त्र्यम्बकेश्वर महादेव मन्दिर, गाँव : त्र्यम्बक, नासिक, महाराष्ट्र भाग :४४७,पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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त्र्यम्बकेश्वर महादेव मन्दिर, गाँव : त्र्यम्बक, नासिक, महाराष्ट्र भाग :४४७

आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा, भारत के धार्मिक स्थल : मजनूँ का टीला गुरुद्वारा साहिब, न्यू चंद्रावल, सिविल लाईन्स, नई दिल्ली। यदि आपसे उक्त लेख छूट अथवा रह गया हो तो आप कृप्या करके प्रजाटूडे की वेबसाइट पर जाकर www.prajatoday.com पर जाकर धर्मसाहित्य पृष्ठ पर पढ़ दसकते हैं:

त्र्यम्बकेश्वर महादेव मन्दिर, गाँव : त्र्यम्बक, नासिक, महाराष्ट्र भाग :४४७

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में त्रयंबक गाँव में हैं। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप स्थित त्रयम्बकेश्वर-भगवान की भी बड़ी महिमा हैं गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गढ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद ‘रामकुण्ड’ और ‘लष्मणकुण्ड’ मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग :

त्र्यंबकेश्‍वर ज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्‍य सभी ज्‍योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।

एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्नियां किसी बात को लेकर महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। ऐसे में महर्षि गौतम का अपमान करने के लिए ब्राह्मणों ने भगवान गणेश की कठोर तपस्या की। ब्राह्मणों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। इस पर ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम को तपोवन से बाहर निकालने के लिए कहा। भगवान गणेश ने ब्राह्मणों को ऐसा ना करने के लिए समझाया, लेकिन वह नहीं माने। आखिर में भगवान गणेश को उनकी बात माननी पड़ी।विवश होकर भगवान गणेश ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण किया और महर्षि गौतम के खेत में फसल खाने लगे। यह देख महर्षि गौतम ने जैसे ही गाय को भगाने के लिए उसे तिनकों से उसे धीरे से मारा, गाय वहीं मर गई।

यह देख सारे ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम पर गोहत्या का आरोप लगाते हुए उन्हें वहां से जाने के लिए कह दिया। इस पर महर्षि गौतम ने उनसे प्रायश्चित करने का उपाय पूछा ।ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम से कहा कि तुम तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा, एक महीने तक व्रत और ब्रह्मगिरि की सौ परिक्रमा करो तो ही तुम्हारी शुद्धि होगी। यदि यह ना कर सको तो गंगा जी को यहां लेकर आओ और उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग की पूजा करो। इसके बाद वापस गंगा में स्नान करके फिर सौ घड़ों से पार्थिव शिवलिंग का जलाभिषेक करो।

ब्राह्मणों के बताए अनुसार महर्षि गौतम ने कठोर तपस्या की।महर्षि गौतम की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देते हुए ब्राह्मणों द्वार किए गए छल के बारे में बताया और उन्हें दंड देने की बात कही। इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि इनके छल के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं। आप इन्हें माफ़ कर दे और हमेशा के लिए यहां विराजमान हो जाए। इसके बाद भगवान शिव वहीँ गौतमी-तट पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इसके अलावा महर्षि गौतम द्वारा लाई गई माता गंगा भी पास में ही गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं।

गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर काले पत्‍थरों से बना है। मंदिर का स्‍थापत्‍य अद्भुत है। इस मंदिर के पंचक्रोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्‍न होती है। जिन्‍हें भक्‍तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।

इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।

गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मंदिर का मुख्य द्वार नजर आने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इसी पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है।

इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है :

एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की।

उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- ‘प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।’ उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर न माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।

अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।

सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- ‘गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।’ अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।

तब उन्होंने कहा- ‘गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद ‘ब्रह्मगिरी’ की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।

ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- ‘भगवान्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।’ भगवान्‌ शिव ने कहा- ‘गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।’

इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।’ बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान्‌ शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।

इस भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरेजड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक-सा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है।

‘कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा काफी रोचक है। कहते हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।’-

दंत कथा :

शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त भोर के समय स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना भी होती है, जिसके कारण यहाँ साल भर लोग आते ही रहते हैं।

पता :

त्र्यम्बकेश्वर महादेव मन्दिर, गाँव : त्र्यम्बक, नासिक, महाराष्ट्र, पिनकोड : 422212 भारत।

विभिन्न शहरों से त्र्यंबकेश्वर कैसे पहुंचे:

कुछ प्रमुख शहरों से त्र्यंबकेश्वर की दूरी: त्र्यंबकेश्वर से स्थान दूरी
नासिक 29 किमी, मुंबई 180 किमी, पुणे 238 कि.मी, अहमदनगर 145 किमी, पनवेल 221 कि.मी, मनमाड 121 किमी
सिकंदराबाद 900 किमी, अहमदाबाद 475 कि.मी, तिरुवनंतपुरम 1700 कि.मी, दिल्ली 1200 किमी, जलगांव 264 कि.मी, औरंगाबाद 204 कि.मी, नागपुर 655 किमी, इंदौर 439 किमी, बेंगलुरु 992 कि.मी
मुंबई से त्र्यंबकेश्वर: सड़क मार्ग से मुंबई से त्र्यंबकेश्वर:
अनुमानित दूरी- 180 किमी है।

हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :

त्र्यंबकेश्वर हवाई मार्ग से तीर्थनगरी से निकटतम हवाई अड्डा मुंबई में 166 किमी दूर स्थित है क्योंकि दुर्भाग्य से नासिक के पास अभी भी अपना हवाई अड्डा नहीं है। यहां आना विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए आदर्श है, जो छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डे से दुनिया के किसी भी गंतव्य के लिए उड़ानें प्राप्त कर सकते हैं। औरंगाबाद घरेलू हवाई अड्डा 204 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां से कोई भी प्रासंगिक घरेलू उड़ान पकड़कर पूरे भारत में किसी भी शहर की यात्रा कर सकता है। इसी तरह, पुणे घरेलू हवाई अड्डा त्र्यंबकेश्वर से 209 किमी से अधिक की दूरी पर स्थित है। हालांकि, इन गंतव्यों के बीच अक्सर निजी और सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता आगंतुकों के लिए काफी आसान बनाती है।

रेल मार्ग से कैसे पहुँचें :

नासिक स्टेशन से NH राष्ट्रीय राजमार्ग 160 द्वारा 39.1 किलोमीटर की दूरी तय करके कैब द्वारा 1 घण्टा 1 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे त्र्यम्बकेश्वर महादेव मन्दिर।

सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :

आप ISBT इन्टर स्टेट बस टर्मिनल द्वारा बस अथवा अपनी कार से 1,302 किलोमीटर की दूरी तय करके वाया मुम्बई- आगरा राष्ट्रीय राज मार्ग से 22 घण्टे 39 मिनेट्स में आसानी से पहुँच जाओगे त्र्यम्बकेश्वर महादेव मन्दिर।

त्र्यम्बकेश्वर महादेव जी महाराज की जय हो। जयघोष हो।।

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