श्री साईं मन्दिर, गोपीनाथ शास्त्री बाजार, दिल्ली कैंट, नई दिल्ली भाग :४५०,पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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श्री साईं मन्दिर, गोपीनाथ शास्त्री बाजार, दिल्ली कैंट, नई दिल्ली भाग :४५०

आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा, भारत के धार्मिक स्थल : श्री विनायक मंदिर, नोयडा सैक्टर -62, जेएसएस एकेडमी ऑफ टेक्निकल एजुकेशन नोएडा उत्तर प्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट अथवा रह गया हो तो आप कृप्या करके प्रजाटूडे की वेबसाइट पर जाकर www.prajatoday.com पर जाकर धर्मसाहित्य पृष्ठ पर पढ़ दसकते हैं:

श्री साईं मन्दिर, गोपीनाथ शास्त्री बाजार, दिल्ली कैंट, नई दिल्ली भाग : ४५०

गुरुवार को शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करें। दिन गुरुवार को पड़ता है जो साईं भक्तों के लिए एक शुभ दिन है। साईं बाबा की पूजा गुरुवार को ही बड़ी आस्था और उत्साह के साथ की जाती है।

हम गुरुवार को साईं बाबा की पूजा क्यों करते हैं :

साईं बाबा एक आध्यात्मिक गुरु हैं, जिन्हें उनके भक्त भगवान के अवतार के रूप में मानते हैं। भारतीय मान्यताओं के अनुसार वह एक फकीर और सतगुरु थे। गुरुवार को हिंदू धर्म में भगवान/गुरु/गुरु का दिन माना जाता है।

उन्होंने प्रेम, क्षमा और ईश्वर के प्रति समर्पण की नैतिक संहिता सिखाई। वह धर्म या जाति के आधार पर कोई भेद नहीं मानते थे। साईं बाबा का प्रसिद्ध उपसंहार है। “सबका मलिक एक” (“एक ईश्वर सभी पर शासन करता है”)

दिल्ली में साईंबाबा मन्दिर दिल्ली में सबसे महत्वपूर्ण साईं बाबा मन्दिर (साईं मन्दिर) लोधी रोड, नई दिल्ली में स्थित है। लोधी रोड स्थित साईं बाबा मन्दिर का रखरखाव श्री साईं भक्त समाज द्वारा किया जाता है, जिसे अक्टूबर 1968 में स्थापित किया गया था। यह दिल्ली के सबसे पुराने साईं मन्दिरों में से एक है। दिल्ली के अन्य प्रमुख साईं मन्दिर शिरडी साईं मन्दिर हैं। दिल्ली में साईं बाबा के मन्दिरों की जो सूची दी गई है। ये मन्दिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुले रहते हैं। गुरुवार को साईं भण्डारा (दावत) के बाद विशेष प्रार्थना आयोजित की जाती है।

आज हम आपको साईं मन्दिर सदर बाज़ार के बारे में बताते हैं।

गुरुवार को शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करें। दिन गुरुवार को पड़ता है जो साईं भक्तों के लिए एक शुभ दिन है। साईं बाबा की पूजा गुरुवार को ही बड़ी आस्था और उत्साह के साथ की जाती है।

हम गुरुवार को साईं बाबा की पूजा क्यों करते हैं :

आज हम आपको साईं मन्दिर गोपीनाथ बाज़ार के बारे में बताते हैं। धौला कुआं से जब आप बाएं मुड़ोगे तो दाहिने हाथ को राज राइफल बटालियन छोड़ते हुए आप बाएं हाथ को मुड़ोगे तो चर्च छोड़ कर आगे आते ही आप पाओगे हनुमान मन्दिर स्थित शिरडी के साईं बाबा का प्रतिष्ठित साईं बाबा मण्दिर। पिछली बार हम एडवोकेट प्रमोद कौशिक, साईं बाबा के भक्त अनिल अरोड़ा “बबलू” हमारे मित्र राजेश रस्तोगी की माताजी की क्रिया रस्म पगड़ी “श्रद्धांजलि सभा” में गए थे।

