@ भोपाल मध्यप्रदेश :-
पानी बचाना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य
नदियों और जलाशयों को स्वच्छ बनाए ,रखना हम सबकी जिम्मेदारी
भारतीय संस्कृति में जल पूजनीय है। पवित्र नदियों के जल को हम माता के रूप में पूजते हैं। प्रयागराज महाकुंभ में 66 करोड़ से ज्यादा लोगों ने स्नान किया। स्पष्ट है कि पवित्र नदियों के प्रति लोगों की अत्यधिक आस्था है। जैसा कि हम जानते हैं कि धरती का उद्गम जल के गर्भ से हुआ है। मनुष्य के जन्म से ही उसका रिश्ता पानी से हो जाता है, जो मृत्यु पर्यंत तक चलता रहता है। मनुष्य का परिचय नदियों के तटीय स्थानों से होता रहा है। प्राचीन काल से ही मानवीय बसाहट ही नदियों के किनारे स्थापित हुई। आज भी गांवों और नगरों का विकास पानी की उपलब्धता को देखते हुए किया जाता है। कृषि विकास हो या औद्योगिक विकास, इसका आधार पानी ही है। मनुष्य सहित सभी जीव प्राणियों के जीवन का आधार जल ही है।
बचपन से हमारे संस्कारों में जल का प्रयोग शुरू हो जाता है। पूजन शुरू करते हैं तो देवी देवताओं को जल अर्पित करते हैं। पाठ शुरू करने पर जल का आचमन करते हैं। कलश यात्रा हो या पूजा में रखे जाने वाले जल कलश की बात हो, हर समय जल की पूजा हमारे संस्कारों में रची बसी है । सुबह उठते ही हम नित्य क्रिया करते हैं। स्नान करते हैं, भोजन बनाते हैं ।
पौधों और खेतों को पानी देते हैं। पशु पक्षियों को जल देते हैं । इस तरह हम देखते हैं कि दिनचर्या की शुरुआत जल से होती है और रात को सोने तक हम जल का उपयोग करते रहते हैं । स्पष्ट है कि जल के बिना जीवन असंभव है। यह जानते हुए भी हम दैनिक व्यवहार में पानी का अपव्यय करते हैं । जल को प्रदूषित करते हैं।
जलापूर्ति की पाइप लाइनों में लीकेज कई महीनों तक चलते रहते हैं। इस ओर हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमें जल संरक्षण और जल की बचत की आदत अपनाने की जरूरत है। तभी हम अगली पीढ़ियों को जल उपयोग के लिए दे सकेंगे।
स्वतंत्रता के बाद देश में अनेक बड़े और छोटे बांध बनाए गए। जल संरक्षण की योजनाएं लागू की गई, परंतु आज भी हम देखते हैं कि ग्रीष्मकाल आते ही जलसंकट शुरू हो जाता है। देश के अनेक राज्यों में जल संकट के कारण त्राहिमाम मची रहती है। शुद्ध जल लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। खेतों की प्यास बुझ नहीं पा रही है। प्यास से आम आदमी भी परेशान है। जहां जल स्रोत हैं वहां प्रदूषण बढ़ रहा है। हमने ओद्योगिक विकास की जो राह चुनी उसकी शुरुआत से ही हमने प्रदूषण का ध्यान नहीं रखा, इसलिए यह दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि है कि दुनिया के 2.1 अरब लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है। पानी प्राप्त करने के लिए करोड़ों की आबादी ऐसी है, जिसे साफ पानी लेने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। भूगर्भ के जल में आर्सेनिक और यूरेनियम जैसे प्रदूषक तत्त्व बढ़ रहे है, इससे पानी प्रदूषित हो रहा है और प्रदूषित पानी का उपयोग करने से अनेक बीमारियां हो रही हैं।
इस देश में नदियों को सदानीरा कहा जाता था, परंतु आज स्थिति उलट है। आज नदियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। नदियां सूख रही हैं, उनमें प्रदूषण बढ़ने से वे गंदे नाले में तब्दील हो रही हैं। पानी बचाने की आज हमें पानी बचाने के लिए गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। जल संकट की समस्या के कारण कई स्थानों पर लोगों को पानी के भीतर खड़े होकर पानी बचाने के आंदोलन को करना पड़ता है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि हमारे देश में इतना जल उपलब्ध है, फिर भी जल संकट क्यों बढ़ रहा है। प्राचीन ग्रंथों में जल सूक्त जल महत्त्व का अद्भुत उदाहरण है। पूर्वजों का कहना है कि हम पानी का मान रखेंगे, तो पानी हमारा मान रखेगा। इस बात को हमें समझना होगा।
ऋषि-मुनियों और पूर्वजों ने जल, अग्नि, आकाश और वायु को देवता माना और हमारे कर्मों के साथ पाप पुण्य से उन्हें जोड़ दिया। प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का कार्य है। यह हमें बताया। भूखे को भोजन कराने से पुण्य मिलता है, यह हमारे संस्कारों में है। हमारे यहां गर्मियों में प्याऊ खोलकर पानी पिलाने की परंपरा रही है। शहरों में अब धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म हो रही है। पानी अब बिकने लगा है।
यह सत्य है कि पानी प्रकृति प्रदत्त है। इसे नैतिक रूप से बेचा नहीं जा सकता। इसके बावजूद निजी व्यापारी और कंपनियां बोतलबंद पानी का व्यापार कर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। नगरीय निकाय और पंचायत भी पानी की आपूर्ति करके मोटा शुल्क वसूल कर रही हैं। इस शुल्क में रखरखाव के नाम पर साल दो साल में वृद्धि कर रही हैं। जनता पर इसका बोझ भी पड़ रहा है, फिर भी जिम्मेदार मौन हैं। अन्न,पानी, बिजली, कपड़ा, ये मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। सरकार को चाहिए कि इन चीजों पर शुल्क न बढ़ाया जाए। स्टेशन , बस स्टैंड और बस्तियों में निशुल्क पानी जनता को मुहैया कराया जाए। जगह-जगह नगरीय निकायों द्वारा प्याऊ लगवाकर प्यासे लोगों को पानी पिलाया जाए। शुल्क वसूल करके यदि जल दिया जा रहा है तो यह व्यापार है, धर्म नहीं। अन्न जल से प्रजा का पोषण करना राज दायित्व है। यही हमारी संस्कृति है।
सरकार और नगरीय निकायों को इस विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए। साथ ही पानी की बचत करना जनता और उपभोक्ताओं का पहला कर्तव्य होना चाहिए। जल की बूंद बूंद का महत्व समझाने के लिए जन जागरूकता की आवश्यकता है।