शिरड़ीवाले साईँ बाबा मन्दिर, तीर्थ नगर, जम्मू, जम्मू & कश्मीर भाग : ३९६
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिक स्थल : महागणपति मन्दिर, रँजनगाँव, पुणे, महाराष्ट्र। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:
शिरड़ीवाले साईँ बाबा मन्दिर, तीर्थ नगर, जम्मू, जम्मू & कश्मीर भाग : ३९६
अद्भुत अकल्पनीय मन्दिरोँ के शहर जम्मू में भव्य शिर्डीवाले साईँ बाबा मन्दिर तीर्थ नगर के ए सेक्टर में स्थित है साईँ बाबा का भव्य मन्दिर। साईं बाबा की जय। शिरडीवाले साईं बाबा, जिन्हें शिरडी साईं बाबा के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु हैं, जिन्हें उनके भक्त श्री दत्तगुरु की अभिव्यक्ति मानते हैं और सन्त और फकीर के रूप में पहचाने जाते हैं। वह अपने हिन्दू और मुस्लिम दोनों भक्तों के साथ-साथ अपने जीवनकाल के बाद भी पूजनीय हैं।
जा जा जा जा श्री साईं बाबा जा जा जा जा जा जा जा जा जा जा जा श्री साईं बाबा जा जा जा जा जा जा साईं बाबा साईं बाबा आ
ओम साई राम। यह बाबा और भक्तोँ के बीच सँचार का वास्तविक स्थान है। जब से मैं साईँ से जुड़ा हूं मैंने अपने साथ कई चमत्कार देखे हैं। मन्दिर में सभी हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। साईं बाबा मन्दिर साईं नाथ की मुख्य इमारत के लिए प्रसिद्ध है। इसमें बैठने और पूजा करने की अच्छी व्यवस्था है। इसमें तहखाने में कुछ मूर्तियाँ हैं और मन्दिर की पहली मन्ज़िल पर कुछ भगवान हैं। ग्राउंड फ्लोर पर श्री साँई बाबा की मुख्य मूर्ति और श्री गणेश जी, शनिदेव जी और माँ काली की मूर्ति है।
श्री भगवान साईं बाबा जी यहाँ साक्षात रहते हैं। जम्मू शहर के सुन्दर मन्दिरों में से एक मन्दिर है। यहाँ आने पर साईँ भक्तों को कितनी शाँति मिलती है। वह केवल यहाँ आनेवाला ही जान सकता है। अन्य दिनों की अपेक्षा प्रत्येक साईँ वार अर्थात गुरुवार को बड़ी सँख्या में भक्तवत्सल साईँ के दर्शन करने आते हैं और बाबा से अपनी मनोकामना पूछते हैं। कई भक्त बाबा को कहते हैं “लव यू बाबा”!
यह एक धार्मिक स्थान है। हर दिन बड़ी सँख्या में भक्त यहां भगवान साईं बाबा के दर्शन के लिए आते हैं। यह मन्दिर पुराना है और सभी भक्तों के लिए अच्छा है यह साईं बाबा का एक पवित्र मन्दिर है यहाँ गुरुवार को बड़ी सँख्या में लोग आते हैं और तरह तरह के भोजन से भण्डारा भी करते हैं। वह दृश्य अनुपम एवँ दिव्य जान पड़ते हैं जब साईँ बाबा की पालकी निकाली जाती है। साईँ बोल बाबा बोल बाबा बोल साईँ बोल से एवँ सुगन्धित पुष्पों की भाव भीनी छटाओं से मन्दिर का प्रांगण महक उठता है, मानो स्वयँ साईँ बाबा प्रकट होकर दिव्य दर्श दे कर जनजन के कष्ट पाप सन्ताप मिटाकर मार्ग प्रशस्त करते हैं। ॐ साईँ राम। ॐ साईँ राम। साईँ सच्चरित्र अध्याय पाँच “नीम वृक्ष के नीचे पादुकाओं की कथा” :
