चिन्तपूर्णी माता मन्दिर, ज़िला : ऊना, हिमाचल प्रदेश भाग : ३९०
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिकस्थल : साईँ मन्दिर, औरैया, उत्तरप्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:
चिन्तपूर्णी माता मन्दिर, ज़िला : ऊना, हिमाचल प्रदेश भाग : ३९०
हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है यहाँ के हर कोने में किसी ना किसी देवी देवता का मन्दिर स्थित है और हर मन्दिर का अपना महत्व है। मुख्य ५१ शक्ति पीठ है जो मुख्यता देवी सती के ही रूप है। आज हम आपको जिस देवी के तीर्थ स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं वो हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित माता चिंतपूर्णी का मन्दिर है । चिन्तपूर्णी अर्थात चिंता को दूर करने वाली माता । चिन्तपूर्णी माता को छिन्मस्तिका के नाम से भी पुकारा जाता है छिन्मस्तिका का अर्थ है एक ऐसी देवी जो बिना सर के है । कहा जाता है की इस स्थान पर माता सती के चरण गिरे थे ।
चिन्तपूर्णी देवी की उत्पति की कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार सभी माताओ की उत्पति की एक ही कथा है। चिन्तपूर्णी देवी माता सती का ही रूप है ; इनकी कथा कुछ इस तरह है की भगवान शिव की शादी माता सती से हुई थी माता सती के पिता का नाम राजा दक्ष था वो भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था । एक बार महाराज दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया उन्होंने सभी देवी देवताओं की निमंत्रण भेजा किन्तु भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा गया । यह देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वह जाकर अपने पिता से इस अपमान का कारण पूछने के लिए उन्होंने शिव भगवान से वह जाने की आज्ञा मांगी किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वह जाने से मना की किन्तु माता सती के बार बार आग्रह करने पर शिव भगवान ने उन्हें जाने दिया ।
जब बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें काफी बुरा भला कहा और साथ ही साथ भगवान शिव के लिए काफी बुरी भली बातें कही जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी । यह देख कर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने माता सती का जला हुआ शरीर अग्नी कुंड से उठा कर चारों और तांडव करने लग गये जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया यह देख कर लोग भगवान विष्णु के पास भागे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के ५१ टुकड़े किये ये टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वह पर शक्ति पीठ बन गए । मान्यता है की यह माता के चरण गिरे थे जिसे सब चिंतपूर्णी माता नाम से जाना गया ।
देवी से जुड़ी एक और कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरो के बीच सो वर्षो तक युद्ध हुआ । जिसमे असुरो की विजय हुई । उस समय असुरो का राजा शक्तिशाली महिसासुर था जो जीत कर स्वर्ग का राजा बन बैठा । और सभी देवता धरती पर रह कर मनुष्यों की भांति ही अपना जीवन यापन करने लगे असुर देवताओं पर बहुत अत्याचार करते थे।
देवताओं ने एक दिन बैठ कर आपस में विचार विमर्श किया और इस कष्ट से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु के पास जाने का निर्णय किया । वह सब भगवान विष्णु जी के पास गये और अपने सरे कष्ट बता कर उन्हें कुछ उपाय बताने का आग्रह किया । भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने को कहा । तब देवताओं ने भगवान विष्णु से उस देवी के बारे में पूछा की ” हें प्रभु हमे उस देवी के बारे में बताए ” जो हमे हमारे कष्टों से मुक्ति दिला सकती है ।
