@ नई दिल्ली :-
भारत का दवा उद्योग वैश्विक स्तर पर एक विशाल उद्योग है जो मात्रा के मामले में तीसरे स्थान पर और मूल्य के मामले में 14वें स्थान पर है। यह जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है । जो वैश्विक आपूर्ति का 20 प्रतिशत आपूर्ति करता है और किफायती टीकों का एक प्रमुख सप्लायर है। 2023-24 में, इस क्षेत्र का कारोबार पिछले पांच वर्षों से 10 प्रतिशत से अधिक वार्षिक दर से लगातार बढ़ते हुए 4,17,345 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। भारत में वर्ष 2014 से 2024 तक फार्मा सेक्टर किफायती, नवोन्मेषी और समावेशी अग्रणी वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में परिवर्तित हो चुका है। फिच ग्रुप के इंडिया रेटिंग्स के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि मजबूत मांग और नए उत्पादों के कारण अप्रैल 2025 में राजस्व में साल-दर-साल 7.8 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
आम आदमी के लिए इसका मतलब है कम कीमत पर ज़्यादा दवाइयां, बेहतर स्वास्थ्य सेवा और देश भर की फैक्ट्रियों और प्रयोगशालाओं में नौकरियां। छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों तक, भारत की दवा कंपनियों की वृद्धि अवसर का सृजन कर रही है और लोगों की जान बचा रही है। भारत का फार्मास्युटिकल सेक्टर एक लाइफ लाइन की तरह है। केंद्र सरकार पीएमबीजेपी, पीएलआई और बल्क ड्रग पार्क जैसी योजनाओं से यह सुनिश्चित कर रही है कि स्वास्थ्य सेवा के मामले में कोई भी पीछे न छूटे।
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना 15,479 जन औषधि केंद्र संचालित करती है जो ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 80 प्रतिशत कम कीमत पर जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराते हैं। दिल की दवा जो कभी 500 रुपये की थी अब 100 रुपए की हो सकती है! फार्मास्यूटिकल्स के लिए 15,000 करोड़ रुपए की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, भारत में ही कैंसर और मधुमेह की दवाओं जैसी उच्च-स्तरीय दवाएं बनाने के लिए 55 परियोजनाओं का सहयोग करती है। 6,940 करोड़ रुपए की एक और पीएलआई योजना पेनिसिलिन जी जैसे कच्चे माल पर केंद्रित करती है । इससे आयात की हमारी जरूरत कम होती है। 3,420 करोड़ रुपए की सहायता वाली चिकित्सा उपकरणों के लिए पीएलआई एमआरआई मशीनों और हृदय प्रत्यारोपण जैसे उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा दे रही है।
गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में मेगा हब बनाने के लिए 3,000 करोड़ रुपये की लागत से बल्क ड्रग पार्क्स को बढ़ावा देने की योजना है ताकि दवाइयों का उत्पादन सस्ता और शीघ्र हो। फार्मास्युटिकल्स उद्योग को मजबूत करने के लिए 500 करोड़ रुपये लागत की योजना है। इसके अंतर्गत अनुसंधान और प्रयोगशालाओं को उन्नत बनाने के लिए धन की व्यवस्था की जाती है ताकि भारतीय कंपनियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सहायता मिल सके। इन प्रयासों का मतलब है कि भारत में, भारत के लिए और विश्व के लिए दवाइयां बनाई जाती हैं जिससे लागत कम और गुणवत्ता उच्च रहती है।
देश का फार्मा सेक्टर यूनिसेफ के 55-60 प्रतिशत टीके सप्लाई करता है। यह डब्ल्यूएचओ के डीपीटी (डिप्थीरिया, काली खांसी और टेटनस) वैक्सीन की 99 प्रतिशत मांग को पूरा करता है, बीसीजी (बैसिलस कैलमेट-गुएरिन एक वैक्सीन है जो मुख्य रूप से टीबी के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाती है) की 52 प्रतिशत और खसरे की 45 प्रतिशत मांग को पूरा करता है। अफ्रीका से लेकर अमेरिका तक, भारतीय टीके लाखों लोगों की जान बचाते हैं।
देश में यह योजनाएं युवा भारतीयों के लिए फैक्टरी श्रमिकों से लेकर वैज्ञानिकों तक के रोजगार का सृजन करती हैं। विदेशी निवेशक अकेले 2023-24 में 12,822 करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं क्योंकि उनको भारत की क्षमता दिखाई दे रही है। सरकार चिकित्सा उपकरणों और ग्रीनफील्ड फार्मा परियोजनाओं में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश का स्वागत करती है, जिससे भारत वैश्विक कंपनियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन गया है।