श्री शिव साईँ मङ्गल धाम मन्दिर, सेक्टर -१८, नोएडा, उत्तरप्रदेश भाग : ३६९
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिकस्थल : बड़ा श्री गणेश मन्दिर, लौहटिया रोड़, जैतपुरा, वाराणसी, उत्तरप्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:
श्री शिव साईँ मङ्गल धाम मन्दिर, सेक्टर -१८, नोएडा, उत्तरप्रदेश भाग : ३६९
श्री शिव साईँ मङ्गल धाम मन्दिर, नोएडा का सबसे भीड़भाड़ वाली जगह, शाँति और आध्यात्मिक स्थल है। कई सामाजिक कार्यों में भागीदारी। पेड़ों की विविधता वाली बड़ी नर्सरी। श्री शिव साईँ मङ्गल धाम मन्दिर, की स्थापना सन् १९७० में श्री कालीचरण जी द्वारा की गई थी। मन्दिर परिसर के केंद्र में पुराना शिव-पार्वती मन्दिर स्थापित किया गया है। मन्दिर परिसर मे प्रवेश करते ही दाहिनी ओर छोटे मन्दिर की तरह आकृति के साथ नवग्रह धाम एवँ यज्ञशाला के दर्शन किए जा सकते हैं। तथा प्रवेश द्वार पर एक सुन्दर फव्वारा है, जिसके अँत छोर पर कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिवशँकर को दर्शाया गया है।
निर्जला एकादशी को मन्दिर द्वारा वार्षिक उत्सव के रूप मे मनाया जाता है, साथ ही साथ इसी दिन एक बहुत बड़ा भण्डारे का आयोजन किया जाता है। मन्दिर द्वारा सन् १९९० से प्राइमरी स्कूल मे मुफ्त शिक्षा सामग्री वितरित की जाती है, तथा आर्थिक रूप से वँचित लोगों के लिए नि:शुल्क धर्मशाला की भी व्यवस्था है। श्री शिव साईँ मङ्गल धाम मन्दिर, की स्थापना १९७० में श्री कालीचरण जी ने की थी। मन्दिर परिसर के मध्य में पुराना शिव-पार्वती मन्दिर स्थापित है।
मन्दिर परिसर में प्रवेश करते ही नवग्रह धाम और यज्ञशाला को दाहिनी ओर एक छोटे से मन्दिर की आकृति के साथ देखा जा सकता है। और प्रवेश द्वार पर एक सुंदर फव्वारा है, जो अन्त में कैलाश पर्वत पर बैठे भगवान शिव को दर्शाता है। मन्दिर द्वारा निर्जला एकादशी को वार्षिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, साथ ही इस दिन बड़े भण्डारे का भी आयोजन किया जाता है। मन्दिर से प्राथमिक विद्यालय में नि:शुल्क शिक्षण सामग्री का वितरण करता आ रहा है तथा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए नि:शुल्क धर्मशाला की भी व्यवस्था की गई है।
द ग्रेट इंडिया प्लेस (जीआईपी), डीएलएफ मॉल ऑफ इंडिया (डीएलएफ), गार्डन गैलेरिया नोएडा, सेंटर स्टेज मॉल, मनोरंजन पार्क – वर्ल्ड ऑफ वंडर, होटल – रेडिसन ब्लू और भीड़भाड़ वाले आटा मार्केट के पास स्थित होने के बावजूद यह श्री शिव साईँ मङ्गल धाम मन्दिर, बहुत निर्मल और शाँत है।
महाशिवरात्रि महामृत्युंजय मन्त्र शिव चालीसा श्री शिवशँकर भोले नाथ को सावन के सोमवार ज्योतिर्लिंग शिव चालीसा दिल्ली में प्रसिद्ध शिव साईँ मन्दिर ऍन सी आर में गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रुद्राष्टकम का पाठ होता है।
समय :
ओपन क्लोज टाइमिंग :-
४:०० पूर्वाह्न – १०:०० अपराह्न
सुबह ६:०० बजे: मङ्गला आरती
शाम ६:०० बजे: सँध्या आरती
रात्रि ८:०० बजे: प्रत्येक गुरुवार को साईं सँध्या एवँ पालकी का प्रावधान साईँ-भक्तों के लिए होता है।
त्यौहार :
शिवरात्रि, जन्माष्टमी, नवरात्रि, दीवाली, हनुमान जयंती | हनुमान जन्मोत्सव, शनि जयंती | शनैश्चरी अमावस्या, राम नवमी | ।
