आर्ट ऑफ लिविंग ने मधुमक्खी-पालन में प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया

@ बेंगलुरु कर्नाटक

मधुमक्खियाँ कुदरत की  नन्ही  सुपरहीरो हैं, जो पौधों में आवश्‍यक परागण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण खेती के लिए ज़रूरी हैं। अनेक पौधों के उगने में मधुमक्खियों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, आर्ट ऑफ लिविंग ने विश्व विख्यात मानवतावादी एवं आध्यात्मिक नेता गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर के मार्गदर्शन में, एक व्यापक मधुमक्खी-पालन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है।

Sustaining Life: The Art of Living's Beekeeping Initiative

इस प्रशिक्षण में भाग लेने वालों को फसल परागण को अनुकूल बनाने के लिए मधुमक्खी के जीवन चक्र, छत्ते की सक्रियता, शहद प्रोसेसिंग और मधुमक्खियों के आवास प्रबंधन के बारे में जानकारी मिलती है।

मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट 

दो मुख्य कारणों से मधुमक्खियों की संख्या में भारी गिरावट आ रही है: रासायनिक खेती और शहरी फैलाव। खेती में उपयोग होने वाले हानिकारक कीटनाशक मधुमक्खियों को तुरंत मार सकते हैं, जबकि शहरीकरण देशी पेड़ों को नष्ट करके समस्या को और बढ़ा देता है, जिससे मधुमक्खियों की आबादी और भी कम हो जाती है।

मधुमक्खियों की सुरक्षा से खेती की पैदावार बढ़ाने, पर्यावरण तंत्र सेहतमंद बनाए रखने और कई प्रकार के पेड़-पौधों की रक्षा करने में मदद मिलती है

जैसे-जैसे मधुमक्खियां पराग की तलाश में एक फूल से दूसरे फूल पर जाती हैं, वे अपने पैरों पर पराग इकट्ठा करती हैं, इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं और पौधे उगने को बढ़ावा देती हैं। एक मधुमक्खी मौसम के आधार पर रोज़ 3,000 फूलों तक जा सकती है, जिससे वे चमत्कारी ढंग से कुशल परागणकर्ता बन जाती हैं।

मधुमक्खियां दुनिया की लगभग एक तिहाई फसलों का परागण करती हैं, जिनमें फल, सब्जियां और मेवे शामिल हैं। आमतौर पर खाई जाने वाली 100 में से 95 सब्जियां मधुमक्खी परागण पर निर्भर रहती हैं। अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार, 3,52,800 पहचानी गई पौधों की प्रजातियों में से 3,06,000 को मुख्य रूप से मधुमक्खियों द्वारा परागण की ज़रूरत होती है। उनकी कड़ी मेहनत के बिना, हमारी कई पसंदीदा खाने की चीजें जैसे सेब, बादाम, टमाटर, कद्दू की आपूर्ति कम हो जातीं।

इन छोटे से प्राणियों की सुरक्षा और पालन-पोषण हमारे अस्तित्व और भलाई के लिए ज़रूरी है, जैसा कि अल्बर्ट आइंस्टीन की प्रसिद्ध टिप्पणी में कहा गया है, “अगर हमारी धरती से मधुमक्खियां गायब हो जाएं, तो मनुष्य के पास बस चार वर्षों का जीवन ही बचेगा।”

आर्ट ऑफ लिविंग का मधुमक्खी-पालन में प्रशिक्षण का महत्व

आर्ट ऑफ लिविंग की यह पहल कई जगहों में फैली हुई है, जिसमें कर्नाटक, पुणे और अन्य स्थानों में बुनियादी स्तर के कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं, जो पूरी लगन से मधुमक्खी पालन का ज्ञान और अभ्यास बढ़ाने में लगे हुए हैं।