श्री अक्कलकोटकर महाराज के एक भक्त, जिनका नाम भाई कृष्ण जी अलीबागकर था, उनके चित्र का नित्य-प्रति पूजन किया करते थे । एक समय उन्होंने अक्कलकोटकर (शोलापुर जिला) जाकर महाराज की पादुकाओं का दर्शन एवं पूजन करने का निश्चय किया । परन्तु प्रस्थान करने के पूर्व अक्कलकोटकर महाराज ने स्वपन में दर्शन देकर उनसे कहा कि आजकल शिरडी ही मेरा विश्राम-स्थल है और तुम वहीं जाकर मेरा पूजन करो । इसलिये भाई ने अपने कार्यक्रम में परिवर्तन कर शिरडी आकर श्री साईबाबा की पूजा की । वे आनन्दपूर्वक शिरडी में छः मास रहे और इस स्वप्न की स्मृति-स्वरुप उन्होंने पादुकायें बनवाई । शक संवत १८३४ में श्रावण में शुभ दिन देखकर नीम वृक्ष के नीचे वे पादुकायें स्थापित कर दी गई । दादा केलकर तथा उपासनी महाराज ने उनका यथाविधि स्थापना-उत्सव सम्पन्न किया । एक दीक्षित ब्राहृमण पूजन के लिये नियुक्त कर दिया गया और प्रबन्ध का कार्य एक भक्त सगुण मेरु नायक को सौंप गया ।
कथा का पूर्ण विवरण :
ठाणे के सेवानिवृत मामलतदार श्री.बी.व्ही.देव जो श्री साईबाबा के एक परम भक्त थे, उन्होंने सगुण मेरु नायक और गोविंद कमलाकर दीक्षित से इस विषयमें पूछताछ की । पादुकाओं का पूर्ण विवरण श्री साई लीला भाग ११, संख्या १, पृष्ठ २५ में प्रकाशित हुआ है, जो निम्नलिखित है – शक १८३४ (सन् १९१३) में बम्बई के एक भक्त डाँ. रामराव कोठारे बाबा के दर्शनार्थ शिरडी आये । उनका कम्पाउंडर और उलके एक मित्र भाई कृष्ण जी अलीबागकर भी उनके साथ में थे । कम्पाउंडर और भाई की सगुण मेरु नायक तथा जी. के. दीक्षित से घनिष्ठ दोस्ती हो गई । अन्य विषयों पर विवाद करता समय इन लोगों को विचार आया कि श्री साई बाबा के शिरडी में प्रथम आगमन तथा पवित्र नीम वृक्ष के नीचे निवास करने की ऐतिहासिक स्मृति के उपलक्ष्य में क्यों न पादुकायें स्थापित की जायें । अब पादुकाओं के निर्माण पर विचार विमर्श होने लगा । तब भाई के मित्र कम्पाउंडर ने कहा कि यदि यह बात मेरे स्वामी कोठारी को विदित हो जाय तो वे इस कार्य के निमित्त अति सुन्दर पादुकायें बनवा देंगे । यह प्रस्ताव सबको मान्य हुआ और डाँ. कोठारे को इसकी सूचना दी गई । उन्होंने शिरडी आकर पादुकाओं की रुपरेखा बनाई तथा इस विषय में उपासनी महीराज से भी खंडोवा के मंदिर में भेंट की । उपासनी महाराज ने उसमेंबहुत से सुधार किये और कमल फूलादि खींच दिये तथा नीचे लिखा श्लोक भी रचा, जो नीम वृक्ष के माहात्म्य व बाबा की योगशक्ति का घोतक था, जो इस प्रकार है –
सदा निंबवृक्षस्य मूलाधिवासात्
सुधास्त्राविणं तित्तमप्यप्रियं तम् ।
तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयन्तं
नमानीश्वरं सद्गगुरुं साईनाथम् ।।
अर्थात् मैं भगवान साईनाथ को नमन करता हूँ, जिनका सानिध्य पाकर नीम वृक्ष कटु तथा अप्रिय होते हुए भी अमृत वर्षा करता था। (इस वृक्ष का रस अमृत कहलाता है) इसमें अनेक व्याधियों से मुक्ति देने के गुण होने के कारण इसे कल्पवृक्ष से भी श्रेष्ठ कहा गया है ।