मानबसा गुरुवार शिव साईं मंदिर
शिव साईं मंदिर की स्थापना सन् १९७० में श्री कालीचरण जी द्वारा की गई थी। मन्दिर मे नवग्रह धाम एवँ यज्ञशाला के दर्शन किए जा सकते हैं। सुन्दर मन्दिर फव्वारे के साथ मंदिर का प्रवेश द्वार। हवन शाला आरंभिक दाहिनी ओर
शिव साईं मन्दिर के हरे क्षेत्र के साथ बाहरी दृश्य मनमोहक हैं।
साईँ सच्चरित्र अध्याय ४ का शेष भाग :
भगवन्तराव क्षीरसागर की कथा :
श्री विटठल पूजन में बाबा को कितनी रुचि थी, यह भगवंतराव क्षीरसागर की कथा से सपष्ट है । भगवंतराव को पिता विठोबा के परम भक्त थे, जो प्रतिवर्ष पंढरपुर को वारी लेकर जाते थे । उनके घर में एक विठोबा की मूर्ति थी, जिसकी वे नित्यप्रति पूजा करते थे । उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र भगवंतराव ने वारी, पूजन श्रादृ इत्यादि समस्त कर्म करना छोड़ दिया । जब भगवंतराव शिरडी आये तो बाबा उन्हें देखते ही कहने लगे कि इनके पिता मेरे परम मित्र थे । इसी कारण मैंने इन्हें यहाँ बुलाया हैं । इन्होंने कभी नैवेघ अर्पण नहीं किया तथा मुझे और विठोबा को भूखों मारा है । इसलिये मैंने इन्हें यहां आने को प्रेरित किया है । अब मैं इन्हें हठपूर्वक पूजा में लगा दूंगा ।
दासगणू का प्रयाग स्नान :
गंगा और यमुनग नदी के संगम पर प्रयाग एक प्रसिदृ पवित्र तीर्थस्थान है । हिन्दुओं की ऐसी भावना है कि वहाँ स्नानादि करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते है । इसीकारण प्रत्येक पर्व पर सहस्त्रों भक्तगण वहाँ जाते है और स्नान का लाभ उठाते है । एक बार दासगणू ने भी वहाँ जाकर स्नान करने का निश्चय किया । इस विचार से वे बाबा से आज्ञा लेने उनके पास गये । बाबा ने कहा कि इतनी दूर व्यर्थ भटकने की क्या आवष्यकता है । अपना प्रयाग तो यहीं है । मुझ पर विश्वास करो । आश्चर्य । महान् आश्चर्य । जैसे ही दासगणू बाबा के चरणों पर नत हुए तो बाबा के श्री चरणों से गंगा-यमुना की धारा वेग से प्रवाहित होने लगी । यह चमत्कार देखकर दासगणू का प्रेम और भक्ति उमड़ पड़ी । आँखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी । उन्हें कुछ अंतःस्फूर्ति हुई और उनके मुख से श्री साई बाबा की स्त्रोतस्विनी स्वतःप्रवाहित होने लगी ।
श्री साई बाबा का शिर्डी में प्रथम आगमन :
श्री साई बाबा के माता पिता, उनके जन्म और जन्म-स्थान का किसी को भी ज्ञान नहीं है । इस सम्बन्ध में बहुत छानबीन की गई । बाबा से तथा अन्य लोगों से भी इस विषय में पूछताछ की गई, परन्तु कोई संतोषप्रद उत्तर अथवा सूत्र हाथ न लग सका । यथार्थ में हम लोग इस विषय में सर्वथा अनभिज्ञ हैं । नामदेव और कबीरदास जी का जन्म अन्य लोगों की भाँति नहीं हुआ था । वे बाल-रुप में प्रकृति की गोद में पाये गये थे । नामदेव भीमरथी नदी के तीर पर गोनाई को और कबीर भागीरथी नदी के तीर पर तमाल को पड़े हुए मिले थे और ऐसा ही श्री साई बाबा के सम्बन्ध में भी था ।
