श्री ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव मन्दिर वेरुल,औरंगाबाद,महाराष्ट्र भाग : ३७१,पण्डित ज्ञानेश्वर हँस “देव” की क़लम से

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श्री ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव मन्दिर, वेरुल, औरंगाबाद, महाराष्ट्र भाग : ३७१

आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिकस्थल : श्री काली बाड़ी मन्दिर, मन्दिर मार्ग, निकट बिड़ला मन्दिर, नई दिल्ली। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:

श्री ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव मन्दिर, वेरुल, औरंगाबाद, महाराष्ट्र भाग : ३७१

घृष्णेश्वर मन्दिर महाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर के पास वेरुल नामक स्थान पर स्थित है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से अन्तिम ज्योतिर्लिंग है। यह मन्दिर अजन्ता और ऐलोरा की गुफाओं के पास ही स्थित है। प्राचीन हिन्दू धर्मों में घृष्णेश्वर मन्दिर को कुमेश्वर, घुश्मेश्वर या घुसृणेश्वर मन्दिर आदि नामों से भी जाना जाता था। हम आगे घृष्णेश्वर मन्दिर के बारे में ६ जगह जानेंगे:-

१.घृष्णेश्वर मन्दिर का धार्मिक महत्व। २.घृष्णेश्वर मन्दिर का इतिहास। ३.घृष्णेश्वर मन्दिर की वास्तुकला। ४.घृष्णेश्वर मंदिर खुलने का समय। ५.घृष्णेश्वर मंदिर के पास घूमने के स्थान। ६.घृष्णेश्वर मन्दिर में कैसे पहुंचे ?

घृष्णेश्वर मन्दिर का धार्मिक महत्व :

घृष्णेश्वर मन्दिर के बारे में शिव पुराण में बताया गया है कि देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। वह ब्राह्मण बहुत बड़ा ही शिवशँकर भक्त था। प्रत्येक दिन सुबह उठते ही विधि विधान से भगवान शिवशँकर की पुजा आराधना किया करते थे। दोनों ब्राह्मण पति-पत्नी खुशी से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।

परंतु उन दोनों ब्राह्मण पति-पत्नी को हमेशा इस बात का दुख रहता था, कि उनकी कोई सन्तान नहीं है। एक बार सुदेहा पड़ोसियों के व्यंगों से परेशान होकर सुधर्मा से बोली कि मुझे संतान चाहिये, आपको हमारे वंश को नष्ट होने से बचाना होगा और वंश को आगे बढ़ाने के लिए आप मेरी बहन घुष्मा से विवाह कर लीजिए। यह बात सुनकर सुधर्मा ने इस बात का विरोध किया। उन्होने कहा कि इस विवाह से सबसे ज्यादा दु:ख तुमको ही होने वाला है। परन्तु सुदेहा अपनी ज़िद पर अड़ी रही। तो सुधर्मा ने अपनी पत्नी की बात मानकर उसकी बहन घुष्मा से विवाह कर लिया।

शादी होने के बाद सुदेहा ने अपनी बहन घुष्मा से कहा कि प्रतिदिन १०१ पार्थिव शिव लिंग बनाकर पूरे विधि-विधान से भगवान शिवशँकर की पुजा करते रहना है। वह बहन की बात मानकर प्रतिदिन पूजा करती थी और पुजा करने के बाद उन शिव लिंगों का विसर्जन पास में स्थित तालाब में किया करती थी। कुछ समय पश्चात भगवान शिवशँकर की कृपा से घुष्मा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसके बाद घुष्मा का सम्मान बढ़ता गया और सुदेहा के मन में छोटी बहन से इर्ष्या होने लगी। पुत्र के बड़े होने के बाद बड़े धूम-धाम से उसकी शादी की गई जिसके बाद घुष्मा का सम्मान और बढ़ गया। यह बात देखकर सुदेहा की इर्ष्या और अधिक बढ़ गयी।

जिस कारण उसने सोते हुये पुत्र की चाकू से हत्या कर दी और उसके अँगों को काटकर उसी तालाब में फैक दिया जहाँ घुष्मा शिवलिंगों का विशर्जन करती थी। अगले दिन सुबह जब घुष्मा और सुधर्मा भगवान शिवशँकर की पुजा में लीन थे तो उनको पुत्रवधू के रोने कि आवाज आयी साथ में सुदेहा भी रोने का नाटक करने लगी। पुजा समाप्त होने के बाद घुष्मा जब शिवलिंगों का विसर्जन करने उसी तालाब में गयी तो उसने देखा कि उसका पुत्र वहीँ तालाब के पास खड़ा है।