किसानों को मधुमक्खी कालोनियों का पालन करके अपनी आय बढ़ाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। उदाहरण के लिए, मधुमक्खी के दो छत्ते से एक किसान हर वर्ष 8 से 10 किलो शुद्ध शहद का उत्पादन कर सकता है, जो किसी भी प्रकार की मिलावट से मुक्त होगा, जिसे अधिमूल्य कीमत पर बेचा जा सकता है। इससे हर वर्ष 10,000 रुपये कमाए जा सकते हैं।

प्रत्येक वर्ष में एक बार, सितंबर और फरवरी के बीच, झुंड को रोकने के लिए कॉलोनियों को अलग-थलग किया जाता है, जहां अतिरिक्त मधुमक्खियां एक नई रानी के साथ एक नई कॉलोनी बनाने के लिए निकल जाती हैं। समय के साथ अलग-थलग करने के ज़रिए अपने छत्ते को गुणा करके, इस प्रकार एक कॉलोनी दो कॉलोनियों में बदल जाती है, और कॉलोनियां बढ़ती जाती हैं  जिन्हे किसान बेचकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं और हर कॉलोनी की कीमत 4500 रुपये है। इससे हर वर्ष 18,000 से 20,000 रुपये की कुल आमदनी होती है, जहां दूसरे कारोबार के मुकाबले शुरू में ही कम से कम निवेश की ज़रूरत होती है।

इसके अलावा, किसान पराग, प्रोपोलिस, मोम और यहां तक कि अतिरिक्त मधुमक्खी कालोनियों को बेचकर भी कमा सकते हैं, जिससे उनकी आमदनी दुगुनी हो सकती है।

पड़ोसी किसानों को शिक्षित करना बहुत ज़रूरी है

क्योंकि मधुमक्खियां आज़ाद घूमती रहती हैं, इसलिए वे पड़ोसी खेतों में जा सकती हैं जहां रासायनिक कीटनाशक उपयोग होने के कारण उन्हें नुकसान पहुंच सकता है या वे मर सकती हैं। इसलिए, यह ज़रूरी है कि आसपास के खेतों में मधुमक्खियों की सुरक्षा और परागण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को बनाए रखने के लिए खेती के कुदरती तरीके अपनाए जाएं। खेती के कुदरती तरीकों में पड़ोसी किसानों को शिक्षित करके, आर्ट ऑफ लिविंग मधुमक्खियों के लिए सुरक्षित आवास बनाता है और उनकी हमेशा मौजूदगी बनाए रखना तय करता है।

हमारी खेती की ज़मीनें और जंगल अपनी पैदावार के लिए मधुमक्खियों और दूसरे परागणकों पर बहुत  निर्भर हैं। मधुमक्खी-पालन किसानों के लिए कम निवेश वाला अवसर है, जो दूसरे किसी कारोबार के मुकाबले आमदनी का एक स्थायी ज़रिया बनता है। आर्ट ऑफ लिविंग कुदरती खेती के साथ-साथ मधुमक्खी-पालन को भी बढ़ावा देता है। इससे न केवल उनकी आमदनी और फसल की पैदावार बढ़ती है, बल्कि अलग-अलग पेड़-पौधों की रक्षा करने में भी ज़रूरी मदद मिलती है।

आर्ट ऑफ लिविंग सोशल प्रोजेक्ट्स के बारे में 

आर्ट ऑफ लिविंग एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है जो शांति, कल्याण और मानवीय सहायता के लिए समर्पित है; इसकी स्थापना प्रसिद्ध मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर द्वारा की गई थी। समग्र विकास के लिए प्रतिबद्ध, आर्ट ऑफ लिविंग विभिन्न पहलों को अपना सहयोग प्रदान करता है, जिनमें जल संरक्षण, स्थायी कृषि, वनरोपण, निःशुल्क शिक्षा, कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण, एकीकृत ग्राम विकास, नवीकरणीय ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन आदि शामिल हैं। इन बहुमुखी प्रयासों के माध्यम से, आर्ट ऑफ लिविंग सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से सकारात्मक प्रभाव पैदा करने का प्रयास करता है, जिससे सभी के लिए एक अधिक स्थायी और सामंजस्यपूर्ण भविष्य का निर्माण हो सके।

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