वे शिरडी में नीम-वृक्ष के तले सोलह वर्ष कीकी तरुणावस्था में स्वयं भक्तों के कल्याणार्थ प्रकट हुए थे । उस समय भी वे पूर्ण ब्रहृज्ञानी प्रतीत होते थे । स्वपन में भी उनको किसी लौकिक पदार्थ की इच्छा नहीं थी । उन्होंने माया को ठुकरा दिया था और मुक्ति उनके चरणों में लोटता थी । शिरडी ग्राम की एक वृदृ स्त्री नाना चोपदार की माँ ने उनका इस प्रकार वर्णन किया है-एक तरुण, स्वस्थ, फुर्तीला तथा अति रुपवान् बालक सर्वप्रथम नीम वृक्ष के नीचे समाधि में लीन दिखाई पड़ा । सर्दी व गर्मी की उन्हें किंचितमात्र भी चिंता न थी । उन्हें इतनी अल्प आयु में इस प्रकार कठिन तपस्या करते देखकर लोगों को महान् आश्चर्य हुआ । दिन में वे किसी से भेंट नहीं करते थे और रात्रि में निर्भय होकर एकांत में घूमते थे ।
लोग आश्चर्यचकित होकर पूछते फिरते थे कि इस युवक का कहाँ से आगमन हुआ है । उनकी बनावट तथा आकृति इतनी सुन्दर थी कि एक बार देखने मात्र के ही लोग आकर्षित हो जाते थे । वे सदा नीम वृक्ष के नीचे बैठे रहते थे और किसी के दृार पर न जाते थे । यघपि वे देखने में युवक प्रतीत होते थे, परन्तु उनका आचरण महात्माओं के सदृश था । वे त्याग और वैराग्य की साक्षात प्रतिमा थे । एक बार एक आश्चर्यजनक घटना हुई । एक भक्त को भगवान खंडोबा का संचार हुआ । लोगों ने शंका-निवारार्थ उनसे प्रश्न किया कि हे देव कृपया बतलाइये कि ये किस भाग्यशाली पिता की संतान है और इनका कहाँ से आगमन हुआ है । भगवान खंडोबा ने एस कुदाली मँगवाई और एक निर्दिष्ट स्थान पर खोदने का संकेत किया । जब वह स्थान पूर्ण रुप से खोदा गया तो वहाँ एक पत्थर के नीचे ईंटें पाई गई ।
पत्थर को हटाते ही एक दृार दिखा, जहाँ चार दीप जल रहे थे । उन दरवाजों का मार्ग एक गुफा में जाता था, जहाँ गौमुखी आकार की इमारत, लकड़ी के तखते, मालाऐं आदि दिखाई पड़ी । भगवान खंडोबा कहने लगे कि इस युवक ने इस स्थान पर बारह साल तपस्या की है । तब लोग युवक से प्रश्न करने लगे । परंतु उसने यह कहकर बात टाल दी कि यह मेरे श्री गुरुदेव की पवित्र भूमि है तथा मेरा पूज्य स्थान है और लोगों से उस स्थान की भली-भांति रक्षा करने की प्रार्थना की । तब लोगों ने उस दरवाजे को पूर्ववत् बन्द कर दिया । जिस प्रकार अश्वत्थ औदुम्बर वृक्ष पवित्र माने जाते है, उसी प्रकार बाबा ने भी इस नीम वृक्ष को उतना ही पवित्र माना और प्रेम किया । म्हालसापति तथा शिरडी के अन्य भक्त इस स्थान को बाबा के गुरु का समाधि-स्थान मानकर सदैव नमन किया करते थे ।
साईँ सच्चरित्र अध्याय ४ का तीन वाडे़ क्रमशः
पता :
शिव साईँ मन्दिर, सेक्टर -१८, नोएडा, उत्तरप्रदेश, भारत।
हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें:
हवाई मार्ग द्वारा साईँ मन्दिर पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली का इन्दिरगाँधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है। यहाँ के एयरपोर्ट से मन्दिर लगभग २३.६ किलोमीटर दूर है। टैक्सी या कैब से ३० मिनट्स में पहुँचा जा सकता है शिव साईँ मन्दिर।
लोहपथगामिनी मार्ग से कैसे पहुँचें :
रेल मार्ग से साईँ मन्दिर, पहुँचने के लिए निकटतम नोएडा सेक्टर १८ मेट्रो रेलवे स्टेशन से 6.२ किलोमीटर की दूरी से ११ मिन्टस में पहुँच जाओगे शिव साईँ मन्दिर।
सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :
आप अपनी कार बाईक या बस से अंतर्राज्यीय बस स्थानक दिल्ली से आते हैं तो आप १९.२ किलोमीटर की यात्रा करके वाया नोएडा-लिन्क रोड़, राष्ट्रीय राजमार्ग से घण्टे २८ मिनट्स में पहुँच जाओगे। शिव साईँ मन्दिर।
श्री शिवशँकर एवँ श्री साईँ नाथ महराज की जय हो। जयघोष हो।।