@ भोपाल मध्यप्रदेश
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि गुरुकुल परंपरा हमारे देश की शिक्षा का आधार रही है। शिक्षक हमेशा पूज्य थे और पूज्य रहेंगे। भारत विश्व गुरु के रूप में उस शिक्षक परंपरा को स्थापित करना चाहता है, जो गुरुकुल परंपरा चाणक्य से चंद्रगुप्त तक और चंद्रगुप्त से विक्रमादित्य तक हर जगह, हर समय, हर काल में कायम रही है।
मुख्यमंत्री रविवार को रवीन्द्र भवन सभागार में शिक्षा भूषण अखिल भारतीय शिक्षक सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह का आयोजन मध्यप्रदेश शिक्षक संघ द्वारा किया गया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव द्वारा सरस्वती वंदना के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सुरेश सोनी, स्कूल शिक्षा एवं परिवहन मंत्री राव उदय प्रताप सिंह,राज्यसभा सदस्य स्वामी उमेश नाथ महाराज कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित थे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने शिक्षा भूषण अखिल भारतीय शिक्षक सम्मान -2024 से डॉ. रामचंद्रन आर., प्रोफेसर के.के. अग्रवाल और प्रोफेसर कुसुमलता केडिया को सम्मानित किया।
अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सुरेश सोनी ने कहा कि वास्तव में विकास तभी हो सकता जब हमारे आसपास के परिवेश और जीवन मूल्यों का विकास हो। उन्होंने 1928 में गुजरात विद्यापीठ में दिए गए काका कालेलकर के संबोधन को उद्घृत करते हुए कहा कि शिक्षा ने अपने स्वरूप की व्याख्या करते हुए कहा कि शिक्षा न तो सत्ता की दासी है और न ही कानून की किन्करी है, न ही यह विज्ञान की सखी है औप न ही कला की प्रतिहारी यह अर्थशास्त्र की बांदी, शिक्षा तो धर्म का पुनर्रागमन है, यह मानव के हृदय, मन और इन्द्रियों की स्वामिनी है। मानव शास्त्र और समाज शास्त्र, इनके दो चरण हैं, तर्क और निरीक्षण शिक्षा की दो आँखें हैं, विज्ञान मस्तिष्क, इतिहास कान और धर्म शिक्षा के हृदय है। सोनी ने बताया कि काका कालेलकर ने अपने संबोधन में कहा था कि उत्साह और उद्यम शिक्षा के फेफड़े हैं। शिक्षा ऐसी जगत जननी जगदम्बा है, जिसका उपासक कभी किसी का मोहताज नहीं होगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
सोनी ने कहा कि मूल्य परक शिक्षा-भारत केंद्रित शिक्षा, शिक्षकों के सामाजिक सम्मान और संस्कारों पर जोर देने वाली शिक्षा के लिए सामूहिक रूप से विचार करते हुए काका कालेलकर द्वारा दिए गए चिंतन के अनुरूप देश में शिक्षा का वातावरण बनाने के लिए प्रयास करने होंगे। इसी से 2047 तक विश्व के रंग मंच पर भारत, प्रमुख नेतृत्व कर्ता के रूप में स्थापित होगा। कार्यक्रम में पुरुस्कृत डॉ. रामचंद्रन आर., प्रोफेसर के.के. अग्रवाल और प्रोफेसर कुसुमलता केडिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए।