पर्यटन मंत्रालय का 20 से 22 दिसंबर, 2024 तक राखीगढ़ी महोत्सव का आयोजन हिसार हरियाणा में

@ नई दिल्ली :

पुरातत्व और संग्रहालय विभाग हरियाणा पर्यटन निगम के सहयोग से 20 से 22 दिसंबर, 2024 तक “राखीगढ़ी” महोत्सव “राखीगढ़ी” हिसार हरियाणा का आयोजन कर रहा है।

ये आयोजन “राखीगढ़ी” को पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा देने (20.12.2024 को जाना और 21.12.2024 को वापसी ) एक रात ठहरने के लिए पर्यटन हितधारकों, यूट्यूबर्स, प्रभावितों और पर्यटन मीडिया के लिए “राखीगढ़ी” जिला हिसार, हरियाणा का एफएएम दौरा आयोजित कर रहा है।

इस आयोजन का उद्देश्य हड़प्पा सभ्यता की समृद्ध विरासत को उजागर करना और “राखीगढ़ी” को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करना है भारत सरकार (उत्तरी क्षेत्र) ने एमओटी अनुमोदित टूर ऑपरेटरों, एमओटी अनुमोदित गाइडों, पर्यटन मीडिया, इन्फ्लुएंसर और यूट्यूबर्स को एफएएम टूर में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने का निर्णय लिया है।

 “राखीगढ़ी” हिसार हरियाणा के बारे में

“राखीगढ़ी” हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के शुष्क क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। “राखीगढ़ी” सिन्धु घाटी सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में धोलावीरा के बाद दूसरा विशालतम ऐतिहासिक नगर है। इसकी प्रमुख नदी घग्घर है ।”राखीगढ़ी” का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया।

“राखीगढ़ी” से प्राक्-हड़प्पा एवं परिपक्व हड़प्पा युग इन दोनों कालों के प्रमाण मिले हैं।यहाँ से मातृदेेवी अंकित एक लघु मुद्रा प्राप्त हुई । “राखीगढ़ी” से महत्त्वपूर्ण स्मारक एवं पुरावशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें दुर्ग-प्राचीर, अन्नागार, स्तम्भयुक्त वीथिका या मण्डप, जिसके पार्श्व में कोठरियाँ भी बनी हुई हैं, ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई अग्नि वेदिकाएँ आदि मुख्य हैं। 2014 में राखीगढी सबसे बडा स्थान घोषीत हुआ।

दुनिया के सबसे बड़े एवं पुराने सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों में एक “राखीगढ़ी” तेज आर्थिक विकास के उफान के कारण विलुप्ति के कगार पर पहुँच गया है। पुरातत्ववेत्ताओं ने हरियाणा स्थित “राखीगढ़ी” की खोज 1963 ई. में की थी। विश्व विरासत कोष की मई 2012 रिपोर्ट में ‘ख़तरे में एशिया के विरासत स्थल’ में 10 स्थानों को चिह्नित किया है।

रिपोर्ट में इन 10 स्थानों को ‘अपूरणीय क्षति एवं विनाश’ के केन्द्र करार दिया गया है। इनमें हरियाणा में स्थित “राखीगढ़ी” भी है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने “राखीगढ़ी” में खुदाई कर एक पुराने शहर का पता लगाया था और तकरीबन 5000 साल पुरानी कई वस्तुएँ बरामद की थीं। “राखीगढ़ी” में लोगों के आने जाने के लिए बने हुए मार्ग, जल निकासी की प्रणाली, बारिश का पानी एकत्र करने का विशाल स्थान, कांसा सहित कई धातुओं की वस्तुएँ मिली थीं।

हिसार हरियाणा के आस-पास स्थल,विरासत और संस्कृतियाँ

हिसार हरियाणा IVC युग का सबसे बड़ा शहर और क्षेत्रीय व्यापार केंद्र होने के नाते, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में गग्घर-हकरा नदी के किनारे कई स्थलों से घिरा हुआ है।

उनमें से महत्वपूर्ण हैं,

“राखीगढ़ी”

राखीगढ़ी“राखीगढ़ी” दो शब्दों का योग है, राखी एवं गढ़ी। राखी दृषदृवती का अन्य नाम है। अतः इस नदी के किनारे बसे हुए शहर के गढ़ को गढ़ी कहा गया। धौलावीरा, कच्छ, गुजरात के बाद “राखीगढ़ी” हड़प्पा सभ्यता के समय का एक विशाल स्थल है। यह दिल्ली के पश्चिम-उत्तर में 130 किलोमीटर की दूरी पर विलुप्त सरस्वती-दृषदृवती नदी के पास नारनौंद तहसील में स्थित है। कुल पांच विशाल थेह थे और हाल ही में हुई खुदाई के दौरान हड़प्पा सभ्यता के योजनाबद्ध तरीके से निर्मित नगर व्यवस्था, रिहायशी घर जिसमें कमरे, रसोई, स्नानघर, सड़कें, अनाज रखने के बर्तन, पानी निकासी की व्यवस्था, नगर की नाकाबंदी इत्यादि के अवशेष मिले हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “राखीगढ़ी” का पुरातात्विक महत्व देखते हुए इसे वल्र्ड हेरिटेज में शामिल कर लिया गया है।

