शनि मन्दिर, निकट-बिन्दा पुर, उत्तम नगर, नई दिल्ली भाग :४४५
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा, भारत के धार्मिक स्थल : शक्तिपीठ माँ राज राजेश्वरी देवी मन्दिर, अम्बेडकर नगर, इन्दौर, मध्यप्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट अथवा रह गया हो तो आप कृप्या करके प्रजाटूडे की वेबसाइट पर जाकर www.prajatoday.com पर जाकर धर्मसाहित्य पृष्ठ पर पढ़ दसकते हैं:
शनि मन्दिर, निकट-बिन्दा पुर, उत्तम नगर, नई दिल्ली भाग :४४५
यह स्थान इतना धार्मिक है और यह स्थान आस-पास के क्षेत्रों में धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है। शनि देव महाराज का यह प्रसिद्ध मन्दिर, भगवान शनि मन्दिर के बाहर स्थित है, बहुत भीड़भाड़ वाला स्थान है।
आप ही बताएं कि खुद को संत कहने वाले लोगों ने बनवाया मन्दिर। वे व्यक्तिगत कल्याण के लिए पैसा कमाने के लिए दूसरी और तीसरी मन्ज़िल पर पार्टीयों की जगह चलाते हैं।
मन्दिर परिसर बिल्कुल भी साफ नहीं है। ऐसी गन्दी जगह देखकर शर्म आती है। पंडित मंदिर में ही गपशप करते बैठते हैं। उन्हें कभी सफाई करते नहीं देखा।
पूरे बिंदापुर, मधु विहार और महावीर एन्क्लेव में सबसे प्रसिद्ध मन्दिर यह छोटा लेकिन अच्छा है। मदर डेयरी के पास है उक्त शनि मन्दिर।
भूतल में मन्दिर और बाहर शनि मन्दिर है। पहली और दूसरी मन्ज़िल धर्मशाला और वैदिक ज्योतिष विद्या का कार्यालय है।
शनि मन्दिर परिसर से शिकायत है कि कृपया साफ सफाई पर भी ध्यान दे। मन्दिर का कार्पेट इतना मैला हो गया है और शिवलिंग पर जल अर्पित करने के लिए जो एरिया है वहाँ हमेशा ही बहुत सारा पानी गिरा रहता है। भक्त जनों से अनुरोध है, गन्दगी करते हैं मगर मन्दिर समिति भी साफ सफाई का कुछ खास खयाल नहीं रखती है। यह मन्दिर में रोज़ाना इतने भक्तजन आते हैं, फिर भी यहाँ सफाई क्योँ नहीं रहती।शनि मंदिर उत्तम नगर भक्तजनों हेतु प्रसिद्ध मन्दिर है, भगवान श्री शनि मन्दिर के बाहर स्थित है, बहुत भीड़भाड़ वाला स्थान है।बिल्कुल भी साफ नहीं है। ऐसी गन्दी जगह देखकर शर्म आती है। पंडित मंदिर में ही गपशप करने बैठते हैं। उन्हें कभी सफाई करते नहीं देखा।
पूरे बिंदापुर और मधु विहार और महावीर एन्क्लेव में सबसे प्रसिद्ध मंदिर यह छोटा लेकिन अच्छा है। मदर डेयरी के पास शनि मंदिर।
भूतल में मंदिर और बाहर शनि मंदिर है। पहली और दूसरी मंजिल धर्मशाला और वैदिक ज्योतिष विद्या है।
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सँसार के न्यायधीश शनिदेव की उत्त्पति कैसे हुई :
शनि देव के बारे में पौराणिक कथाओं में यह उल्लेख मिलता है कि वे सूर्य देव के पुत्र हैं। कहानी कुछ इस प्रकार है कि राजा विश्वकर्मा की पुत्री सँज्ञा का विवाह सूर्य देव से हुआ था। सूर्य देव से विवाह तो हो गया परन्तु सँज्ञा में सूर्य के तेज का भय बन गया। हालाँकि सूर्य देव और सँज्ञा की तीन संताने हुई – वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना। तीन सँताने होने के बावजूद सँज्ञा का डर कम नहीं हुआ।
सँज्ञा के इसी डर के कारण उन्होंने अपनी छाया को जन्म दिया और अपने बच्चों की देखभाल के लिए छाया को छोड़कर चली गईं। छाया होने की वजह से उसे सूर्य के तेज से भी किसी तरह की दिक्कत नहीं थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थें उस समय सँज्ञा की छाया भगवान शंकर की भक्ति में अत्यधिक लीन हो गई थी। इसके कारण उन्हें खाने पीने तक का होश नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि शनिदेव का वर्ण काला हो गया।