सभी देवताओं ने भगवान के कहे अनुसार देवी की स्तुति की जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु जी , ब्रह्मा जी और शिव जी तीनों त्रिदेवो के अंदर से एक दिव्य प्रकाश उत्पन्न हुआ जो सबके देखते देखते ही एक स्त्री के रूप में बदल गया । जैसे ही देवी प्रकट हुई सभी ने माता की स्तुति करना आरम्भ कर दिया सभी देवी देवताओं ने माता को कुछ ना कुछ भेंट देना आरम्भ कर दिया शिव भगवान ने सिंह दिया विष्णु जी ने कमल , इंद्र देव ने घंटा , सागर देवता ने माता को बहुत ही सुंदर माला दी इस प्रकार सभी ने देवी को कुछ ना कुछ उपहार भेंट किये ।
सब ने हाथ जोड़ कर माता से अपनी रक्षा करने के लिए माता से आग्रह किया । माता ने प्रसन होकर उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति दिलाने का वरदान दिया । इसके बाद माता ने महिसासुर से कई समय तक युद्ध किया और अंत में उसका वध कर दिया । सभी ने माता की जय जय कार की और माता को महिसासुर मर्दानी के नाम से पुकारा इसके बाद माता का एक नाम महिसासुर मर्दनी भी पड़ा ।
चिन्तपूर्णी माता मन्दिर का इतिहास :
प्राचीन कथाओं के अनुसार कहा जाता है की चोदवी शताब्दी में माई दास नाम का एक माता का भगत था जिसने इस स्थान की खोज की थी । माई दास का जन्म अठुर नामक गाँव में हुआ था जिसकी रियासत पटियाला थी । माई दास अपने तीनों भाइयो में सबसे छोटा था वह एक धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति था उसका अधिकतर समय पूजा पाठ करने में बीतता था जिसके कारण वह अपना समय परिवार के कार्यो को नही दे पाता था जिसके कारण उसके भाइयो को उस पर बड़ा क्रोध आता था और इसी कारण से उन्होंने उसे अपने परिवार से अलग कर दिया । परन्तु इस बात का माई दास पर कोई असर नही हुआ वह प्रतिदिन की तरह अपने पूजा पाठ के कार्य में लगा रहा ।
एक दिन जब माई दास अपने ससुराल जा रहा था तब रास्ते में उसे थकान महसूस हुई वह आराम करने के लिए रास्ते में एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने बैठ गया । थकान होने के कारण उसकी आँख लग गई और वो उसी पेड़ के नीचे सो गया तभी उसे स्वप्न में एक तेजस्वी कन्या के दर्शन हुए जो उसे कह रही थी की है माई दास इस वृक्ष के नीचे मेरी एक पिंडी स्थापित करो और उसकी पूजा अर्चना करो तुम्हारे सारे दुःख दूर हो जायेंगे अचानक उसकी आँख खुल गई उसे कुछ समझ नही आ रहा था की यह सपना था की हक़ीकत । वह उठा और अपने ससुराल की और चला गया । जब वह अपने ससुराल से वापिस आया तो उसी स्थान पर आकर उसके कदम फिर रुक गये उसे आगे कोई मार्ग दिखी नही दे रहा था वह डर गया और वही बैठ गया और माता की स्तुति करने लगा ।
माई दास ने माता की स्तुति करते हुए कहा हे माता रानी अगर मैने सच्चे मन से आपकी स्तुति की है तो साक्षात् आकर मुझे दर्शन दे जब माई दास ने आंखे बंद करके माता को पुकारा तो माता ने दुर्गा माता के रूप में उसे दर्शन दे कर कहा की में बहुत लम्बे समय से इसी वृक्ष के नीचे विराजमान हुं । लोग मुझे भूल गये है तुम मेरे परम भगत हो तुम यही रह कर मेरी आराधना करो में तुम्हारे वंश की रक्षा करुगी । माई दास ने कहा की में यहाँ पर केसे रहकर आपकी आराधना करुँगा । यहाँ पर ना इस जंगल में ना तो पानी है पीने को और नहीं रहने को जगह है माता ने कहा की मैं तुम को निर्भय दान देती हुं की तुम जो भी शीला उखाड़ोगे वहा से जल निकल जायेगा इसी जल से तुम मेरी पूजा करना ।तब माई दास ने माता के आज्ञा से वही रहकर माता की आराधना की ।
आज इसी वट वृक्ष के नीचे माँ चिंतपूर्णी माता का भव्य मन्दिर है और वह शीला आज भी मन्दिर में रखी हुई है और जिस जगह पर पानी निकला था आज वह सुन्दर तालाब है । आज भी उसी स्थान से निकले जल से ही माता का अभिषेक होता है पुराणों के अनुसार यह स्थान चार महारुद्र के मध्य स्थित है ।
मार्कंडेय पूराण के अनुसार ऐसा विश्वास किया जाता है की सती चंडी की सभी दुष्टो पर विजय के उपरांत उनके दो शिष्य अजय और विजय ने सती से अपनी खून की प्यास बुझाने की प्रार्थना की थी यह सुनकर सती चंडी ने अपना मस्तिक काट कर उनकी प्यास बुझाई तभी से उनका नाम छिन्मस्तिका पड़ा ।
चिन्तपूर्णी मन्दिर से जुड़ी मान्यता :