साईं बाबा की आदम- कद प्राण – प्रतिष्ठित दिव्य मूर्ति देखते ही बनती है। मराठी भाषी महाराष्ट्रीयंस के अतिरिक्त साईं बाबा के दीवानों की कमी नहीं है। प्रत्येक साईं वार को जब पालकी निकलती है तो वह रूप देखते ही बनता है। फूलों की महक से स्वर्ग का सा एहसास होता है। यहां साईं वार को भण्डारा होता ही रहता है।

साईं सच्चरित्र: अध्याय ६ :

रामनवमी उत्सव व मसजिद का जीर्णोदृार, गुरु के कर-स्पर्श की महिमा, रामनवमी—उत्सव, उर्स की प्राथमिक अवस्था ओर रुपान्तर एवम मसजिद का जीर्णोदृार

गुरु के कर-स्पर्श के गुण :

जब सद्गगुरु ही नाव के खिवैया हों तो वे निश्चय ही कुशलता तथा सरलतापूर्वक इस भवसागर के पार उतार देंगे । सद्गगुरु शब्द का उच्चारण करते ही मुझे श्री साई की स्मृति आ रही है । ऐसा प्रतीत होता है, मानो वो स्वयं मेरे सामने ही खड़े है और मेरे मस्तक पर उदी लगा रहे हैं । देखो, देखो, वे अब अपनग वरद्-हस्त उठाकर मेरे मस्तक पर रख रहे है । अब मेरा हृदय आनन्द से भर गया है । मेरे नेत्रों से प्रेमाश्रु बह रहे है । सद्गगुरु के कर-स्पर्श की शक्ति महान् आश्चर्यजनक है । लिंग (सूक्ष्म) शरीर, जो संसार को भष्म करने वाली अग्नि से भी नष्ट किया जा सकता है, वह केवल गुरु के कर-स्पर्श से ही पल भर में नष्ट हो जाता है । अनेक जन्मों के समस्त पाप भी मन स्थिर हो जाते है । श्री साईबाबा के मनोहर रुप के दर्शन कर कंठ प्रफुल्लता से रुँध जाता है, आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगती है और जब हृदय भावनाओं से भर जाता है, तब सोडहं भाव की जागृति होकर आत्मानुभव के आननन्द का आभास होने लगता है । मैं और तू का भेद (दैृतभाव) नष्ट हो जाता है और तत्क्षण ही ब्रहृा के साथ अभिन्नता प्राप्त हो जाती है । जब मैं धार्मिक ग्रन्थों का पठन करता हूँ तो क्षण-क्षण में सद्गगुरु की स्मृति हो आती है । बाबा राम या कृष्ण का रुप धारण कर मेरे सामने खड़े हो जाते है और स्वयं अपनी जीवन-कथा मुझे सुनाने लगते है ।

अर्थात् जब मैं भागवत का श्रवण करता हूँ, तब बाबा श्री कृष्ण का स्वरुप धारण कर लेते हैं और तब मुझे ऐसा प्रतीत होने लगता है कि वे ही भागवत या भक्तों के कल्याणार्थ उदृवगीता सुना रहे है । जब कभी भी मै किसी से वार्त्लाप किया करता हूँ तो मैं बाबा की कथाओं को ध्यान में लाता हूँ, जिससे उनका उपयुक्त अर्थ समझाने में सफल हो सकूँ । जब मैं लिखने के लिये बैठता हूँ, तब एक शब्द या वाक्य की रचना भी नहीं कर पाता हबँ, परन्तु जब वे स्वयं कृपा कर मुझसे लिखवाने लगते है, तब फिर उसका कोई अंत नहीं होता । जब भक्तों में अहंकार की वृदिृ होने लगती है तो वे शक्ति प्रदान कर उसे अहंकारशून्य बनाकर अंतिम ध्येय की प्राप्ति करा देते है तथा उसे संतुष्ट कर अक्षय सुख का अधिकारी बना देते है । जो बाबा को नमन कर अनन्य भाव से उनकी शरण जाता है, उसे फिर कोई साधना करने की आवस्यकता नहीं है । धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उसे सहज ही में प्राप्त हो जाते हैं ।

