शेप में आ गया। विजय का कहना है कि पण्डित जी, सीतामाई गाँव मन्दिर में पूजा करना एक तरह का टूणा टोटका है। वहाँ जाकर माथा टेकने से धूप दीप से माँ सीता जी की कृपा से पैरालाइज्ड पेशेन्ट बिल्कुल ठीक हो जाते हैं।

कोई भी मरीज़, सीतामाई का ग्रामीण आने वाले श्रद्धालु को पूजा कराते हैं व अपने घर ले जाकर भोजन चाय नाश्ते के बिना आने नहीँ देते। विजय कुमार रॉय ने वायदा किया है कि वो ले जाएँगे अपनी कार से सीतामाई गाँव। बोले चलो कब चलना है तो मैंने कहा मेरे मित्र सतीश भारद्वाज अपनी पुत्री छवि (मिनी) का विवाह करने अमेरिका से भारत आए हुए हैं, 30नवम्बर से 2दिसम्बर तक शिमला कालका मार्ग पर जाना है, वो बोले मैं भी दुबई जा रहा हूँ सपरिवार, आने के बाद आपको लेकर चलते हैं सीतामाई गाँव। आप बिल्कुल भले चन्गे हो जाएँगे।

अगर आप रामचरितमानस पढ़ते या सुनते हैं, रामायण देखे हैं तो आप जानते ही हैं कि भगवान श्री राम और माता सीता के दो पुत्र हुए, लव और कुश। फिर ये भी जानते होंगे कि लव-कुश का जन्म कहां हुआ था? तो आप बताएँगे कि वाल्मीकि आश्रम में। लेकिन क्या आप जानते यह वाल्मीकि आश्रम कहाँ था? कोई बात नहीं, हम आपको बताएँगे कि यह आश्रम कहां था।

इस मन्दिर में सीता के साथ नहीं हैं भगवान श्री राम। यह आश्रम मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के मुंगावली तहसील के करीला गाँव में था। यहाँ पर एक मन्दिर है, जिसे करीला माता मन्दिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। इस मंदिर में माता सीता की तो पूजा की जाती है लेकिन भगवान राम की पूजा नहीं होती। यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित नहीं की गई है।

हर मन्नत पूरी होती है मान्यता है कि इस मन्दिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूरी हो जाती है। मन्नत पूरा होने के बाद लोग श्रद्धा के साथ यहाँ राई और बधाई नृत्य करवाते हैं। कहा जाता है कि इसके लिए बेड़िया जाति की महिलाएं मन्दिर में नृत्य करती हैं। इस मन्दिर में ही माता जानकी के साथ ही वाल्मीकि और लव-कुश की भी प्रतिमाएं हैं। सीता मैया के ही परिणामस्वरूप हनुमान जी को चिरन्जीवी होने का मूल मन्त्र दोय था। शिवशँकर के अँश हैं हनुमानजी।

कल्याणकारी जानकी स्तोत्र, देता है अपार धन और ऐश्वर्य। धार्मिक शास्त्रों में मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रभु श्रीराम एवँ माता सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे १६ महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। इसके साथ ही जानकी स्तोत्र का पाठ नियमित करने से मनुष्य के सभी कष्टों का नाश होता है। इसके पाठ से माता सीता प्रसन्न होकर धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति कराती है।

जानकी स्तोत्र :

नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम्।
शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।।

– नील कमल-दल के सदृश जिनके नेत्र हैं, जिन्हें श्रीराम की भुजा का ही अवलंबन है, जो प्रज्वलित अग्नि में अपनी पवित्रता की परीक्षा देना चाहती हैं, उन रामप्रिया श्रीसीता माता की मैं मन-ही-मन में भावना (ध्यान) करता हूं।

रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
जानकी स्तोत्र
नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम्।
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शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।

रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।

कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्त्रग-सुधाकरद्युतिम्।
वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।

कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम्।
तद्दहाङ्गमिति पावकं यतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।।

इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकै: सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि।
पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घ्रिकां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।

संचयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम्।
तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम्।।

।।इति जानकीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

जानकी स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित :

नील कमल-दल के सदृश जिनके नेत्र हैं, जिन्हें श्रीराम की भुजा का ही अवलंबन है, जो प्रज्वलित अग्नि में अपनी पवित्रता की परीक्षा देना चाहती हैं, उन रामप्रिया श्रीसीता माता का मैं ध्यान करता हूं।

जिनके नेत्र श्रीरामजी के चरणों की ओर निश्चल रूप से लगे हुए हैं, जिन्होंने अपनी अङ्गकान्ति से सुवर्ण को मात कर दिया है तथा ताटका के वैरी श्रीरामजी के द्वारा दुष्टों के प्रति कहे गए कटु वचनों से जो घबराई हुई हैं, उन श्रीरामजी की प्रेयसी श्री सीता मां की मैं मन में भावना करता हूं।

जो लज्जा से हतप्रभ हुईं अपने उस मुख को, जिनके कपोल उनके बिथुरे हुए बालों से उसी प्रकार आवृत हैं, जैसे चन्द्रमा राहु द्वारा ग्रसे जाने पर अंधकार से आवृत हो जाता है, वस्त्र से ढंक रही हैं, उन राम-पत्नी सीताजी का मैं मन में ध्यान करता हूं।

जो मन-ही-मन यह कहती हुई कि यदि मैंने श्रीरघुनाथ के अतिरिक्त किसी और को अपने शरीर, वाणी अथवा मन में कभी स्थान दिया हो तो हे अग्ने! मेरे शरीर को जला दो अग्नि में प्रवेश कर गईं, उन रामजी की प्राणप्रिय सीताजी का मैं मन में ध्यान करता हूं।

उत्तम विमानों में बैठे हुए इन्द्र, रुद्र, कुबेर और वरुण द्वारा पुष्पवृष्टि के अनंतर जिनके चरणों की भली-भांति स्तुति की गई है, उन श्रीराम की प्यारी पत्नी श्रीसीता माता की मैं मन में भावना करता हूं।

अग्नि-शुद्धि के समय विमानों में बैठे हुए देवगण विस्मयाविष्ट चित्त से जिनकी ओर देख रहे थे और जो अपने तेज से दसों दिशाओं को आच्छादित कर रही थीं, उन रामवल्लभा श्री सीता मां का मैं ध्यान करता हूं।

!!जानकी स्तोत्र सम्पूर्णं इति !!

 पता :

सीता माई मन्दिर, गाँव: सीतामाई, करनाल, हरियाणा।

हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :

हवाई मार्ग से इन्दिरगाँधी अंतरराष्ट्रिय हवाई अड्डा से सीतामाई मन्दिर कैब द्वारा १६४.१ किलोमीटर की दूरी से ४ घण्टे ३१ मिन्टस में आसानी से पहुँच जाओगे माँ सीतामाई मन्दिर!

लोहपथगामिनी मार्ग से कैसे पहुँचें :

करनाल रेलवेस्टेशन तक रेल से पहुँचें, वहाँ से करनाल सीतामाई रोड़ से सीतामाई मन्दिर कैब या ऑटो रिक्शा से २३ मिन्टर्स की यात्रा करके ३२ मिन्ट्स में पहुँच सकते हो माँ सीतामाई मन्दिर।

सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :

दिल्ली के ISBT से आप अपनी कार बाइक या बस से आते हैं तो होते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग ७०९-B द्वारा आप १६४.१ किलोमीटर की यात्रा करके ४ घण्टे ३१ मिन्ट्स में पहुँच सकते हैं। माँ सीतामाई मन्दिर।

माता सीता की जय हो। जयघोष हो।।

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