यह देख कर घुष्मा बहुत खुश हुई और उसे भगवान शिव कि लीला समझ में आ गयी। उसी समय भगवान शिवशँकर वहाँ पर एक ज्योति के रूप में प्रकट हुये। उन्होने घुष्मा को उसकी बहन सुदेहा का अपराध बताया और उसे दण्ड देने की बात कही। यह बात सुनकर घुष्मा ने भगवान शिव से अपनी बहन को माफ करने अनुरोध किया घुष्मा की बातों से पसन्न होकर भगवान शिवशँकर ने उससे वर माँगने को कहा तो घुष्मा ने भगवान शिव से वर मांगा कि अपने भक्तों के कल्याण के लिए आप हमेशा के लिए यहाँ विराजमान हो जाएँ। उसी दिन से यह मन्दिर घृष्णेश्वर मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

घृष्णेश्वर मन्दिर का इतिहास :

घृष्णेश्वर मन्दिर के विनाश और पुनः निर्माण का भी एक अलग ही इतिहास है। १३वीं और १४वीं शताब्दी के दौरान जब दिल्ली सल्तनत मुगल शासकों और मराठा शासकों के बीच युद्ध हुआ तो इस मन्दिर को भी बहुत नुकसान हुआ। मुस्लिम शासकों ने मंदिर के प्राचीन स्वरूप तहस नहस कर दिया था। जहाँ हिन्दू शासक बार-बार इस मन्दिर का निर्माण करते रहते तो मुस्लिम शासक इस मन्दिर को तोड़ते रहते थे। बाद में १६वीं शताब्दी में इस मन्दिर जीर्णोद्धार मालोजी राजे भौंसले जी द्वारा कराया गया था। मालोजी राजे भौंसले छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा जी थे। लेकिन इस मन्दिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण १८वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था।

घृष्णेश्वर मन्दिर की वास्तुकला :

घृष्णेश्वर मन्दिर प्राचीन हिन्दू शिल्प कला का एक बेजोड़ नमूना है। इस मन्दिर का निर्माण लाल बलुवा पत्थर से किया गया है। इस मन्दिर परिसर में तीन प्रवेश द्वार हैं। जिनमें एक महाद्वार और दो पक्ष द्वार हैं। मन्दिर के गर्भ गृह में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग विराजमान है। गर्भ गृह के ठीक सामने एक बहुत ही भव्य और शानदार सभा गृह स्थित है। इस सभा गृह का निर्माण मज़बूत स्तम्भों में किया है। इस सभा कक्ष में नन्दी जी की एक विशाल मूर्ति विराजमान है। जो भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने स्थित है।

घृष्णेश्वर मन्दिर खुलने का समय :

घृष्णेश्वर मन्दिर सुबह ०५:३० बजे से रात को ९:३० बजे तक खुला रहता है। श्रावण के महीने में मन्दिर सुबह ओ३:०० बजे से रात ११:०० बजे के बीच खुला रहता है। इस दौरान मन्दिर में कई तरह के अनुष्ठान भी किए जाते हैं। भक्त दोपहर की आरती, शाम की आरती आदि अनुष्ठानों में शामिल हो सकते हैं।

घृष्णेश्वर मन्दिर के दर्शन का समय :

प्रातः ५:३० बजे से
रात्रि ९:३०बजे तक।

श्रवण मास के दौरान दर्शन सुबह ०३:०० बजे से दोपहर ११:०० बजे तक। दोपहर पूजा दोपहर ०१:०० बजे-दोपहर १:३० बजे तक ।
सायँकाल पूजा : ४:३० बजे से ५:०० बजे तक।

घृष्णेश्वर मन्दिर के पास घूमने के स्थान :

घृष्णेश्वर मन्दिर के आस पास घूमने वाले कुछ प्रमुख जगहों के बारे में नीचे जानकारी दी गयी है। कुछ समय निकाल कर आप इन स्थानों में घूम सकते हैं।

१- दौलताबाद किला

यह किला महाराष्ट्र का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। इस किले का निर्माण त्रिकोणीय आकार में हुआ है। यह महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। इस किले के भीतर कई खूबसूरत स्मारक स्थित हैं जैसे चीनी महल, चांद मीनार और हाथी टैंक आदि हैं। किले के शीर्ष में जाने का रास्ता एक संकरा पुल है, जिससे एक बार में केवल दो व्यक्ति ही जा सकते हैं। इस किले के बगल में एक चौड़ी खाई है और और वह हमेशा मगरमच्छों से भरा रहता है।

