भारत के धार्मिक स्थल: श्री गोपेश्वर महादेव मन्दिर, वृन्दावन भाग: १०६
आपने पिछले भाग में पढ़ा : भारत के प्रसिद्ध धार्मिकस्थल : श्री राधा रमण मन्दिर, वृन्दावन उत्तर प्रदेश! यदि आपसे यह लेख छूट गया हो और आपमें पढ़ने की जिज्ञासा हो तो आप प्रजा टुडे की वेबसाइट पर धर्म-सहित्य पृष्ठ पर जा कर पढ़ सकते हैं! आज हम आपको बता रहे हैं:
भारत के धार्मिक स्थल: श्री गोपेश्वर महादेव मन्दिर, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश, भाग:१०६
वो रात शरद पूर्णिमा की उज्ज्वल चाँदनी में वँशी-वट यमुना के किनारे श्री श्याम सुन्दर साक्षात मन्मथ नाथ की वँशी यकबयक बज उठी! श्रीकृष्ण जी ने छ: मास की एक रात्रि करके मन्मथ का मान मर्दन करने के लिए महा रास की लीला की! जब महा-रास की गूँज सारी त्रिलोकी में गई, तो हमारे भोले बाबा के कानों में भी महा-रास की गूँजकी धमक सुनाई दी! श्री मदन मोहन की मीठी मुरली ने कैलाश पर विराजमान भगवान श्री शँकर को भी मोह लिया, महादेव की समाधि भँग हो गयी! बाबा भोलेनाथ वृन्दावन की ओर बाँवरे होकर ऐसे दौड़ पड़े मानो शीघ्र न पहुँचे तो सृष्टि में आना सृष्टि की सँरचना आधी अधूरी रह जाएगी!
पार्वती जी भी मना मना कर हार गयीं, किन्तु त्रिपुरारि माने नहीं! भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त श्री आसुरि मुनि, पार्वती जी, नन्दी, श्रीगणेश, श्री कार्तिकेय के साथ भगवान शँकर वृन्दावन के वँशीवट पर आ गये! वँशीवट जहाँ महा रास हो रहा था, वहाँ गोलोक-वासिनी गोपियाँ द्वार पर खड़ी हुई थीं! पार्वती जी तो महा रास में अँदर प्रवेश कर गयीं, किंतु द्वार पालिकाओं ने श्री महादेव जी और श्री आसुरि मुनि को अँदर जाने से रोक दिया, बोलीं: श्रेष्ठ जनों, श्री कृष्ण के अतिरिक्त अन्य कोई भी पुरुष इस एकाँत महा रास में प्रवेश नहीं कर सकता!
देवाधिदेव श्री शिवशँकर जी बोले: “देवियों, हमें भी श्री राधा-कृष्ण के दर्शनों की लालसा है, अत: आप ही लोग कोई उपाय बताइये, जिससे कि हम महाराज श्री के दर्शन पा सकें?”
हमारे आदरणीय पिताजी श्री १०८ योगीराज रामजीलाल जी महाराज हमेशा शरद-पूर्णिमा को खीर बनवाकर चन्द्रमा की रौशनी में रखते थे!
ललिता नामक सखी बोली: “यदि आप महा-रास देखना चाहते हैं तो गोपी बन जाइए” मानसरोवर में स्नान कर शिव जी गोपी का रूप धारण करके महा-रास में प्रवेश किया जा सकता है” फिर क्या था, भगवान शिव अर्ध नारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये!
श्री यमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया, तो सुन्दर बिंदी, चूड़ी, नुपुर, ओढ़नी और ऊपर से एक हाथ का घूँघट भी भगवान शिव का कर दिया! साथ में युगल मन्त्र का उपदेश भगवान शिव के कान में किया हैं! प्रसन्न मन से वे गोपी-वेष में महारास में प्रवेश कर गये!