उपासनी महाराज का विचार सर्वमान्य हुआ और कार्य रुप में भी परिणत हुआ । पादुकायें बम्बई में तैयार कराई गई और कम्पाउंडर के हाथ शिरडी भेज दी गई । बाबा की आज्ञानुसार इनकी स्थापना श्रावण की पूर्णिमा के दिन की गई । इस दिन प्रातःकाल ११ बजे जी.के. दीक्षित उन्हें अपने मस्तक पर धारण कर खंडोबा के मंदिर से बड़े समारोह और धूमधाम के साथ दृारका माई में लाये । बाबा ने पादुकायें स्पर्श कर कहा कि ये भगवान के श्री चरण है । इनकी नीम वृक्ष के नीचे स्थापना कर दो । इसके एक दिन पूर्व ही बम्बई के एक पारसी भक्त पास्ता शेट ने २५ रुपयों का मनीआर्डर भेजा । बाबा ने ये रुपये पादुकाओं की स्थापना के निमित्त दे दिये । स्थापना में कुल १०० रुपये हुये, जिनमें ७५ रुपये चन्दे दृारा एकत्रित हुए ।
प्रथम पाँच वर्षों तक डाँ. कोठारे दीपक के निमित्त २ रुपये मासिक भेजते रहे । उन्होंने पादुकाओं के चारों ओर लगाने के लिये लोहे की छडे़ भी भेजी । स्टेशन से छड़े ढोने और छप्पर बनाने का खर्च (७ रु. ८ आने) सगुण मेरु नायक ने दिये । आजकल जरबाड़ी (नाना पुजारी) पूजन करते है और सगुण मेरु नायक नैवेघ अर्पण करते तथा संध्या को दीहक जलाते है । भाई कृष्ण जी पहले अक्कलकोटकर महाराज के शिष्य थे ।
अक्कलकोटकर जाते हुए, वे शक १८३४ में पादुका स्थापन के शुभ अवसर पर शिरडी आये और दर्शन करने के पश्चात् जब उन्होंने बाबा से अक्कलकोटकर प्रस्थान करने की आज्ञा माँगी, तब बाबा कहने लगे, अरे अक्कलकोटकर में क्या है । तुम वहाँ व्यर्थ क्यों जाते हो । वहाँ के महाराज तो यही (मैं स्वयं) हैं यह सुनकर भाई ने अक्कलकोटकर जाने का विचार त्याग दिया। पादुकाएँ स्थापित होने के पश्चात् वे बहुधा शिरडी आया करते थे। श्री बी.व्ही, देव ने अंत में ऐसा लिखा है कि इन सब बातों का विवरण हेमाडपंत को विदित नहीं था। अन्यथा वे श्री साई सच्चरित्र में लिखना कभी नहीं भूलते।
मोहिद्दीन तम्बोली के साथ कुश्ती और जीवन परिवर्तन क्रमशः साईँ सच्चरित्र अध्याय पाँच का शेष भाग क्रमशः
पता :
शिरड़ीवाले साईँ बाबा मन्दिर, सेक्टर – ए, तीर्थ नगर, जम्मू & कश्मीर पिनकोड : 180002
हवाई मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
हवाई जहाज़ से जाने पर, निकटतम हवाई अड्डा जम्मू का एयरपोर्ट है। आप कैब या कोई सार्वजनिक परिवहन ले सकते हैं जो आपको आसानी से जम्मू के साईँ मन्दिर ले जाएगा। ०९.२ किलोमीटर को दूरी तय करके ० घण्टा २५ मिनट्स में आप आसानी से पहुँचोगे साईँ मन्दिर।
रेल मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
ट्रेन द्वारा मुख्य रेलवे स्टेशन जम्मू तवी जंक्शन रेलवे स्टेशन है। जिससे बस, टैक्सी और ऑटो रिकशा द्वारा पहुंचा जा सकता है आप आसानी से ० घण्टा २५ मिनट्स में वाया आर० एस० पुरा मार्ग से ०९.२ किलोमीटर की दूरी तय करके ० घण्टा २५ मिनट्स में पहुँच जाओगे साईँ मन्दिर।
सड़क मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
ISBT से आने के लिए बस, अपनी कार या बाईक से आते हैं तो NH ४४ राष्ट्रीय राजमार्ग द्वारा ५९६.३ किलोमीटर दूरी तय करके आप ११ घण्टे में पहुँच जाओगे साईँ मन्दिर।
*श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईंनाध् महाराज् की जय राजाधिराज योगिराज परब्रह्म साईंनाध् महराज् श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईंनाध् महाराज् की जय हो। जयघोष हो।।