श्री रक़ाब गंज गुरुद्वारा साहेब, पण्डित पन्त मार्ग, नई दिल्ली भाग : ३९२
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिक स्थल : भैरवनाथ मन्दिर, निकट:वैष्णों देवी धाम, कटरा, जम्मू एवँ कश्मीर। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:
श्री रक़ाब गंज गुरुद्वारा साहेब, पण्डित पन्त मार्ग, नई दिल्ली भाग : ३९२
रविवार का विचार आते ही सूर्य नारायण स्मरण हो आये, इससे पूर्व कि मैं भरत के किसी नवीन सूर्य मन्दिर के बारे में गूग्गल में ढूढ़ता, मन में एक प्रबल विचार आया कि हमारे परम स्नेही सिक्ख मित्र रणजीत सिँह कोहली के भतीजे का विवाह भी तो रक़ाबगंज गुरुद्वारा साहिब में हुआ था अतएव निर्णय निश्चित हुआ कि इस बार का आलेख रक़ाबगंज पर होना बेहतर है।
गुरुद्वारा श्री रकाब गंज साहिब नई दिल्ली में स्थित यह एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यह संसद भवन के निकट स्थित है। इसका निर्माण १७८३ में किया गया था। जिस स्थान पर ९वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी का दाह संस्कार हुआ था, उसी स्थल पर यह गुरुद्वारा निर्मित है। मेरे छोटे भाई सम ज्ञानी भाई साहब भाई बक़शीष सिँह जी बन्दा जो सिक्ख धर्म के बेहतरीन प्रचारक हैं जिन्होंने कई देश विदेशों और भारत वर्ष के प्राचीन गुरूद्वारों में भव्य गुरुबाणी के स्वर पाठ से स्वयँ को भी सन्त सिद्ध किया है।
गुरुद्वारा श्री रकाब गंज साहिब नई दिल्ली में स्थित ये ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यह संसद भवन के निकट स्थित है। इसका निर्माण १७८३ में किया गया था। जिस स्थान पर ९वें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह का दाह संस्कार हुआ था, उसी पर यह गुरुद्वारा निर्मित है। वर्तमान समय में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति का कामकाज इसी गुरुद्वारे से होता है।
गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब नई दिल्ली में संसद भवन के पास एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है । यह १७८३ में बनाया गया था, सिख सैन्य नेता बघेल सिंह (१७३०-१८०२) ने ११ मार्च १७८३ को दिल्ली पर कब्जा कर लिया था, और दिल्ली में उनके संक्षिप्त प्रवास के कारण शहर के भीतर कई सिख धार्मिक मन्दिरों अर्थात गुरुद्वारों का निर्माण हुआ। यह औरंगज़ेब के आदेशों के तहत हिंदू कश्मीरी पंडितों को बचाने के लिए नवंबर १६७५ में उनकी शहादत के बाद नौवें सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी के दाह सँस्कार की जगह को चिह्नित करता है। गुरुद्वारा साहिब रायसीना हिल के पास पुराने रायसीना गांव के पास बनाया गया है, वर्तमान में पंडित पंत मार्ग को बनने में १२ साल लगे। इससे पहले, घटनास्थल के पास एक मस्जिद बनाई गई थी।
गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति का शीर्ष गुरुघर है :
यह गुरुद्वारा उस स्थान को चिह्नित करता है, जहां लखी शाह वँजारा और उनके बेटे भाई कन्हैया ने सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहब के बिना सिर वाले शरीर का दाह संस्कार करने के लिए अपना घर जला दिया था, जो ११ नवंबर १६७५ को चांदनी चौक पर शहीद हो गए थे। मुगल बादशाह औरंगजेब के हुक्मनामे इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया, और उनकी राख को घर में ही गाड़ दिया। १७०७ में जब गुरु गोबिंद सिंह दसवें सिख गुरु राजकुमार मुजाम बाद में मुगल बादशाह बहादुर शाह से मिलने दिल्ली आए, तो उन्होंने स्थानीय सिखों की मदद से शमशान की जगह का पता लगाया और वहां पर एक साधारण स्मारक बनाया।