श्री शिवजी मोहिनी-वेष में मोहन की रास-स्थली में गोपियों के मण्डल में मिलकर अतृप्त नेत्रों से विश्व मोहन की रूप-माधुरी का पान करने लगे! नटवर-वेषधारी, श्री रासबिहारी, रासेश्वरी, रसमयी श्री राधा जी एवँ गोपियों को नृत्य एवँ रास करते हुए देख नटराज भोलेनाथ भी स्वयं ता-ता-थैया कर नाच उठे! मोहन ने ऐसी मोहिनी वँशी बजायी कि सुधि-बुधि भूल गये भोलेनाथ! बनवारी से क्या कुछ छिपा है!
भगवान श्री कृष्ण शिव के साथ थोड़ी देर तो नाचते रहे लेकिन जब पास पहुँचे तो भगवान बोले की रास के बीच थोड़ा परिहास हो जाए तो रास का आनन्द दोगुना हो जायेगा! भगवान बोले की अरी गोपियों तुम मेरे साथ कितनी देर से नृत्य कर रही हो लेकिन मैंने तुम्हारा चेहरा देखा ही नहीं हैं! क्योंकि कुछ गोपियाँ घूंघट में भी हैं! गोपियाँ बोली की प्यारे आपसे क्या छुपा हैं? आप देख लो हमारा चेहरा! लेकिन जब भगवान शँकर ने सुना तो भगवान शँकर बोले कि ये कन्हैया को रास के बीच क्या सूझा, अच्छा भला रास चल रहा था मुख देखने की क्या जरुरत थी! ऐसा मन में सोच रहे थे कि आज कृष्ण-कन्हैया पर ही क्या सूझी कि कन्हैया एक-एक गोपी का मुखारविन्द देख कर ही रहेंगे!
भगवान कृष्ण बोले की गोपियों तुम सब पँक्ति बना कर खड़ी हो जाओ और मैं सबका एक-एक करके दर्शन करूँगा! भगवान शिव बोले अब तो काम बन गया! लाखों गोपियाँ हैं! मैं सबसे अँत में जाकर खड़ा हो जाऊँगा! कन्हैया मुख देखते देखते थक जाऍंगे और मेरा नम्बर क्या पता आए ही नहीँ!…सभी गोपियाँ एक पँक्ति में खड़ी हो गई! और अन्त में कृपानिधान भगवान शिवशँकर खड़े हो गए! जो कन्हैया की दृष्टि अन्त में पड़ी तो कन्हैया बोले नम्बर इधर से शुरू नही होगा नम्बर उधर से शुरू होगा! भगवान शिव बोले कि ये तो मेरा ही नम्बर आया! भगवान शिवशँकर दौड़ कर दूसरी और जाने लगे तो भगवान कृष्ण गोपियों से बोले गोपियों पीछे किसी गोपी का मैं मुख दर्शन करूँगा पहले इस गोपी का मुख दर्शन करूँगा जो मुख दिखने में इतनी लाज शर्म कर रही हैं!
इतना कहकर भगवान शिव दौड़े और दौड़कर भगवान शिव को पकड़ लिया! और घूँघट ऊपर किया और कहा आओ गोपीश्वर आओ! आपकी जय हो! बोलिए गोपेश्वर महादेव की जय! शँकर भगवान की जय!
श्री राधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गयीं! तब श्रीकृष्ण ने कहा: राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् भगवान शंकर हैं! हमारे महारास के दर्शन के लिए इन्होंने गोपी का रूप धारण किया है!
तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा, भगवन! आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया? भगवान शंकर बोले: प्रभो! आपकी यह दिव्य रस-मयी प्रेम लीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है!
इस पर प्रसन्न होकर श्री राधा जी ने श्री महादेव जी से वर माँगने को कहा तो श्री शिव जी ने यह वर माँगा: हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनों के चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो! आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं!