शनि देव के वर्ण को देख सूर्य देव को शक था कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता इसलिए उन्होंने शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। वहीँ छाया द्वारा की गई तपस्या की सारी शक्ति शनिदेव में पहुँच चुकी थी। अतः अपने पिता के यह शब्द सुनकर शनि क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपनी दृष्टि सूर्य देव पर डाली। जिससे सूर्य देव काले पड़ गए। सूर्य देव अपना हाल लेकर देवाधिदेव भगवान शिव शँकर की शरण में पहुंचे। भगवान शँकर ने सूर्य को गलती बताई और फिर क्षमा याचना के बाद जाकर सूर्य देव ठीक हुए। पौराणिक काल की इस घटना के बाद से ही शनिदेव को पिता विरोधी माना जाता है।
शनि देव न्याय करते है।
व्यक्ति को उसके कर्म के आधार पर फल देने वाले देवता शनि हैं इन्हें न्यायधीश की उपाधि भी दी गई है। अच्छे कर्मों का फल शुभ और बुरे कर्मों का फल अशुभ प्रदान करने वाले शनि की छवि नकारात्मक स्वरुप में अधिक प्रचलित है जबकि वे व्यक्ति के कर्मों के मध्य संतुलन बनाते है और मोक्ष का द्वार अख्तियार करते हैं।
घर पर शनिदेव की पूजा कैसे करें :
1. प्रातःकाल स्नान कर शनिदेव की प्रतिमा के आगे तेल का जलाएं।
2. ध्यान रहे कि प्रतिमा के बिल्कुल सामने खड़े होकर पूजा न करें।
3. साथ ही शनि भगवान को आक के फूल या अपराजिता के फूल चढ़ाएं।
4. भोग में मीठी पूरी, काला तिल और उड़द की खिचड़ी अर्पित करें।
5. फिर शनिदेव की आरती और चालीसा का पाठ करें।
6. शनि के बीज मंत्र का 11 बार जाप करना चाहिए।
7. इस विधि का पालन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
शनि के प्रभाव से क्या होता है?
इन दोषों की वजह से व्यक्ति के जीवन पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ने शुरू हो जाते है। शनि दोष के लक्षण हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव डालते है जैसे :
1. बालों का अत्यधिक तेजी से और कम उम्र में झड़ना,
2. ललाट पर कालापन छाना,
3. व्यवसाय में गड़बड़ी और पारिवारिक संबंध बिगड़ना,
4. बुरी लत जैसे सट्टेबाजी, जुआ और गलत काम की तरफ आकर्षण बढ़ना,
5. मांस मदिरा का सेवन करना आदि सभी शनि के प्रभाव है।
शनि दोष हटाने के लिए क्या करना चाहिए?
शनि दोषों से छुटकारा पाने के लिए शनि यन्त्र या यन्त्र रूपी लॉकेट का प्रयोग किया जाना चाहिए। लॉकेट में अद्भुत शक्ति लिए शनिदेव से संबंधित दोषों जैसे शनि की साढ़े साती और शनि ढैय्या को कम या बिल्कुल खत्म करने का कार्य है। शनि यन्त्र को प्रयोग में लाने से पहले उसकी नियमित तौर पर पूजा अर्चना किया जाना बहुत ज़रुरी है।
शनि यन्त्र को पूजने की विधि :
1. यन्त्र लॉकेट धारण करने के लिए शनिवार का दिन सबसे शुभ है।
2. इस दिन शनि यन्त्र लॉकेट को शनिदेव की प्रतिमा के साथ रखें और उसपर गंगाजल का छिड़काव करें।
3. उसके बाद दीपक और धूप जलाकर शनि के समक्ष फल-फूल अर्पित करें।
4. फिर शनि बीज मंत्र जाप 11 या 21 बार करें।
‘ॐ शं शनैश्चराय नम:’
5. इस तरह विधिवत पूजा के बाद शनि यन्त्र लॉकेट को धारण करना चाहिए।
शनि मंदिर में क्या चढ़ाना चाहिए?
शनि मंदिर में पीपल के पेड़ और शनि देव पर सरसों का तेल और काला तिल चढ़ाना चाहिए। साथ ही गुड़ भी अर्पित करें।
शनि देव को क्या भोग लगाएं?
शनिदेव को भोग में काली उड़द की खिचड़ी, मीठी पूरी और काले तिल के लड्डू चढ़ाएं। इससे शनिदेव अत्यधिक प्रसन्न होंगे।
शनि पूजा में क्या-क्या सामान लगता है?
शनि पूजा में लोहे या मिटटी का मिट्टी का दीपक, काला तिल, सरसों का तेल, उड़द की दाल, नीले रंग का फूल, काले वस्त्र आदि आवश्यक है।
शनि देव को क्या प्रिय है?
शनिदेव को सर्वप्रिय काली वस्तुएं हैं इसलिए शनिवार के दिन काली वस्तुएं या पदार्थ ही उन्हें अर्पित किये जाते हैं।
छाया दान करने से क्या होता है?
