@ कमल उनियाल उत्तराखंड
हमारे पूर्वजो ने गाय को केवल धर्म के आधार पर ही महत्व नहीं दिया अपितु ये पशु कृषि प्रधान, स्वरोजगार के क्षेत्र मे रीढ़ की तरह थी। जब से मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए गाय की उपेक्षा करनी शुरु कर दी तब से हम छोटी, छोटी चीजों के लिए मोहताज हो गये।
गाय हमारी माता जो हमारे घरो की शान होती थी आज वह सडको पर दर दर भटक रही हैं। पर कुछ पशु प्रेमी आज भी गो सेवा को अपना लक्ष्य बनाकर पूरा जीवन असहाय, बेसहारा, घायल पशुओं की देखभाल में अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं।
ऐसी ही वास्तविक रुप से गो सेवा को समर्पित है आकृति गो सेवा आश्रम की संस्थापिका कोटद्वार पौड़ी गढवाल की सुषमा जखमोला जो कि एक प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार से है। उनके बच्चे विदेश में नौकरी करते हैं और उन्होने खुद सरकारी नौकरी छोडकर बेजुबान पशुओं की सेवा में खुद को समर्पित कर दिया।
कोटद्वार के मोटाढाक स्थित आकृति गो सेवा आश्रम की स्थापना उन्होने करीब पन्द्रह साल पहले की थी। आज इस गो सदन में 250 से उपर पशु है। तीन बीघा जमीन में फैला यह गो सदन निराश्रित पशुओं गाय बछड़े, बीमार कुत्तो के लिए आसारा बन चुका है। इस गोसदन में बीमार चोटग्रस्त, घायल पशुओ का इलाज किया जाता है। ममतामयी सुषमा जखमोला जब गाय बछड़े को उनके नाम से पुकारती है तो ये बेजुबान पशु उन्के पास स्नेह से राँभते हुए आते हैं मानव और पशु प्रेम का इस निश्छल प्रेम देखकर मन भाव विभोर हो जाता है।
सडको पर घायल पशुओं का रेस्कूय किया जाता है गौशाला में सुषमा जखमोला उनका उपचार किया जाता है जैसे बच्चे के बीमार होने पर माँ बच्चे की सेवा में लीन हो जाती हैं। उनको गोवंश की सेवा के लिए तीलू रोतेली पुरस्कार से भी नवाजा गया है। बूँखाल मेले में पशुबली रोकने में उन्होने अग्रणी योगदान दिया इसलिए उन्हें अनेक बार राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया साथ में वे पशुओ के संरक्षण के लिए जनजागरूता अभियान भी चलाती है।
गायो के प्रति अपना जीवन समर्पित करने वाली सुषमा ने बताया कि इनकी सेवा के लिए उनके बच्चे अपनी कमाई के दस प्रतिशत धन दान देते हैं ताकि इस गोवंश के संरक्षण में कमी न आये। साथ में उन्होने दुख प्रकट किया कि कुछ लोग सिर्फ़ प्रवचनो में गाय की महिमा सुनाते है और गोवंश के नाम पर पैसा वसूलते है जबकि धरातल में कुछ नहीं करते है। इस गोसदन में पाँच लोगों को वेतन पर गोसेवा के लिए रखे हुये है बहुत कम देखने में मिलता हैं कि हमारे समाज में सुषमा जखमोला जैसी विभूति भी है जो आर्थिक रुप से संपन्न के बाद भी गोसेवा के प्रति निछावर हैं जो कि एक बहुत बडी मिसाल हैं।