बाद में इस साइट पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया जो इस जगह पर गुरुद्वारा बनाने के लिए बघेल सिंह को १७८३ में ध्वस्त करना पड़ा था। १८५७ के विद्रोह के दौरान मुसलमानों ने फिर से साइट पर एक मस्जिद का निर्माण किया। सिख इस मामले को अदालत में ले गए, जिसने सिखों के पक्ष में फैसला किया और उन्होंने जल्दी से गुरुद्वारे का पुन:र्निर्माण किया। एक अन्य विवाद तब उत्पन्न हुआ जब १९१४ के दौरान वाइसरीगल भवन के मार्ग को सीधा करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा चारदीवारी के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया था। १९१८ में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होते ही सिखों द्वारा उठाए गए विरोध और आंदोलन पर सरकार झुक गई और सार्वजनिक खर्च पर चार- दीवारी का पुन:र्निर्माण किया गया। वर्तमान भवन का निर्माण १९६० में शुरू हुआ था और १९६७-६८ में पूरा हुआ था।
जिस स्थान पर गुरु साहिब का सिर काटा गया था, वह गुरुद्वारा सीस गंज साहिब द्वारा चिह्नित है। गुरु साहिब का कटा हुआ सिर भाई जैता जी (बाद में भाई जीवन सिंह) द्वारा दिल्ली से पंजाब के आनंदपुर साहिब में लाया गया था और उनका अंतिम संस्कार उनके बेटे, गुरु गोबिंद राय ने किया था, जो बाद में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह बने।
१९५० के दशक की शुरुआत में, सिख पंथ ने उस पवित्र स्थल पर एक उपयुक्त स्मारक बनाने का फैसला किया, जहां सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर साहिब का गुप्त रूप से एक लबाना सिख द्वारा अंतिम संस्कार किया गया था, जो ७वें, ८वें और 9वें के उत्साही भक्त थे। सिखों के १०वें गुरु, जिनका नाम लखी शाह है। पंथ की एक बैठक में, जहां कई प्रमुख सिख निर्माण की योजना बनाने के लिए एकत्र हुए थे, दिल्ली के एक व्यापारी ने खड़े होकर बड़ी विनम्रता के साथ अपनी कमीज को भिक्षा-पात्र के रूप में पकड़कर पंथ से प्रार्थना की कि उसे भवन निर्माण की पूरी सेवा प्रदान की जाए।
नई दिल्ली में संसद भवन के पास पवित्र स्थल पर है यह गुरुद्वारा। यह शख्स हरनाम सिंह सूरी था जो रावलपिंडी से दिल्ली आ गया था, (वर्तमान पाकिस्तान) १९४७ में। पंथ ने उन्हें सेवा देने के लिए सहमति व्यक्त की और सरदार हरनाम सिंह सूरी ने अथक परिश्रम किया, इसे पूर्णता तक बनाने के लिए, जब तक कि यह १९७९ में और उसके आसपास पूरा नहीं हो गया। उन्होंने अनुरोध किया, सेवापंथी संत निश्चल सिंह जी शिलान्यास करने के लिए, और संत जी ने सहमति दी और शिलान्यास समारोह में भाग लिया, जहाँ उन्होंने नींव में पहली ईंटें रखीं।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने १९८४ के दौरान सिखों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हुई हिंसा को याद करने के लिए गुरुद्वारा परिसर में १९८४ सिख नरसंहार स्मारक बनाया है, जिसे ‘सत्य की दीवार’ के रूप में भी जाना जाता है।
गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब इतिहास :
