प्रशांत सी बाजपेयी की कलम से….
( s/o स्वर्गीय शशि भूषण,
पद्य भूषण से सम्मानित,संसद सदस्य: 4 & 5 लोक सभा,संस्थापक: स्वतंत्रता आंदोलन यादगार समिति।)
बेमिसाल था गांधी जी का चंपारन 19 अप्रैल 1917 को शुरू किए इस आंदोलन को 104 पूरे साल हो गए हैं ।इसी आंदोलन के दौरान ही पहली बार संत राउत ने गाँधी जी “बापू” के नाम से पुकारा था जिसके बाद से गाँधी जी को बापू कहा जाने लगा था। चंपारण में गांधी जी के नेतृत्व में किसानों ने जिस तरह शांतिपूर्ण तरीक़े से अंग्रेजों के दमन और अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी,उनकी मिसाल मानव सभ्यता में कहीं नहीं मिलती है।
चंपारन में भोले भाले निहत्थे किसानों ने अंग्रेजों के ज़ुल्म,शोषण.अत्याचार और दमन के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए सत्याग्रह के ज़रिए अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया था।अंग्रेजों ने एक लाख एकड़ से भी अधिक उपजाऊ भूमि क़ब्ज़ा कर लिया था और उनपर अपनी कोठियाँ बनी ली थीं।
अंग्रेज़ तीनकाठिया व्यवस्था द्वारा किसानों पर तरह तरह के ज़ुल्म और शोषण करते थे।खुरकी व्यवस्था के तहत अंग्रेज रैयतों का कुछ रूपये देकर, अंग्रेज नील ले जाते थे।हज़ारों भूमिहीन मज़दूर तथा गरीब किसान खाद्यान्न के बजाय नील की खेती के लिए बाद्दय हो गये थे।1867 के पहले इन ज़मीनों पर पाँच कट्ठे आरक्षित होते थे। नील के खेती के लिjए फेक्टरियों में फसल देने के दौरान भी खेतिहारों पर अनेक तरह के कर लगाते थे।जिसमें बपाही,पुताही,मरवाता और सगौरा प्रमुख थे।
इन सब करों के बावजूद फ़ैक्ट्रियॉं फसलों का ग़लत मूल्यांकन करती थीं और किसानों को फसल अदायगी कभी समय पर नहीं होती थी।महात्मा गाँधी जी 15 अप्रैल 1917 को मोतिहारी पहुँचे,वहाँ से गांधी जी चंपारन के लिये प्रस्थान कर रहे थे,तभी मोतिहारी के DMO के सामने उपस्थित होने का सरकारी आदेश उन्हें प्राप्त हुआ।
उस आदेश में यह भी लिखा हुआ था कि वे इस क्षेत्र को छोड़कर तुरन्त वापस चले जाएँ। गाँधी जी ने इस DMO के आज्ञा का उल्लंघन कर अपनी यात्रा को जारी रखा।आदेश की अवहेलना के कारण उन पर मुक़दमा चलाया गया। चंपारन पहुँच कर गांधी जी ने ज़िलाधिकारी को लिखकर सूचित किया कि वे तब तक चंपारण नहीं छोड़ेंगे जब तक नील की खेती से जुड़ीं समस्याओं की जाँच,वे पूरी नहीं कर लेते। महात्मा गाँधी जी द्वारा शुरू विनय अवज्ञा आन्दोलन, चंपारन सत्याग्रह भारत में किया गया 1917 का पहला सत्याग्रह था।
चंपारन किसान आंदोलन देश की आज़ादी के संघर्ष का मज़बूत प्रतीक बन गया था।
19 अप्रैल,1917 का चंपारन सत्याग्रह गाँधी जी ने अपने पहले ही आंदोलन में कर दी था ये किसान और मज़दूरों के दमन के विरुद्ध जन क्रांति,महात्मा गाँधी जी विश्व के लाखों-कोड़ा लोगों के लिए आशा की किरण हैं जो सम्मान,समानता,समावेश और सशक्तिकरण से भरपूर जीना चाहते हैं ।