ईश्वर के पास पहुँचने के चार मार्ग हैं – कर्म, ज्ञान, योग और भक्ति । इन सबमें भक्तिमार्ग अधिक कंटकाकीर्ण, गडढों और खाइयों से परिपूर्ण है । परन्तु यदि सद्गगुरु पर विश्वास कर गडढों और खाइयों से बचते और पदानुक्रमण करते हुए सीधे अग्रसर होते जाओगे तो तुम अपने ध्येय अर्थात् ईश्वर के समीप आसानी से पहुँच जाओगे । श्री साईबाबा ने निश्चयात्मक स्वर में कहा है कि स्वयं ब्रहा और उनकी विश्व उत्पत्ति, रक्षण और लय करने आदि की भिन्न-भिन्न शक्तियों के पृथकत्व में भी एकत्व है । इसे ही ग्रन्थकारों ने दर्शाया है । भक्तों के कल्याणार्थ श्री साईबाबा ने स्वयं जिन वचनों से आश्वासन दिया था, उनको नीचे उदृत किया जाता है –

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मेरे भक्तों के घर अन्न तथा वस्त्रों का कभी अभाव नहीं होगा । यह मेरा वैशिष्टय है कि जो भक्त मेरी शरण आ जाते है ओर अंतःकरण से मेरे उपासक है, उलके कल्याणार्थ मैं सदैव चिंतित रहता हूँ । कृष्ण भगवान ने भी गीता में यही समझाया है । इसलिये भोजन तथा वस्त्र के लिये अधिक चिंता न करो । यदि कुछ मांगने की ही अभिलाषा है तो ईश्वर को ही भिक्षा में माँगो । सासारिक मान व उपाधियाँ त्यागकर ईश-कृपा तथा अभयदान प्राप्त करो और उन्ही के दृारा सम्मानित होओ । सांसारिक विभूतियों से कुपथगामी मत बनो । अपने इष्ट को दृढ़ता से पकड़े रहो । समस्त इन्द्रियों और मन को ईश्वरचिंतन में प्रवृत रखो । किसी पदार्थ से आकर्षित न हो, सदैव मेरे स्मरण में मन को लगाये रखो, ताकि वह देह, सम्पत्ति व ऐश्वर्य की ओर प्रवृत न हो । तब चित्त स्थिर, शांत व निर्भय हो जायगा । इस प्रकार की मनःस्थिति प्राप्त होना इस बात का प्रतीक है कि वह सुसंगति में है । यदि चित्त की चंचलता नष्ट न हुई तो उसे एकाग्र नहीं किया जा सकता ।

बाबा के उपयुक्त को उदृत कर ग्रन्थकार शिरडी के रामनवमी उत्सव का वर्णन करता है । शिरडी में मनाये जाते वाले उत्सवों में रामनवमी अधिक धूमधाम से मनायी जाती है । अतएव इस उत्सव का पूर्ण विवरण जैसा कि साईलीला-पत्रिका (1925) के पृष्ठ 197 पर प्रकाशित हुआ था, यहाँ संक्षेप में दिया जाता है –

प्रारम्भ :

