श्री शनि देव मन्दिर, गाँव : पोचनपुर, नयी दिल्ली भाग : ४५२ , पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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श्री शनि देव मन्दिर, गाँव : पोचनपुर, नयी दिल्ली भाग : ४५२

आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा, भारत के धार्मिक स्थल : माँ चंद्रिका देवी मन्दिर, लखनऊ-सीतापुर मार्ग, गाँव:कठवाड़ा, लखनऊ, उत्तरप्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट अथवा रह गया हो तो आप कृप्या करके प्रजाटूडे की वेबसाइट पर जाकर www.prajatoday.com पर जाकर धर्मसाहित्य पृष्ठ पर पढ़ दसकते हैं:

श्री शनि देव मन्दिर, गाँव : पोचनपुर, नयी दिल्ली भाग : ४५२

श्री शनि देव मन्दिर, पोचनपुर कॉलोनी, द्वारका नयी दिल्ली भारत की राजधानी के मन्दिरों में श्री शनि देव मन्दिर, पोचनपुर कॉलोनी प्रसिद्ध एवं पसंदीदा मन्दिर का दौरा करें। द्वारका, नई दिल्ली, दिल्ली 110077

श्री शनि देव मन्दिर, पोचनपुर कॉलोनी, द्वारका, ब्लॉक ए, सेक्टर 23 द्वारका, नई दिल्ली में प्रत्येक शनिश्चरवार को भक्तजनों की भारी भीड़ देखने को मिल जाएगी। श्रद्धालुजन यहां आकर शान्ति की अनुभूति करते हैं। जैसा कि सनातन धर्म में माना जाता है की श्री शनि देव, न्याय और स्तयनिष्ठा के प्रतीक हैं, यहां एक भावपूर्ण श्री शनि देव मंडल का संगठन निशुल्क कार्य करता है। आप जाओगे तो बेहतर महसूस करोगे। सभी राग द्वेष क्लेश mit जाते हैं जो श्री शनि देव को पूजता है, उसका भाग्योदय स्वयं ही हो जाता है।

सूर्यपुत्र श्री शनि देव की क्या है क्रूरता की वजह:

शनिदेव को सभी ग्रहों में सबसे ज्यादा क्रूर माना जाता है। लेकिन क्या हम जानते हैं कि उनके क्रूर होने की पीछे की क्या कथा है। शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में एक कथा मिलती है कि राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ था। सूर्यदेव का तेज बहुत अधिक था, जिसे लेकर संज्ञा का परेशान रहती थी। वो सूर्य की अग्नि को कम करना चाहती थीं। कुछ समय बाद संज्ञा और सूर्य के तीन संताने उत्पन्न हुई। वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना। संज्ञा इसके बाद भी सूर्य के तेज को कम करने का उपाय सोचती रहती थी, इसलिए उन्होनें एक दिन अपनी हमशक्ल को बनाया और उसका नाम सवर्णा रखा। संज्ञा ने अपने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी संवर्णा को सौंप दी और खुद अपने पिता के घर चली गई। वहां उनके पिता ने उन्हें वापस भेज दिया। लेकिन वो एक जंगल में जाकर घोड़ी का रुप लेकर तपस्या में लीन हो गई।

सूर्यदेव को कभी संवर्णा पर शक नहीं हुआ क्योंकि वो संज्ञा की छाया ही थी। संवर्णा को छाया रुप होने के कारण सूर्यदेव के तेज से कभी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से मनु, शनिदेव और भद्रा का जन्म हुआ। ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव के गुस्से की एक कथा है कि उनकी माता छाया पर सूर्यदेव ने शक किया कि शनि काले हैं इस कारण वो उनके पुत्र नहीं हो सकते हैं। इस बात से नाराज होकर शनि ने गुस्से से सूर्य को देखा जिस कारण सूर्य भी काले हो गए और अपनी गलती का अहसास होने पर सूर्य ने माफी मांगी और फिर उन्हें उनका असली रुप प्राप्त हुआ।

ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे और शनिदेव जब विवाह योगय हुए तो उनका विवाह चित्ररथ नाम की एक कन्या के साथ हुआ। वैसे तो शनिदेव की पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्वनी थी, लेकिन हमेशा शनिदेव का कृष्ण भक्ति में लीन रहते थे और पत्नी को भुला बैठे थे। एक रात ऋतु स्नान कर संतान प्राप्ति की इच्छा लिए वह शनि के पास गई लेकिन शनिदेव हमेशा की तरह भक्ति में लीन थे। वो प्रतिक्षा कर-कर के थक गई और उनका ऋतुकाल बेकार हो गया। क्रोध में आकर उन्होनें शनिदेव को श्राप दे दिया कि उनकी दृष्टि जिसपर भी पड़ेगी वो नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने पत्नी को मनाने का प्रयत्न किया लेकिन श्राप वापस नहीं किया जा सकता है। इसलिए उस दिन के बाद से शनिदेव किसी पर भी दृष्टि डालने से बचते हैं।

पता

श्री शनि देव मन्दिर, गाँव:पोचनपुर, नयी दिल्ली, पिनकोड: ११००७७ भारत।

हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :

हवाई मार्ग से निकटतम हवाई अड्डा पालम दिल्ली का इंदिरागंधी हवाई अड्डा है अतः इस हवाईअड्डे से ११ किलोमीटर दूर स्थित है। आप कैब द्वारा २१ मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे श्री शनी देव मन्दिर।

मेट्रो रेल मार्ग से कैसे पहुँचें :

मेट्रो मार्ग से पहुँचने में आसानी से आप द्वारका के मेट्रो स्टेशन सैक्टर २३ से तकरीबन १ किलोमीटर दूर है,आप ३ मिनट्स में पहुंच जाओगे श्री शनी देव मन्दिर।

सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :

आप ISBT इन्टर स्टेट बस टर्मिनल द्वारा बस अथवा अपनी कार से २८.५ किलोमीटर की दूरी तय करके वाया वंदेमातरम मार्ग से आसानी से १ घण्टे में पहुँच जाओगे श्री शनि देव मन्दिए

श्री शनि देव की जय हो। जयघोष हो।।

110 thoughts on “श्री शनि देव मन्दिर, गाँव : पोचनपुर, नयी दिल्ली भाग : ४५२ , पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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