अग्रोहा थेह

अग्रोहा थेह

हिसार से 23 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली-हिसार-फाजिल्का राजमार्ग-09 पर स्थित प्राचीन स्थल एवं विशाल थेह पर की गई खुदाई से प्राप्त पुरातात्विक महत्व के चिन्ह अग्रोहा के गौरवमयी इतिहास की गाथा की पुष्टि करते हैं। यह स्थल चैथी शताब्दी तक काफी फला-फूला। इस स्थान पर ईटों से निर्मित भवन के अवशेष कुषाण काल से गुप्तकाल के इतिहास की जानकारी देते हैं। थेह के ऊपर बुद्ध स्तूप परिसर की खोज एक बड़ी उपलब्धि है।

गुजरी महल

गुजरी महल

बस स्टैंड के पास बने ओ.पी. जिन्दल पार्क के सामने स्थित गुजरी महल जो बारादरी के नाम से भी जानी जाती है, का एक अपना रोचक इतिहास है। ऐसी किवंदती है कि गुजरी महल सुलतान फिरोजशाह तुगलक ने अपनी प्रेयसी गुजरी के रहने के लिए बनाया था, जो हिसार की रहने वाली थी। महल की बनावट से लगता है सुल्तान ने गुजरी के ऐशो-आराम का खास ख्याल रखा था। गुजरी महल की चैड़ी मोटी दीवार, संकरा रास्ता तुगलक भवन निर्माण शैली की विशेषता को दर्शाता है।

लाट की मस्जिद

लाट की मस्जिदलाट की मस्जिद किले की शान एवं ऐतिहासिक धरोहर है। किले के अंदर फिरोज़शाह ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे लाट की मस्जिद के नाम से जाना जाता है। यह तुगलक भवन निर्माण शैली का एक अद्भुत नमूना है। मस्जिद भवन के साथ एक ‘एल’ आकार का तालाब और लाट (स्तंभ) है जो अपने आप में अनूठा है। लाट वास्तम में अशोक की लाट बताई जाती है। इसकी वास्तुकला, संस्कृत के लेख, धरती में दबा लाट का भाग इस बात की पुष्टि करते हैं कि फिरोजशाह ने इसे कहीं से उखाड़ कर यहां स्थापित करवाया होगा।

प्राचीन गुम्बद

>प्राचीन गुम्बदराजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हिसार के प्रांगण एवं पंचायत भवन के पीछे स्थित चैदहवीं शताब्दी में निर्मित गुम्बद शेर बहलोल या दाना शेर के आध्यात्मिक गुरू प्राणपीर बादशाह का है। प्राणपीर बादशाह एक महान सूफी फकीर थे और आपने यह भविष्यवाणी की थी कि गयासुद्दीन तुगलक एक दिन दिल्ली का बादशाह बनेगा।

जहाज कोठी

जहाज कोठीआयरलैंट का निवासी जार्ज थामस, जिसने सिरसा से रोहतक तक के क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित किया, ने जहाज कोठी का निर्माण सन् 1796 में अपनी रिहायश के लिए करवाया था। राज्य सरकार द्वारा सुरक्षित घोषित यह स्मारक देखने में समुद्री जहाज की तरह प्रतीत होता है। प्रारम्भ में यह स्मारक जार्ज कोठी के नाम से जाना जाता था लेकिन समय गुजरने के साथ जार्ज कोठी को जहाज कोठी के नाम से जाना जाने लगा। अब इस ऐतिहासिक स्मारक में क्षेत्रीय पुरातात्विक संग्रहालय स्थापित है।

तुगलक काल का मकबरा

यह असंरक्षित मकबरा गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालय में स्थित बड़ा मंडल है जो गुम्बद से ढका है। इसका निर्माण इंटों द्वारा किया गया है। यह हिसार के अन्य मकबरों से भिन्न दिखता है।

इस इमारत के दक्षिण की तरफ दो शिलालेख हैं। ये ऐतिहासिक शिलालेख नक्शी लिपि में दीवारों में चिने गए पत्थरों पर अंकित हैं। शिलालेख में चार पंक्तियों में फारसी में लिखा गया है कि यह मकबरा तथा बाग 975/1567-8 में अबा याजत्रीद के आदेश पर बनाए गए थे।
दूसरा शिलालेख नस्खी लिपि में द़िक्षण प्रवेश की चैखट पर है। शिलालेख की सुंदर लिखावट नींव के पत्थरों की लिखावट से भिन्न है और तुगलक काल का प्रतीत होती है।