कोपरगाँव में श्री गोपालराव गुंड नाम के एक इन्सपेक्टर थे । वे बाबा के परम भक्त थे । उनकी तीन स्त्रियाँ थी, परन्तु एक के भी स्थान न थी । श्री साईबाबा की कृपा से उन्हें एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई । इस हर्ष के उपलक्ष्य में सन् 1897 में उन्हें विचार आया कि शिरडी में मेला अथवा उरुस भरवाना चाहिये । उन्होंने यह विचार शिरडी के अन्य भक्त-तात्या पाटील, दादा कोते पाटील और माधवराव के समक्ष विचारणार्थ प्रगट किया । उन सभी को यह विचार अति रुचिकर प्रतीत हुआ तथा उन्हें बाबा की भी स्वीकृत और आश्वासन प्राप्त हो गया । उरुस भरने के लिये सरकारी आज्ञा आवश्यक थी । इसलिये एक प्रार्थना-पत्र कलेक्टर के पास भेजा गया, परन्तु ग्राम कुलकर्णी (पटवारी) के आपत्ति उठाने के कारण स्वीकृति प्राप्त न हो सकी । परन्तु बाबा का आश्वासन तो प्राप्त हो ही चुका था, अतः पुनः प्रत्यन करने पर स्वीकृति प्राप्त हो गयी । बाबा की अनुमति से रामनवमी के दिन उरुस भरना निश्चित हुआ । ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ निष्कर्ष ध्यान में रख कर ही उन्होंने ऐसी आज्ञा दी । अर्थात् उरुस व रामनवमी के उत्सवों का एकीकरण तथा हिन्दू-मुसलिम एकता, जो भविष्य की घटनाओं से ही स्पष्ट है कि यह ध्येय पूर्ण सफल हुआ । प्रथम बाधा तो किसी प्रकार हल हुई । अब दितीय कठिनाई जल के अभाव की उपस्थित हुई । शिरडी तो एक छोटा सा ग्राम था और पूर्व काल से ही वहाँ जल का अभाव बना रहता था । गाँव में केवल दो कुएँ थे, जिनमें से एक तो प्रायः को सूख जाया करता था और दूसरे का पानी खारा था । बाबा ने उसमें फूल डालकर उसके खारे जल को मीठा बना दिया । लेकिन एक कुएँ का जल कितने लोगों को पर्याप्त हो सकता था । इसलिये तात्या पाटील ने बाहर से जल मंगवाने का प्रबन्ध किया । लकड़ी व बाँसों की कच्ची दुकानें बनाई गई तथा कुश्तियों का भी आयोजन किया गया । गोपालपाव गुंड के एक मित्र दामू-अण्णा कासार अहमदनगर में रहते थे । वे भी संतानहीन होने के कारण दुःखी थे । श्री साईबाबा की कृपा से उन्हें भी एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई थी । श्री गुंड ने उनसे एक ध्वज देने को कहा । एक ध्वज जागीरदार श्री नानासाहेब निमोणकर ने भी दिया । ये दोनों ध्वज बड़े समारोह के साथ गाँव में से निकाले गये और अंत में उन्हें मसजिद, जिसे बाबा दृारकामाई के नाम से पुकारते थे, उसके कोनों पर फहरा दिया गया । यह कार्यक्रम अभी पूर्ववत् ही चल रहा है ।

अगले साईंवार चन्दन समारोह क्रमशः

पता : श्री साईं मन्दिर, गोपीनाथ बाजार, दिल्ली कैंट, नई दिल्ली। पिनकोड : ११००१० भारत।

हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :

हवाई मार्ग से निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली पालम का हवाई अड्डा है अतः दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाईअड्डे से ५.५ किलोमीटर दूर स्थित है।यहां से कोई भी प्रासंगिक घरेलू उड़ान पकड़कर पूरे भारत में किसी भी शहर की यात्रा कर सकता है। इन गंतव्यों के बीच अक्सर निजी और सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता श्रद्धालु आगंतुकों के लिए काफी आसान बनाती है आप कैब द्वारा १२ मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे श्री साईं मन्दिर।

मेट्रो रेल मार्ग से कैसे पहुँचें :

मेट्रो मार्ग से पहुँचने में आसानी से आप दिल्ली छावनी परिसर से जुड़ा हरी-भरी आभा के साथ, स्वच्छ वातावरण से पोषित श्री साईं मन्दिर को दिल्ली के सबसे साफ मन्दिरों मे से एक कहा जा सकता है। जबकि दिल्ली छावनी मेट्रो से बस द्वारा आप दस मिनट्स में पहुंच जाओगे।

सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :

आप ISBT इन्टर स्टेट बस टर्मिनल द्वारा बस अथवा अपनी कार से १६.१ किलोमीटर की दूरी तय करके वाया सरदार पटेल मार्ग से आसानी से ३६ मिनट्स में पहुँच जाओगे श्री साईं मन्दिर।

श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईंनाध् महाराज् की जय राजाधिराज योगिराज परब्रह्म साईंनाध् महराज् श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईंनाध् महाराज् की जय हो। जयघोष हो।।

3 thoughts on “श्री साईं मन्दिर, गोपीनाथ शास्त्री बाजार, दिल्ली कैंट, नई दिल्ली भाग :४५०,पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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