इसके बाद सुन्दर महारास हुआ! भगवान श्री कृष्ण ने कत्थक नृत्य किया हैं और भगवान शिव ने ताँडव! जिसका वर्णन अगर माँ सरस्वती भी करना चाहे तो नहीं कर सकती हैं! खूब आनन्द आया! भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्मा की एक रात्रि ले ली है! लेकिन गोपियाँ इसे समझ नही पाई! केवल अपनी गोपियों के प्रेम के कारण कृष्ण ने रात्रि को बढाकर इतना दीर्घ कर दिया! गोपियों ने एक रात कृष्ण के साथ अपने प्राणप्रिय पति के रूप में बिताई हैं लेकिन यह कोई साधारण रात नही थी! ब्रह्मा की रात्रि थी और लाखों वर्ष तक चलती रही! आज भी वृन्दावन में निधिवन में प्रतिदिन भगवान श्री कृष्ण रास करते हैं! कृष्ण के लिए सब कुछ करना सँभव हैं! क्योंकि वो भगवान हैं! इस प्रकार भगवान ने महारास लीला को किया है!
शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं! उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं! और उसका ह्रदय रोग भी ठीक होता हैं! रास पँचाध्यायी का अन्तिम श्लोक इस बात की पुष्टि भी करता है!
विक्रीडितं व्रतवधुशिरिदं च विष्णों: श्रद्धान्वितोऽनुुणुयादथवर्णयेघः भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं हृद्रोगमाश्वहिनोत्यचिरेण धीरः
भगवान श्रीकृष्ण ने तथास्तु कहकर कालिन्दी के निकट निकुंज के पास, वंशीवट के सम्मुख भगवान महादेवजी को श्रीगोपेश्वर महादेव के नाम से स्थापित कर विराजमान कर दिया! श्रीराधा-कृष्ण और गोपी-गोपियों ने उनकी पूजा की और कहा कि ब्रज-वृंदावन की यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब व्यक्ति आपके दर्शन कर लेगा! आपके दर्शन किये बिना यात्रा अधूरी रहेगी!
भगवान शँकर वृंदावन में आज भी गोपेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं और भक्तों को अपने दिव्य गोपी-वेष में दर्शन दे रहे हैं! गर्भगृह के बाहर पार्वतीजी, श्रीगणेश, श्रीनन्दी विराजमान हैं! आज भी संध्या के समय भगवान का गोपीवेश में दिव्य श्रृंगार होता है!
क्या है श्री गोपेश्वर महादेव मन्दिर खुलने का समय :
गर्मियों में: सुबह ५ बजे से ११ बजे तक और शाम को ३ बजे से ९ बजे तक! सर्दियों में: सुबह ६ बजे से १२ बजे दोपहर तकऔर शाम को ३ बजे और ८:३० बजे तक खुला रहता है!
हवाईमार्ग द्वारा श्री गोपेश्वर महादेव मन्दिर कैसे पहुंचें :
आगरा का हवाईअड्डा सबसे नज़दीकी हवाईअड्डा है, जो कि यहाँ से ७३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है! कैब के जरिए यहां १घण्टा २५ मिन्ट्स में आसानी से पहुँचा जा सकता है!
रेल मार्ग द्वारा श्री गोपेश्वर महादेव मन्दिर कैसे पहुंचें :
मथुरा रेलवेस्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है! यहाँ से ५ किलोमीटर ऑटो रिक्शा, बस तथा कैब द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है!
सड़क मार्ग द्वारा श्री गोपेश्वर महादेव मन्दिर कैसे पहुंचें :
वृन्दावन मुख्य राजमार्गों से जुड़ा हुआ है और यहाँ बस या निजी वाहन से आसानी से पहुँचा जा सकता है! वृन्दावन यमुना एक्सप्रेस वे से जुड़ा हुआ है! दिल्ली से ३ घण्टे ३० मिन्ट्स में १८३ किलोमीटर की यात्रा करके पहुँचा जा सकता है!
श्री गोपेश्वर महादेव की जय हो! जय घोष हो!