२- भद्रा मारुति मन्दिर

भद्रा मारुति मन्दिर औरंगाबाद के पास घूमने वाले सबसे प्रमुख स्थानों में से एक है। यह मन्दिर भगवान हनुमान जी को समर्पित है। हनुमान जी की मूर्ति यहां शयन अवस्था में विराजमान है और पूरी तरह से सिन्दूर से ढकी हुई है। अगर आप यहाँ आना चाहते हो तो हनुमान जयंती या राम नवमी के दौरान यहाँ आने का सबसे अच्छा समय है क्यूंकि इस समय यहाँ भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। जिस कारण इस जगह की सुन्दरता और आध्यात्मिकता कई गुणा बढ़ जाती है।

३- एलोरा की गुफाएँ

एलोरा में पत्थरों से निर्मित ३४ गुफ़ाएं विराजमान हैं। यह गुफाएं तीन अलग-अलग धर्मों (बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म) के निर्माण को दर्शाती हैं। यहाँ पर बौद्ध धर्म की १२ गुफाएं, हिंदू धर्म की १७ गुफाएं और जैन धर्म की ०५ गुफाएं स्थित हैं। यह औरंगाबाद के पास घूमने के लिए उन स्थानों में से है, जो साल के लगभग ३६५ दिनों में एक ताज़ा और सुखद जलवायु का आभास कराती हैं। यहाँ पर बारिश का मौसम के मौसम में जाना पर्यटकों को बहुत पसन्द आता है।

४- अजन्ता की गुफाएँ

अजन्ता की गुफाएं औरंगाबाद के पास घूमने की सबसे अच्छी जगहों में से एक है। इस गुफा की वास्तुकला बौद्ध धर्म कर प्रभाव को दर्शाती है और इन गुफाओं की संख्या लगभग २९ है। इस गुफा की दीवारों पर बनाई गई पेंटिंग पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।

५- शनि शिंगणापुर

शनि शिंगणापुर एक उच्च आध्यात्मिकता वाले काले पत्थर पर भगवान शनि देव की पूजा की जाती है। जिस कारण यह स्थान को अपने आप में विशिष्ट स्थान है। आपको यहां पर भगवान शनि देव का आशीर्वाद लेने के लिए लम्बी कतारों में खड़े होने की आवश्यकता नहीं है। आप कुछ ही मिनटों के भीतर यहाँ दर्शन कर सकते हो। स्थानीय लोग यहाँ हर शनिवार को पूजा और अभिषेक करते हैं। यह औरंगाबाद के पास घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है।

शिव शँकर कृपानिधान श्री घृष्णेश्वर महादेव के चरणोँ में ज्ञानेश्वर का दण्डवत प्रणाम स्वीकार हो।

पता :

घृष्णेश्वर महादेव मन्दिर, वेरुल, ओरंगाबाद, महाराष्ट्र पिनकोड : 431102 भारत।

हवाई / रेल / सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :

हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें:

हवाई मार्ग से घृष्णेश्वर मन्दिर पहुँचने के लिए छत्रपति सँभाजी महाराज एयरपोर्ट, औरंगाबाद से टैक्सी के माध्यम से मन्दिर परिसर में पहुँच सकते हैं। हवाई अड्डे से मन्दिर की दूरी ३६.५ किलोमीटर है।

लोहपथगामिनी मार्ग से कैसे पहुँचें :

रेल मार्ग से घृष्णेश्वर मन्दिर पहुँचने के लिए औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस के माध्यम से मन्दिर परिसर में पहुँच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से मन्दिर की दूरी लगभग २९ किलोमीटर है।

सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :

आप अपनी कार या बाईक या बस से अंतर्राज्यीय बस स्थानक औरंगाबाद आते हैं तो आप वाया मुम्बई-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग से होते हुए १,२२६.३ किलोमीटर की यात्रा करके, २२ घण्टे ४१ मिनट्स में पहुँच जाओगे घृष्णेश्वर मन्दिर। यहाँ पहुँचने के लिए महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों से महाराष्ट्र परिवहन की बसें और निजी बसें चलती रहती हैं।

श्री ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव की जय हो। जयघोष हो।।

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