स्थानेश्वर महादेव मन्दिर, थानेसर कुरुक्षेत्र, हरियाणा भाग : ३७५
आपने पिछले भाग में पढ़ा होगा भारत के धार्मिकस्थल : बाबा श्री पशुपतिनाथ मन्दिर, पशुपतिनाथ विहारकॉलोनी, बरेली,उत्तरप्रदेश। यदि आपसे उक्त लेख छूट गया या रह गया हो तो आप कृपया करके प्रजा टूडे की वेब साईट पर जाकर www.prajatoday.com धर्मसाहित्य पृष्ठ पढ़ सकते हैं! आज हम प्रजाटूडे समाचारपत्र के अति-विशिष्ट पाठकों के लिए लाए हैं:
स्थानेश्वर महादेव मन्दिर, थानेसर, कुरुक्षेत्र, हरियाणा भाग:३७५
स्थानेश्वर महादेव मन्दिर भगवान शिवशँकर का प्रसिध्द है स्थानेश्वर महादेव मन्दिर कुरुक्षेत्र हरियाणा के थानेसर शहर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है। यह मन्दिर भगवान शिवशँकर को समर्पित है और कुरुक्षेत्र के प्राचीन मन्दिरों मे से एक है। मन्दिर के सामने एक छोटा कुण्ड स्थित है जिसके बारे में पौराणिक सन्दर्भ अनुसार यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूँदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। कहते हैं कि भगवान शिवशँकर की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर प्रारम्भ हुई थी। इसलिए कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मन्दिर की यात्रा के बिना पूरी नही मानी जाती हैै। स्थाणु शब्द का अर्थ होता है शिव का निवास। इसी शहर को सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में राजधानी का गौरव मिला, जिसके साथ साथ इसका नाम बिगड़कर अपभ्रंश रूप में थानेसर हो गया।
स्थानेश्वर महादेव मन्दिर :
थानेसर, कुरुक्षेत्र जिला, हरियाणा वास्तु विवरण शैली हिन्दू मन्दिर स्थापत्यकला के बारे में बताएँगे।इस मन्दिर के निर्माता हैं पाँडव।
मन्दिर की छत गुम्बद के आकर की है एवँ छत के सामने की तरफ़ का भाग एक लम्बा अमला के आकर का है। मन्दिर के अन्दर छत पर आज भी प्राचीन कला कृतियाँ विद्यमान हैं। इस मन्दिर में भगवान शिवशँकर का शिवलिंग अति प्राचीन शिव लिंग है। यह मन्दिर दो भागों में विभाजित है। बाईं ओर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी का मन्दिर है और दाईं ओर भगवान शिवशँकर का मन्दिर है। इस मन्दिर में भगवान भैरवनाथ, शिवांश श्री हनुमान लला और श्री राम परिवार और माता दुर्गा जी की मूर्ति चिरकाल से प्राणप्रतिष्ठित स्थापित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पाँडवों और कौरवों के बीच महाभारत युद्ध आरम्भ होने से पूर्व पाँडवों और भगवान श्रीकृष्ण ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की तथा महाभारत के युद्ध का विजयश्री का आर्शीवाद प्राप्त किया था।
पर्व एवं उत्सव :
वैसे तो स्थानेश्वर मन्दिर में सभी त्यौहार मनाये जाते हैं किन्तु विशेषकर महाशिवरात्रि के त्यौहार पर विशेषतौर पर पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मन्दिर को फूलों एवँ दीप मालिकाओं से सजाया जाता है। मन्दिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के मन और मस्तिष्क को शाँति प्रदान करता है। यह मन्दिर थानेसर से तीन किलोमीटर दूर झांसा मार्ग पर स्थित है।
इतिहास के अनुसार यहाँ सिखों के नौवें गुरु श्री तेगबहुदुर जी भी के लिए आए थे। इस मन्दिर के समीप उनकी याद में गुरुद्वारा नौंवीं पातशाही भी बना हुआ है।
यहाँ नौंवीं पातशाही के पावन पवित्र गुरुद्वारे में असीम शाँति की अनुभूति होती है।
भगवान शिवशँकर भक्तों की प्रार्थना से बहुत जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं! इसी कारण उन्हें ‘आशुतोष’ भी कहा जाता है! वैसे तो धर्मग्रंथों में भोलेनाथ की कई स्तुतियां हैं, पर श्रीरामचरितमानस का ‘रुद्राष्टकम’ अपने-आप में बेजोड़ है! ‘रुद्राष्टकम’ केवल गाने के लिहाज़ से ही नहीं, बल्कि भाव के नज़रिए से भी एकदम मधुर है! यही वजह है शिव के आराधक इसे याद रखते हैं और पूजा के समय सस्वर पाठ करते हैं! ‘रुद्राष्टकम’ और इसका भावार्थ हिन्दी में दिया गया है!
शिवशँकर स्तुति “रुद्राष्टकम” हिन्दी अर्थ सहित :
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥
(हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशान दिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं! निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिव जी मैं आपको नमस्कार करता हूं!)
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥२॥
(निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं!)
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥३॥
(जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है!)
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥४॥
(जिनके कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं. सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं. सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं!)
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥५॥
(प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं!)
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥६॥
(कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए!)
न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥७॥
(जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है. अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए!)
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥८॥
(मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही. हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं. हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए. हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं!)
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥९॥
(जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शिवशम्भु उन पर विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं!)
अथ शिवस्तुति रुद्राष्टकम पठित्वा:
ॐ नमः शिवाय शिवजी सदा सहाय ज्ञानेश्वर बारम्बार प्रणाम करता है प्रभु स्वीकारिये।
।।ॐ राम शिव।।
पता :
स्थानेश्वर महादेव मन्दिर, थानेसर, कुरुक्षेत्र, हरियाणा।
हवाई मार्ग से कैसे पहुँचें :
इन्दिरगाँधी अंतरराष्ट्रिय हवाई अड्डा दिल्ली से स्थानेश्वर महादेव मन्दिर कुरुक्षेत्र, कैब द्वारा NH४४ से १७८.२ किलोमीटर की दूरी से ३ घण्टे ४८ मिन्टस में आसानी से पहुँच जाओगे मन्दिर!
लोहपथगामिनी मार्ग से कैसे पहुँचें :
कुरुक्षेत्र जँक्शन रेलवेस्टेशन तक रेल से पहुँचें, वहाँ से वाया झाँसा रोड़ से कैब या स्थानीय हरियाणा राज्य परिवहन की बस द्वारा से ३.८ किलोमीटर की यात्रा करके १२ मिन्ट्स में पहुँच सकते हो माँ मन्दिर।
सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें :
दिल्ली के ISBT से आप अपनी कार बाइक या बस से आते हैं तो होते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग NH ४४ द्वारा आप १६६.७ किलोमीटर की यात्रा करके ३ घण्टे २१ मिन्ट्स में पहुँच सकते हैं स्थानेश्वर महादेव मन्दिर।
स्थानेश्वर महादेव की जय हो। जयघोष हो।।