गुरु तेग बहादुर साहेब के शिष्य लखा शाह वंजारा ने तब तूफान धुंए धक्कड़ के अंधेरे की आड़ में, उनके शव को लेकर चले गए और इस स्थान पर दाह सँस्कार किया। यह स्थान आज गुरुद्वारा श्री रकाब गंज साहिब के नाम से मशहूर है। आज भी यहां पर लाखों की संख्या में सिख धर्म के लोग और गुरु तेग बहादुर के अनुयाई गुरु जी को श्रद्धांजलि देने आते हैं।
मेरे बचपन के मित्र रविन्द्र सिँह “बॉबी” जो पालम साध नगर गुरुद्वारा साहिब के प्रधान हैं, मैं उनका भी विशेषतः सिक्ख धर्म मे अथक योगदान के लिए आभार व्यक्त करते हैं। जो दिल्ली सिक्ख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी से ज़ुड़े हुए हैं।
मेरे अनुज भाई सम मित्र तथा देश विदेश में जाने जाते प्रख्यात रागी भाई साहब भाई बकशीष सिँह “बन्दा जी ” ने बताया :
गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब का जन्म एक शहादत से हुआ था वह समय जब भारतवर्ष मुगल शासक औरंगज़ेब का गुलाम था और औरंगजेब हिंदुओं पर बहुत जुल्म करता था। इतना जुल्म करता था कि जब कोई पाठ पूजा करें और घण्टी की आवाज आए तब उसकी सोच यहां तक पहुंच गई थी कि किसी भी घर में से पूजा के समय हिंदू के घर से घण्टी की आवाज ना आए जहां से घण्टी की आवाज आए उसके मुंह में गाय की हड्डी डाल दो। तब कश्मीर में कश्मीरी पंडित बहुत तंग आ चुके थे। जिन्हें जबरन इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए रोज जबरदस्ती की जाती थी। तब कुछ कश्मीरी पंडित हिंदू धर्म के महान तीरथ अमरनाथ में पूजा अर्चना के लिए गए। अमरनाथ में भविष्यवाणी हुई कि आप गुरु तेग बहादुर जी की शरण में जाएं सही आप के रक्षक बनेंगे। तब सभी कश्मीरी पंडित मिलकर सिख धर्म के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज की शरण में पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब में आकर सभी हिंदू कश्मीरी पंडितों ने जब विनती की और रो कर कहा हमें इस जुलम से बचाव तब गुरु तेग बहादुर जी ने आंखें बंद करके कुछ समय के लिए समाधि लगाई और वचन की है ।
इस समय इस जुल्म से बचाने के लिए एक बहुत बड़े महान तपस्वी का बलिदान चाहिए। गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में जहां सिख संगत थी कश्मीरी पंडित थे वहां आपके शहजादे अर्थात आपके बेटे श्री गुरु गोविंद सिंह जी जिनका बचपन का नाम गोविंद राय था, जिनकी उम्र मात्र नौ वर्ष थी।
उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा : हे गुरुदेव पिता इस समय भारत में आप से बड़ा महान तपस्वी कौन है आप यह बलिदान की सेवा करें! सभी दरबार में गोविंद राय की बात सुनकर आश्चर्य चकित हो गए कि एक पुत्र अपने पिता को क्या कह रहा है? पर पिता गुरुदेव गुरु तेग बहादुर जी मुस्कुराए और अपने बेटे गोविंद राय के कंधों पर हाथ रखकर कहा : “आज से सिक्ख धर्म की सेवा आप संभालोगे और हम दिल्ली को कूच करेंगे।
तब कुछ सिखों को लेकर श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज दिल्ली की ओर चल दिए। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को डराने के लिए उन्हें पिंजरे में बंद कर दिया और उनके साथ ५ सिखों को भयानक सजाएं दी। को बहुत देर तक पानी में उबाल दिया, दूसरे सिक्ख़ श्री भाई मती दास जी को दिल्ली के चांदनी चौक में जो लाल किले के सामने है गुरुद्वारा शीशगंज के सामने भाई मती दास चौक है, वहां पर उन्होंने भाई मती दास जी को आरे से चिरवा दिया।