शनिदेव से सम्बंधित सभी दोषों से मुक्ति पाने के लिए छाया दान किये जाने की प्रथा सदियों से प्रचलन में है। छाया दान के लिए मिट्टी के एक मर्तबान में सरसों का तेल डालकर और उसमें अपनी छाया देखकर यह दान संपन्न किया जाता है।
शनि देव के कितने भाई थे?
शनिदेव के चार भाई है – वैवस्वत मनु, यमराज, अश्वनीकुमार, कर्ण
शनिदेव की बहन कौन है?
शनिदेव की तीन बहनें हैं – भद्रा , कालिंदी यमुना
शनि देव के पुत्र का क्या नाम था?
सूर्य देव और छाया के पुत्र कहलाने वाले शनि देव के पुत्र का नाम मांडी और कुलिगन था। बता दें कि शनि देव की दो पत्नियां थी नीलिमा और दामिनी। नीलिमा से पुत्र कुलिगन और दामिनी से पुत्र मांडी का जन्म हुआ था।
शनि भगवान को कौन सा फूल पसंद है?
शनिदेव को आक का फूल और नीले रंग में अपराजिता का फूल बेहद पसंद है। माना जाता है कि 5 नीले रंग का फूल अर्पित करने से शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
शनि व्रत में क्या खाना चाहिए?
शनिवार के व्रत में मीठे पदार्थ खाने चाहिए। ध्यान रहे कि इस दिन नमकीन चीजे खानी वर्ज्जित हैं।
सँसार के न्यायधीश शनिदेव की उत्त्पति कैसे हुई :
शनि देव के बारे में पौराणिक कथाओं में यह उल्लेख मिलता है कि वे सूर्य देव के पुत्र हैं। कहानी कुछ इस प्रकार है कि राजा विश्वकर्मा की पुत्री सँज्ञा का विवाह सूर्य देव से हुआ था। सूर्य देव से विवाह तो हो गया परन्तु सँज्ञा में सूर्य के तेज का भय बन गया। हालाँकि सूर्य देव और सँज्ञा की तीन संताने हुई – वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना। तीन सँताने होने के बावजूद सँज्ञा का डर कम नहीं हुआ।
सँज्ञा के इसी डर के कारण उन्होंने अपनी छाया को जन्म दिया और अपने बच्चों की देखभाल के लिए छाया को छोड़कर चली गईं। छाया होने की वजह से उसे सूर्य के तेज से भी किसी तरह की दिक्कत नहीं थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थें उस समय सँज्ञा की छाया भगवान शंकर की भक्ति में अत्यधिक लीन हो गई थी। इसके कारण उन्हें खाने पीने तक का होश नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि शनिदेव का वर्ण काला हो गया।
शनि देव के वर्ण को देख सूर्य देव को शक था कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता इसलिए उन्होंने शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। वहीँ छाया द्वारा की गई तपस्या की सारी शक्ति शनिदेव में पहुँच चुकी थी। अतः अपने पिता के यह शब्द सुनकर शनि क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपनी दृष्टि सूर्य देव पर डाली। जिससे सूर्य देव काले पड़ गए। सूर्य देव अपना हाल लेकर देवाधिदेव भगवान शिव शँकर की शरण में पहुंचे। भगवान शँकर ने सूर्य को गलती बताई और फिर क्षमा याचना के बाद जाकर सूर्य देव ठीक हुए। पौराणिक काल की इस घटना के बाद से ही शनिदेव को पिता विरोधी माना जाता है।
शनि देव न्याय करते है।
व्यक्ति को उसके कर्म के आधार पर फल देने वाले देवता शनि हैं इन्हें न्यायधीश की उपाधि भी दी गई है। अच्छे कर्मों का फल शुभ और बुरे कर्मों का फल अशुभ प्रदान करने वाले शनि की छवि नकारात्मक स्वरुप में अधिक प्रचलित है जबकि वे व्यक्ति के कर्मों के मध्य संतुलन बनाते है और मोक्ष का द्वार अख्तियार करते हैं।
पता :
J24, शनि मन्दिर, निकट-बिन्दा पुर, उत्तम नगर, नई दिल्ली, पिनकोड : 110059 भारत।
हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :
पालम दिल्ली के इन्दिरगाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से कैब द्वारा द्वारका मार्ग से 8.6 किलोमीटर की दूरी तय करके 24 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे शनि मन्दिर।
मेट्रो मार्ग से कैसे पहुँचें :
उत्तम नगर मेट्रो स्टेशन से कैब द्वारा शिवजी मार्ग होते हुए 3.4 किलोमीटर की दूरी तय करके 16 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे शनि मन्दिर।
सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :
आप ISBT इन्टर स्टेट बस टर्मिनल द्वारा बस अथवा अपनी कार से 24 किलोमीटर की दूरी तय करके वाया रोहतक मार्ग 1 घण्टा 20 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे शनि मन्दिर।
शनि देव महाराज की जय हो। जयघोष हो।।