योग का मार्ग है अध्यात्म, अहिंसा और शांति : श्रीराम माहेश्वरी की कलम से
मानव जीवन में योग का व्यापक महत्व है। योग का अर्थ है जुड़ना। स्वयं के संयम से आत्मा का परमात्मा से एकत्व स्थापित होना। हमारे तपस्वियों ने छह हजार साल पहले योग को जाना और मानव कल्याण के लिए उसे प्रकाशित किया। गुरुकुलों में योग की शिक्षा दी। शास्त्रों के अनुसार योग के आदिगुरु भगवान शिव को माना गया है। द्वापर युग में गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को योग का महत्व बताया, इसलिए कृष्ण को योगेश्वर कहा गया। महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र की रचना की, जिसे हम अष्टांग योग के नाम से जानते हैं।
योग के वैश्विक महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 11 दिसंबर 2014 को हर वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस मनाए जाने की घोषणा की। भारत की पहल पर ही संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से योग को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दी गई। यह समस्त भारतवासियों के लिए गर्व का विषय है। इसके बाद समूचे विश्व में योग का प्रचार प्रसार हुआ। विश्व के अनेक देशों को योग अपनाने से स्वास्थ्य लाभ होने लगा और उन्होंने इसकी प्रासंगिकता को स्वीकार किया। विश्व स्तर पर आज युद्ध का वातावरण बन रहा है। विकसित देशों के बीच महाशक्ति बनने की होड़ चल रही है। नए गुट और संगठन बन रहे हैं। हथियारों का अंधाधुंध निर्माण और निर्यात हो रहा है। इसका कारण है- भय और अशांति। विकसित देशों की विस्तारवादी नीति और बढ़ती महत्वाकांक्षा। इस परिस्थिति में योग की महत्ता स्वमेव बढ़ जाती है, इसलिए कि योग का मार्ग है- अहिंसा और शांति। आज दुनिया को शांति, सुरक्षा, निर्भयता और अहिंसा पथ की आवश्यकता है। इसका समाधान योग में निहित है।
महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंग बताए हैं। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यम पांच तरह के हैं- ब्रम्हचर्य, सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह। नियम पांच हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान। वास्तव में योग वैदिक दर्शन के अंतर्गत एक प्राचीन विधा है। भारतीय दर्शन के 6 भाग हैं। न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा तथा वेदांत। इसमें योग का विशेष महत्व है। योग का अभ्यास एक तरह से शुचिता का व्रत है।
यह सत्य है कि यम और नियम का पालन करने वाला मनुष्य संस्कारवान और अनुशासित रहता है। लोक कल्याण उसका ध्येय रहता है। ऐसे व्यक्ति ही स्वस्थ और सुसंस्कृत समाज की रचना करते हैं। वे समाज का मार्गदर्शन करते हैं। योग के द्वारा हम अपने चित्त की वृत्तियों का निरोध करते हैं। बाहरी विषयों से अपने मन को हटाकर उसे अंतर्मुखी करते हैं। बाहरी विषयों से मुक्त होने के बाद ही हमें ब्रह्मनाद सुनाई देता है। इससे हमारा आध्यात्मिक विकास होता है। यह अवस्था स्वयं जाग जाने जैसी होती है। ध्यान और योग की इस सफलता को जब प्रशिक्षक या साधक दूसरों में बांटता है, तो वह समाज को जागृत करता है। इस तरह समाज सुसंस्कृत बनकर सत्य की ओर अग्रसर होता है।
योग का अभ्यास शुरू करने से पहले हमें यह जान लेना आवश्यक है कि हमें योग क्यों करना चाहिए। योग का संबंध मात्र व्यायाम तक सीमित नहीं है। योग से आचरण और व्यवहार में परिवर्तन आता है। यह जीवन को सुखमय और आनंदमय बनाता है। योग के लिए हमें आसन में बैठना होता है। आसन का अर्थ है सीधे बैठकर मन को शांत और स्थिर करना। बैठने की ऐसी मुद्रा जो व्यक्ति को सुख प्रदान करती हो, उस आसन को अपनाना चाहिए। कुछ लोग शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग करते हैं। उनके लिए आसन हैं- शीर्षासन, सर्वांगासन, हल्लासन, भुजंगासन और सुप्त वज्रासन। कुछ साधक मानसिक शांति के लिए योग करना चाहते हैं। उनके लिए मकरासन और सवासन उपयुक्त हैं। जिनमें ध्यान की रूचि है, उनके लिए आसन है- सिद्धासन स्वस्तिकासन, समासन और पद्मासन।
योग कब और कैसे करना चाहिए, यह जानना आवश्यक है। सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद योग करना चाहिए। योग खाली पेट करना चाहिए। गुरु के मार्गदर्शन में शुरुआत हल्के आसन से करें । कपड़े ढीले पहने। स्थान या कमरा हवादार और शांत हो। शोर वाले स्थान में योग करने से समुचित लाभ नहीं मिलेगा। साधक जब योग के नियमों का पालन करता है, तो उसका अंतःकरण शुद्ध होता है। उसके अवगुण दूर होते हैं। हृदय में सद्गुणों का प्रवेश होता है। पवित्रता और दिव्यता की अनुभूति होती है। सुंदरता बढ़ती है। वह तनावमुक्त होकर प्रसन्नता का अनुभव करता है। योग सम्बन्धी ग्रंथ किसी धर्म विशेष से संबंधित नहीं है। इसे अपनाकर सभी वर्ग के लोग लाभान्वित हो सकते हैं।
योग से व्यक्ति और समाज सुखी बनता है। इसलिए कि इसमें लोक कल्याण की भावना निहित है। यह अच्छी बात है कि वैश्विक स्तर पर योग का प्रचार होने से भारतीय संस्कृति के प्रति दुनिया का नजरिया बदला है। भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। योग हमें सत्य, अहिंसा और शांति की ओर अग्रसर करता है, इसलिए इसे अपनाकर हम विश्व की अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
(लेखक “मानव जीवन और ध्यान” पुस्तक के लेखक हैं )।
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