@ नई दिल्ली
दवा वितरण की विकसित की गई एक अनूठी विधि अस्थमा, सिस्टिक फाइब्रोसिस, या पुरानी फेफड़ों की बीमारी, मानव इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस, कैंसर से पीड़ित रोगियों या लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाओं का उपयोग करने वाले रोगियों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है।
दवाओं को नियंत्रित और प्रभावी ढंग से जारी करने के लिए नैनोकण आशाजनक पाए गए हैं। पॉलीमेरिक नैनोकणों का उपयोग दवा वितरण का सबसे अच्छा तरीका है। वर्तमान में प्रयोग की जाने वाली एज़ोल दवाएं कवकीय झिल्ली पर हमला करती हैं और उसे निष्क्रिय कर देती हैं। हालांकि, मौजूदा एंटीफंगल दवाओं के प्रति प्रतिरोध चिंता का विषय है इसलिए दवा वितरण के बेहतर तरीके अपनाए जाने की जरूरत है, ताकि संक्रमण के उपचार के लिए दवाएं प्रभावी हो सकें।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, अगरकर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने निक्कोमाइसिन पॉलिमरिक नैनोकणों को विकसित करने के लिए बैक्टीरियल स्ट्रेप्टोमाइसेस एसपीपी द्वारा उत्पादित चिटिन सिंथेसिस फंजिसाइड का उपयोग किया है। चिटिन कवक (फंगल) कोशिका भित्ति का मुख्य घटक है जो मानव शरीर में नहीं पाए जाते है।
नैनोकण से युक्त दवा एस्परगिलस एसपीपी के विकास को बाधित करती पाई गई हैं और एस्परगिलस फ्लेवस और एस्परगिलस फ्यूमिगेटस कवक के कारण पैदा होने वाले एस्परगिलोसिस नामक फंगल संक्रमण के विरूद्ध भी प्रभावी हैं। विकसित नैनोफॉर्म्यूलेशन साइटोटोक्सिक और हेमोलिटिक प्रभावों से मुक्त पाया गया। एआरआई टीम फुफ्फुसीय एस्परगिलोसिस के खिलाफ इनहेलेशन नैनोफॉर्म्यूलेशन के विकास में इस विधि के अनुप्रयोग के बारे में आशान्वित है।
वैज्ञानिक डॉ. वंदना घोरमडे और पीएचडी छात्र कमल मयाट्टू के नेतृत्व में किया गया शोध ज़िट्सक्रिफ्ट फर नेचरफोर्सचुंग सी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। टीम को भविष्य में ऐसे एंटीफंगल नैनो फॉर्मूलेशन के दायरे को और विस्तारित करने और व्यावसायीकरण के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी की संभावना की उम्मीद है।