शनि देव मन्दिर, विश्वनाथगंज बाज़ार, प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश भाग:३७७
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिकस्थल : श्री साईँ चेतना सनातन धर्म मन्दिर, टकरोहि, लखनऊ, उत्तरप्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:
शनि देव मन्दिर, विश्वनाथगंज बाज़ार, प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश भाग:३७७
शनि मन्दिर प्रतापगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक नगर है, इसे लोग बेल्हा भी कहते हैं। क्योंकि यहाँ बेल्हा देवी मन्दिर है जो कि सई नदी के किनारे बना है। इस ज़िले को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जाता है। यहाँ के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही भारत वर्ष के प्रथम प्रधानमंत्री पन्डित जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा के माध्यम से अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था। इस धरती को रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास और राष्ट्रीय कवि हरिवँश राय बच्चन की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता है। यह ज़िला धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी कि जन्मभूमि और महात्मा बुद्ध की तपोस्थली है। प्रतापगढ़ की लोक प्रचलित भाषा अवधी तथा शासकीय भाषा हिन्दी है।
शनि देव का यह मन्दिर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थित है। यह शनि धाम के रूप में विख्यात है। प्रतापगढ़ ज़िले के विश्वनाथगंज बाजार से २ किलोमीटर दूर कुशफरा के जँगल में यह मन्दिर है। भगवान शनि का प्राचीन पौराणिक मन्दिर लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र हैं। मान्यता कि ये ऐसा स्थान है जहां आते ही भक्त भगवान शनि की कृपा का पात्र बन जाता है। अवध क्षेत्र का ये एक मात्र पौराणिक शनि धाम है। यहाँ प्रत्येक शनिवार भगवान को ५६ प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है!
पौराणिक शनि देव मन्दिर
प्रतापगढ़ जिले के विश्वनाथगंज बाजार से लगभग २ किलो मीटर दूर कुशफरा के जंगल में भगवान शनि का प्राचीन पौराणिक मन्दिर लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था के केंद्र हैं। कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है जहां आते ही भक्त भगवान शनि जी की कृपा का पात्र बन जाता है। चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है। यह धाम बाल्कुनी नदी के किनारे स्थित है। जो की अब बकुलाही नाम से भी जानी जाती है। अवध क्षेत्र के एक मात्र पौराणिक शनि धाम होने के कारण प्रतापगढ़ (बेल्हा) के साथ-साथ कई जिलों के भक्त आते हैं।
शनिवार के दिन ही शनिदेव पर क्यों चढ़ाया जाता है सरसों का तेल :
शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है। शनिवार के दिन शनिदेव की सच्चे मन से पूजा- अर्चना करने पर शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है।
शनिवार का दिन शनिदेव पूजा :
शनिश्चरवार को समर्पित है शनि देव की पूजा। शनिवार के दिन शनिदेव की सच्चे मन से पूजा- अर्चना करने पर शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। इनकी क्रूर दृष्टि से सिर्फ इन्सान ही नहीं, बल्कि देवता भी डरते हैं। लोगों के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब शनिदेव ही रखते हैं। ऐसे में उनकी कृपा पाने के लिए हर शनिवार के दिन मंदिर में सरसों के तेल और दीया चढ़ाया जाता है. ताकि उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके।
शनिदेव को सिर्फ सरसों का तेल ही अर्पित किया जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि शनिदेव का सिर्फ सरसों का तेल ही क्यों चढ़ाया जाता है। नहीं, तो चलिए जानते हैं शनि देव को सरसों का तेल इतना पसंद है।
शनिदेव पौराणिक कथा :
नवग्रहों के राजा हैं श्री शनि देव महाराज। जनसामान्य में फैली मान्यता के अनुसार नवग्रह परिवार में सूर्य राजा व शनिदेव भृत्य हैं लेकिन महर्षि कश्यप ने शनि स्तोत्र के एक मंत्र में सूर्य पुत्र शनिदेव को महाबली और ग्रहों का राजा कहा है- ‘सौरिग्रहराजो महाबलः।’ प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शनिदेव ने शिव भगवान की भक्ति व तपस्या से नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है।
एक समय सूर्यदेव जब गर्भाधान के लिए अपनी पत्नी छाया के समीप गए तो छाया ने सूर्य के प्रचंड तेज से भयभीत होकर अपनी आँखें बन्द कर ली थीं। कालांतर में छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शनि के श्याम वर्ण (काले रंग) को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर यह आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नहीं है तभी से शनि अपने पिता सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं।
शनिदेव ने अनेक वर्षों तक भूखे- प्यासे रहकर शिव आराधना की तथा घोर तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया था, तब शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने शनिदेव से वरदान मांगने को कहा। शनिदेव ने प्रार्थना की- युगों-युगों से मेरी मां छाया की पराजय होती रही है, उसे मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत अपमानित व प्रताड़ित किया गया है इसलिए मेरी माता की इच्छा है कि मैं (शनिदेव) अपने पिता से भी ज्यादा शक्तिशाली व पूज्य बनूं। तब भगवान शिवजी ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ रहेगा। तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव तो क्या- देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर और नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। ग्रंथों के अनुसार शनिदेव कश्यप गोत्रीय हैं तथा सौराष्ट्र उनका जन्मस्थल माना जाता है।
पता :
शनि देव मन्दिर, विश्वनाथगंज, ज़िला : प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश। पिनकोड : 230001 भारत।
शनि देव मन्दिर बाय एयर से कैसे पहुँचें:
इस शनि मन्दिर पहुँचने के लिए सबसे नज़दीकी वायु सेवा लखनऊ में स्थित हैं ,जो की प्रतापगढ़ जिले से १८० किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं |
शनि देव मन्दिर ट्रेन द्वारा कैसे पहुँचें:
यह मन्दिर प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन से १५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं |
शनि देव मन्दिर सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें:
यह मन्दिर प्रतापगढ़ बस स्टेशन से १५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं |
शनि देव महाराज की जय हो। जयघोष हो।।