इसी प्रकार दिल्ली के चांदनी चौक में ही गुरु तेग बहादुर जी को शहीद कर दिया गया और शहीद करने से पहले औरंगजेब ने यह ऐलान किया था कोई भी गुरु तेग बहादर जी के शरीर को लेकर जाएगा तो उसे सजा-ए-मौत हासिल होगी। उस परमात्मा की कृपा से जब गुरु तेग बहादर जी को शहीद किया गया। तब बहुत तेज आंधी तूफान आया लोगों की आँखों में मिट्टी घट्टा आने लगा। किसी को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था एक सिख ने गुरु तेग बहादुर जी जो शहीद हो चुके थे उनका सिर को झोली में डाला और चला गया। वहीँ लकी सिंह बंजारा ने साहिब श्री तेग बहादुर जी के शहीद हुए धड़ को, जिसके पास अपने बैल थे उसने गुरु महाराज जी के शरीर को उसमें रखा जिसमें रुई पड़ी थी, ऊपर रुई डाल दी, और सीधा अपने घर ले गया, और अपने घर ले जाकर अपने घर के समान सहित घर को आग लगा दी। जब इस प्रकार सँस्कार किया, तो थोड़ी देर बाद शोर मचा दिया किमेरे घर को आग लग गयी।
जहां पर गुरुजी का मृतक शरीर को सँस्कार किया भाई लक्की शाह वँजारा ने आग लगाई आज गुरुद्वारा श्री रकाबगंज के नाम से प्रसिद्ध है, जो पार्लियामेंट के सामने इसी गुरुद्वारे में इस हॉल का नाम लक्की शाह वँजारा हॉल के नाम से इस हॉल का नाम रखा गया है। जहां पर एक मर्यादा अनुसार शादी विवाह भी होते हैं और समय-समय पर कीर्तन दरबार भी होते हैं। गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब इस बात की इतिहासिक निशानी है कि जब हिंदू धर्म पर संकट आया तब नौवें गुरु ने शहादत दी इस आदत से जन्म हुआ गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का। जब भी हम गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब जाएं तो वहां जाकर हमें कोटि-कोटि प्रणाम करना चाहिए गुरु तेग बहादुर जी के चरणों में आप के बलिदान से हिंदुस्तान में हिंदुओं पर होने वाले जुलम रुक दें आप के बलिदान से धन्य है भारत के ऋषि मुनि माह तक तपस्वी और वह गुरु जिनका जन्म भारत में हुआ हमें ऐसे गुरु को हर समय नमन करना चाहिए जब भी आप गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब जाए तो वहां कुछ देर बैठें, एहसास करें कि उस समय का जब हिंदुओं पर होने वाले जुल्म से इस वक्त पत्नी ने अपनी शहादत दी और कभी भी इस्लाम धर्म को कबूल नहीं किया। ऐसे गुरु को शत-शत प्रणाम शत-शत प्रणाम है।
गुरुद्वारा श्री रकाब गंज साहिब, सिख धर्म के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज के शरीर का दाह सँस्कार हुआ था। श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज का अँतिम सँस्कार किया था लकी सिंह वँजारा ने अपने ही घर में, लोगों से कहा मेरे घर में आग लग गई है पर दरअसल लकी सिंह वँजारा ने गुरु महाराज जी का दाह सँस्कार कर रहा था, जिस का मूल कारण था औरंगजेब ने हुक्म दिया था के गुरु तेग बहादुर जी को दंड स्वरूप सिर धड़ से जुदा करवा दिया था। औरंगजेब ने गुरु महाराज का शीश धड़ से अलग कर दिया और यह आदेश दिया कि जो भी इनके सर या इनके धड़ को लेकर जाएगा उसका भी यही हश्र किया जाएगा।
इसलिए जब गुरु तेग बहादुर जी दिल्ली के चाँदनी चौक में शहीद हुए तब बहुत तेज आँधी आई उस आँधी तूफान में लकी शाह वँजारा ने बाबा जी के सिर धड़ को उठाया और अपने घर ले जाकर गुरु महाराज का विधिपूर्वक दाह सँस्कार कर, अपने ही घर में, आग लगा दी। आज स्थापित है वँजारा का पुश्तैनी घर था उनकी याद में आज भी श्री गुरुद्वारा रक़ाबगंज साहिब के एक वातानुकूलित कमरे का नाम है लकी शाह वँजारा हॉल। इस में समय-समय पर बड़े-बड़े कीर्तन दरबार किए जाते हैं और किसी ने विवाह यानी कि आनंद कारज कराना हो तो सिख धर्म के अनुसार किसी ने शादी करानी हो तो यह हॉल भी उपलब्ध हो जाता है।