यह अंसरक्षित मकबरा गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालय में स्थित चार मकबरों के समूह में से एक है जो की महल के पूर्व में स्थित है। यह इमारत एक वर्गाकार मण्डल है। बाहरी तरफ से वर्गाकार यह इमारत एक भारी चबूतरे के मध्य में स्थित है। इमारत के दक्षिण में स्थित मकबरों में केवल एक प्रवेश स्थल है तथा दूसरी तरफ दीवारों में भीतरी तथा बाहरी तरफ आले हैं। मकबरे के बाहरी भाग के मध्य में स्थित आले का खाका तैयार किया गया है जिसमें एक दूसरा लंबा मेहराब है जिसके मध्य में इंटों द्वारा एक वर्गाकार आले का निर्माण किया गया है। मेहराब की हर तरफ के उत्तोलन को तीन पंजियों में बांटा गया है जो कि ऊपर की तरफ जाते-जाते लगातार छोटे होते जाते हैं। मकबरे का यह भाग सल्तनत काल के लिए असाधारण नहीं है परन्तु ऊपरी इमारत में ऊपरी पंजियों में टूटे हुए आले हैं। इस प्रकार की मेहराबें मुगल काल की प्रतीत होती हैं।

श्री दिगम्बर जैन मन्दिर

नागोरी गेट में स्थित इस प्रसिद्ध जैन मंदिर का निर्माण सन् 1820 में किया गया। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके निर्माण में किसी व्यक्ति विशेष के नाम का उल्लेख न करके पंचायत का नाम दिया गया है। जैन धर्म के लोगों की इस विशेष आस्था है जिस में अनेक जैन मूर्तियां संग्रहित हैं।

पृथ्वीराज चौहान का दुर्ग

>पृथ्वीराज चौहान का दुर्गइस विशाल दुर्ग का निर्माण दिल्ली के आखिरी हिन्दू शासक एवं पृथ्वीराज चौहान के चचेरे चाचा राय पीथोरा द्वारा करवाया गया। ऐसा कहा जाता है कि यह दुर्ग पृथ्वीराज चैहान को भेंट स्वरूप् मिला था, जिसे बाद में मोहम्मद गोरी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था। 1857 में ब्रिटिश सेना की यह छावनी और जेल थी। हिसार जिले में 1857 की जनक्रांति का बिगुल सर्वप्रथम 29 मई को हांसी में बजा था। सन् 1982 में इस किले से जैन तीर्थाकरों की 57 अष्ट धातुओं से बनी प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी।

बड़सी दरवाजा

बड़सी दरवाजायह दरवाजा हांसी का ही नहीं, बल्कि हरियाणा की शान है व राष्ट्रीय स्तर के समारकों में से एक है। दरवाजे के निर्माण में वास्तुकला के साथ ही सौंदर्य कला व तकनीक का बड़ी सूक्ष्मता से ध्यान रखा गया था। कलात्मक रूप देने के लिए इसके अग्र भाग पर दोनों ओर हिंदू स्थापत्य कला के प्रतीक पूर्ण विकसित कमल पुष्प, राजस्थानी मेहराब, सजावटी खिड़कियां व झरोखे भी बने हुए हैं। सम्राट पृथ्वी राज भट्ट द्वारा बनवाए जाने संबधी एक शिलालेख इसके अग्र भाग पर अंकित है। एक अन्य शिलालेख, जिसमें सुलतान अलाउद्दीन खिलजी को बड़सी दरवाजे का निर्माता कहा गया है। इसके अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1303 ई0 में इसका निर्माण करवाया था।

दरगाह चार कुतुब

दरगाह चार कुतुबहांसी शहर के पश्चिम की तरफ स्थित यह प्राचीन स्मारक चार कुतुब की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है। जमालुद्दीन हांसी (1187-1261) बुरहानुद्दीन (1261-1300) कुतुबउद्दीन मुनव्वर (1300-1303) और रूकनूद्दीन (1325-1397) अपने समय के महान सूफी संत थे और इन्हें कुतुब का दर्जा हासिल था। ऐसा कहा जाता है कि यह दरगाह उसी स्थान पर है जहां बाबा फरीद ध्यान और प्रार्थना किया करते थे। इस दरगाह के उतरी दिशा में एक गुबंद का निर्माण सुलतान फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था। मुगल बादशाह हुमांयू जब अपनी सल्तनत खो बैठा तो उसने दरगाह में आकर दुआ की थी।

इसे यह भी गौरव प्राप्त है कि यहां एक ही परिवार के लगातार चार सूफी संतों की मजार एक ही छत के नीचे है, इसलिए इसका नाम दरगाह चार कुतुब है। यह कहा जाता है कि यदि यहां पांच कुतुब बन जाते तो यह मक्का के स्तर का पवित्र स्थान बन जाता।

5 thoughts on “पर्यटन मंत्रालय का 20 से 22 दिसंबर, 2024 तक राखीगढ़ी महोत्सव का आयोजन हिसार हरियाणा में

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    much of my hours on the net, perusing rubbish, generally. This is a refreshing change from that experience.
    However, I feel that perusing other people’s helpful ideas is a particularly critical investiture of at minimum some of my weekly measure of amount of time in my schedule.
    It’s much like looking through the chaff to find the gold.
    Or simply, whatever analogy functions for you.
    Still, sitting in front of the desktop computer is probably as harmful
    to you as tobacco use and deep-fried potato chips.

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