@ नई दिल्ली :
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना 2008 में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के अंतर्गत की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान आधारित मानक निर्धारित करना तथा लोगों के लिए सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उनके उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करना है।
खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम में घटिया खाद्य, गलत ब्रांड वाले खाद्य और असुरक्षित खाद्य पदार्थों के सम्बंध में दंडात्मक कार्रवाई के लिए विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं। एफएसएसएआई अपने क्षेत्रीय कार्यालयों और राज्य/संघ शासित प्रदेशों के माध्यम से दूध, दूध उत्पादों और शिशु आहार सहित खाद्य उत्पादों की नियमित निगरानी, निरीक्षण और रेंडम विधि से नमूने एकत्र करता है। ऐसे मामलों में जहां खाद्य नमूने सही नहीं पाए जाते हैं, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, नियमों और विनियमों के प्रावधानों के अनुसार दोषी खाद्य व्यवसाय संचालकों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाती है। इसके अलावा, दूरदराज के क्षेत्रों में भी बुनियादी परीक्षण सुविधाएं बढ़ाने के लिए, एफएसएसएआई ने फूड सेफ्टी ऑन व्हील्स (एफएसडब्ल्यू) नामक मोबाइल खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं की सुविधाएं प्रदान की हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 90 और 91 में तैयार करके मिलावटी या नकली सामान जैसे किसी भी उत्पाद को बेचने, भंडारण करने, वितरित करने या आयात करने के लिए दंड का प्रावधान है। इसमें उपभोक्ता को होने वाले नुकसान की सीमा के आधार पर कारावास या जुर्माना भी शामिल है।
पिछले दो वर्षों के दौरान उपभोक्ता आयोगों में खाद्य एवं पेय पदार्थ श्रेणी के अंतर्गत दर्ज उपभोक्ता शिकायतों का विवरण इस प्रकार है:
राज्य/संघ राज्य क्षेत्र का नाम | दर्ज शिकायतों की संख्या |
आंध्र प्रदेश | 17 |
असम | 3 |
बिहार | 16 |
चंडीगढ़ | 4 |
छत्तीसगढ | 10 |
दिल्ली | 28 |
गुजरात | 16 |
हरियाणा | 57 |
हिमाचल प्रदेश | 5 |
जम्मू और कश्मीर | 1 |
झारखंड | 2 |
कर्नाटक | 6 |
केरल | 51 |
मध्य प्रदेश | 8 |
महाराष्ट्र | 7 |
ओडिशा | 15 |
पुदुचेरी | 9 |
पंजाब | 12 |
राजस्थान | 88 |
तमिलनाडु | 30 |
तेलंगाना | 20 |
उत्तर प्रदेश | 112 |
उत्तराखंड | 4 |
पश्चिम बंगाल | 12 |
कुल | 533 |
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तत्वावधान में बनाए गए उपभोक्ता संरक्षण (उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) नियम, 2020 के अनुसार, उन मामलों में शिकायत दर्ज करने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होगा, जिनमें उपभोक्ता द्वारा वस्तुओं या सेवाओं के लिए 5,00,000/- रुपये तक का भुगतान किया है।
उपभोक्ता शिकायतों को ऑनलाइन दर्ज करने के लिए ई-दाखिल पोर्टल भी शुरू किया गया है। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय उपभोक्ता आयोगों में प्रत्यक्ष सुनवाई के अलावा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है।
इसके अलावा, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 38 (7) के अनुसार, प्रत्येक शिकायत का यथासंभव शीघ्रता से निपटारा किया जाएगा और जहां शिकायत में वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता नहीं है, वहां दूसरे पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर शिकायत का निपटारा करने का प्रयास किया जाएगा और यदि इसमें वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता है तो अवधि पांच महीने है।
उपभोक्ताओं को शीघ्र न्याय दिलाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में कहा गया है कि उपभोक्ता आयोगों द्वारा तब तक कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा जब तक पर्याप्त कारण न बताया जाए तथा स्थगन देने के कारणों को आयोग द्वारा लिखित रूप में दर्ज न कर दिया जाए।यह जानकारी केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री श्री बी.एल. वर्मा ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।