दिल्ली सिख गुरद्वारा प्रबन्धक कमेटी का मुख्यालय पूरी दिल्ली का प्रमुख गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में ही स्थित है। कमेटी द्वारा दिल्ली के जितने भी ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं सभी के कार्यों का फैसला इसी दफ्तर से होता है। प्रतिदिन प्रातः ५:00 बजे से लेकर रात्रि के ९:00 बजे तक आनन्दमई कीर्तन इस स्थान पर लगातार होता रहता है। हर शनिवार रात ११:00 बजे से पानी से धोया जाता है साफ सफाई की जाती है, तथा पानी से गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब को अच्छी तरह से साफ किया जाता है बहुत सारी साद-संगत आगे आकर यहां पर अपनी सेवाएं अर्पित करते हैं बाहर से यह मार्बल का बना हुआ है यानी कि संगमरमर का बना हुआ है और इस गुरुद्वारे के दो प्रवेश हैं एक मुख्य प्रवेश द्वार सामने है और दूसरा प्रवेश द्वार आप गाड़ी पार्क कर के अपने जूते चप्पल जोड़ा घर में रखकर बड़े द्वार से प्रवेश करके गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब में प्रवेश कर सकते हैं।
गुरुद्वारा श्री रकाब गंज साहिब में गेस्ट हाउस भी हैं एक गेस्ट हाउस गुरुद्वारा के पीछे और एक मुख्य द्वार के समीप दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी द्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा एक वर्ष में होने वाले सभी गुरु पर्व कैसे किए जाने हैं, इसका समूह रूप से यहाँ निर्णय होता है। बड़े समूह में वह सभी कीर्तन दरबार द्वारा एक साल में होने वाले सभी ग्रुप पर जो विशेष कीर्तन दरबार किए जाते हैं बड़े समूह में सभी कीर्तन दरबार विशाल रूप में गुरुद्वारा रकाबगंज के लक्की शाह वँजारा हॉल में ही किए जाते हैं, क्योंकि दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पास सबसे ज्यादा स्थान रकाब गंज गुरुद्वारे में ही है, जहां पर पार्किंग लँगर देश विदेशों से आए मेहमानों के लिए गेस्ट हाउस के लिए जगह का प्रबंध है!
पता :
श्री रक़ाब गंज गुरुद्वारा साहेब, पण्डित पन्त मार्ग, निकट केन्द्रीय सचिवालय, सँसद एवँ आकाशवाणी भवन, नई दिल्ली पिनकोड : 110001 भारत।
हवाई मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
हवाईजहाज से निकटतम हवाई अड्डा पालम दिल्ली का इन्दिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है।टर्मिनल वन से ११.५ किलोमीटर की दूरी तय करके कैब द्वारा २६ मिनट्स में पहुँच सकते हैं श्री गुरुद्वारा रक़ाब गंज साहेब।
रेल मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
मेट्रो रेल द्वारा आप निकटतम रेलहेड्स से बंगला साहिब व सरदार पटेल दोनों से दो किलोमीटर दूर है। नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन से पाँच किलोमीटर की दूरी से पहुँच सकते हो श्री गुरुद्वारा रक़ाब गंज साहेब।
सड़क मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
ISBT से रक़ाबगंज गुरुद्वारे आने के लिए बस, अपनी कार या बाईक से आते हैं तो ८.५ किलोमीटर की दूरी तय करके आप ० घण्टे ३३ मिनट्स में पहुँच जाओगे श्री गुरुद्वारा रक़ाब गंज के दर्शन कर जीवन यात्रा सफल करो जी।
गुरु तेग बहादुर सिँह साहेब की जय हो। जयघोष हो।।
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