चिन्तपूर्णी देवी मंदिर ५१ शक्ति पीठो में से एक है लोग यहाँ दूर दूर से माता के दर्शन करने के लिए आते है । माता को मंदिर से जुड़ी बहुत मान्यताये है । की जो भी सच्चे मन से माता के चरणों में अपना शीश झुकता है उसकी हर मनोकामना ज़रुर पूरी होती है माता के दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में लोग कोने कोने से आते है । नवरात्रि के अवसर पर यहाँ पर माता की विशेष पूजा अर्चना होती है ।
पौड़ी पौड़ी चड़दे जाओ, जय माता दी कैंदे जाओ ;
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माँ चिंतपूर्णी को पँ० ज्ञानेश्वर हँस ”देव” का साष्टांग दण्डवत पद्म प्रणाम स्वीकारो माँ।
पता :
चिन्तपूर्णी माता मन्दिर, ग्राम एवँ डाकघर चिंतपूर्णी ज़िला : ऊना, हिमाचलप्रदेश पिनकोड :177110 भारत।
हवाई मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
हवाईजहाज से निकटतम हवाई अड्डा गग्गल है। जो काँगड़ा के पास है। गग्गल-चिन्तपूर्णी की दूरी करीब ६० किलोमीटर है। किंगफिशर रेड एयरलाइंस रोज़ाना गग्गल के लिए उड़ान भरती है। अन्य हवाई अड्डे अमृतसर (१६०किलोमीटर) चंडीगढ़ (२००किलोमीटर)
देहरादून (४०९किलोमीटर)
दिल्ली (४७०.३ किलोमीटर)
रेल मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
रेल द्वारा आप निकटतम रेलहेड्स होशियारपुर (४२ किमी) और अम्ब अंदौरा (१९ किमी) में हैं। इन शहरों से चिंतपूर्णी के लिए लगातार बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। आप नई दिल्ली से नईदिल्ली- अमृतसर शताब्दी एक्सप्रेस (सुबह ७;२० बजे चलती है और दोपहर १२:०० बजे के आसपास जालंधर पहुँचती है) या दिल्ली से जालँधर के लिए कोई अन्य फास्ट ट्रेन ले सकते हैं। फिर चिन्तपूर्णी के लिए बस या टैक्सी लें। जालँधर से चिन्तपूर्णी (९० किलोमीटर) की यात्रा निजी परिवहन द्वारा ३ घण्टे से अधिक नहीं होनी चाहिए। जम्मू मेल दिल्ली स्टेशन से रात ०८;२० बजे निकलती है और जालँधर सिटी सुबह ०३:४० बजे पहुँचती है। इसमें एक होशियारपुर-बाउंड कम्पार्टमेंट है जो इस ट्रेन से अलग है और एक लोकल ट्रेन से जुड़ा है जो सुबह ५:०० बजे होशियारपुर के लिए रवाना होती है। इस ट्रेन का होशियारपुर पहुंचने का समय सुबह ०६:२५ बजे है। वापसी यात्रा का समय है: होशियारपुर से शाम ०७:१५ बजे प्रस्थान करें, दिल्ली ०५:४५ बजे पहुंचे। होशियारपुर बस स्टेशन पर चिंतपूर्णी की आगे की यात्रा के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग से कैसे पहुँचे मन्दिर :
ISBT से चिन्तपूर्णी मन्दिर आने के लिए बस, अपनी कार या बाईक से आते हैं तो ४७५.८ किलोमीटर की दूरी तय करके आप ८ घण्टे ५० मिनट्स में पहुँच जाओगे चिन्तपूर्णी माता मन्दिर।
सड़क द्वारा दिल्ली-चंडीगढ़-रोपड़-नंगल-ऊना-मुबारकपुर-भरवाईं-चिंतपूर्णी रूट। दिल्ली और हिमाचल राज्य परिवहन।दिल्ली-चंडीगढ़-चिंतपूर्णी रूट पर बसें चलाते हैं।
दिल्ली-चंडीगढ़ मार्ग पर (लगभग ५ घंटे) बहुत लगातार बसें चलती हैं। चिंतपूर्णी चंडीगढ़ से बस द्वारा ५ घंटे की दूरी पर है।
हिमाचल राज्य सड़क परिवहन निगम दिल्ली से धर्मशाला के लिए वोल्वो टूरिस्ट कोच सेवा चलाता है जो अनुरोध पर भरवाईं में रुकती है। कोच दिल्ली इंटर स्टेट बस टर्मिनस, कश्मीरी गेट से रात ८ बजे रवाना होता है और सुबह ४ बजे के बाद भरवाईं पहुंचता है। किराया लगभग है। ६०० रुपये। यह बहुत ही आरामदायक और तेज़ सेवा है। कृपया कोच के ड्राइवर को सूचित करें कि आप भरवाईं में उतरना चाहते हैं। नकारात्मक पक्ष यह है कि आप भरवाईं में बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं और आपको चिंतपूर्णी के लिए ३ किमी के लिए किसी भी प्रकार के परिवहन को पकड़ने से पहले कम से कम १ घंटा इंतजार करना पड़ सकता है। दिल्ली की वापसी यात्रा के लिए, आपको आवश्यक बुकिंग करने के लिए व्यक्तिगत रूप से कांगड़ा जाना होगा। ऑनलाइन बुकिंग एडवांस में भी की जा सकती है।
छिन्नमस्तिका चिन्तपूर्णी माताजी की जय हो। जयघोष हो।।
Güzel bir yazı, arkadaşlarımla paylaştım.