गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 48-52 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 48-52 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

प्रकरण-48

तथागत ने कोशल नरेश प्रसेनजित के राज्य में रहने वाले खूँखार डाकू अंगुलीमाल को पाप कर्मों से रोका, अंगुलीमाल तथागत का शिष्य बन गया

गार्ग्य-मैत्रायणी पुत्र अंगुलिमाल कोशल नरेश प्रसेनजित के राज्य में रहता था। वह अत्यंत खूँखार डाकू था। लोगों को लूटना-मारना उसका काम था। वह जिस आदमी को मारता उसकी एक अंगुली काटकर अपनी माला में पिरों लेता था। इसी कारणा उसका नाम अंगुलीमाल पड़ा। जब तथागत ने उसके बारे में सुना तो वे उसकी और चल पड़े। लोगो के मना करने पर भी वे चलते रहे। अंगुलीमाल उसे देखकर वध की इच्छा से उनके पीछे भागा किन्तु पकड़ न पाया। वह आश्चर्य में पड़ गया ।तब उसने ललकार कर कहा‘‘रूक जाओ’’ तथागत ने कहा-‘‘मैं तो रुका हूँ, अब तुम भी अपने पाप कर्मों से रूको। अंगुलीमाल उनका शिष्य बन गया।

जब प्रसेनजित तथागत से मिलने गए तो अंगुलीमाल को परिव्राजक के रूप में देखकर आश्चर्य चकित रह गए। अंगुलीमाल जब भिक्षाटन के लिए निकला तो लोगों ने उस पर डंडे, ढेले और पत्थरों से वार किए फिर भी वह शांत रहा।

प्रकरण-49

तथागत का प्रभाव बढ़ने पर अन्य सम्प्रदायों के साधुओं ने उन्हें बदनाम करने की नाकाम योजना बनाई

तथागत का प्रभाव बढ़ने के कारण अन्य सम्प्रदायों के साधुओं का प्रभाव, मान-सम्मान घट गया था। अतः ईर्ष्यावस उन्होंने एक सुन्दरी के माध्यम से उन्हें बदनाम करने की योजना बनाई। सुन्दरी यही प्रचारित करती कि वह रातभर तथागत के पास रहती है। एक दिन तैर्थिकों ने सुन्दरी की हत्या करवा कर जेतवन के पास कूडे़ के ढेर पर फिकवा दिया।

तैर्थिकों ने ही सरकारी कर्मचारियों को सूचित भी कर दिया कि तथागत के शिष्यों ने सुन्दरी की हत्या कर दी, किन्तु दुर्भाग्यवष हत्यारें कार्षावणो का बँटवारा करते हुए एक शराब घर में लड़ पडे़ और पकड़े गए। उन्होंने तैर्थिकों द्वारा हत्या करवाने की बात भी बता दी। अतः रहा-सहा अन्य सम्प्रदायों के साधुओं का प्रभाव भी जाता रहा।

प्रकरण-50

तथागत के पधारते ही अनावृष्टि के कारण, अकाल पड़े वैशाली में जोरदार वर्षा हुई,अन्तिम दिनों में तथागत कुशीनारा पहुँच, हिरण्यवती नदी किनारे दो शाल वृक्षों के बीच विश्राम किया

तथागत ने अपने अन्तिम दिनों में राजगृह से अम्बलट्ठिका, नालन्दा, पाटलीग्राम (पाटलीपुत्र), कोटि ग्राम, नादिका तथा वैशाली की यात्रा की। वैशाली में उस समय अनावृष्टि के कारण अकाल पड़ा था। बडे़ वाद विवाद के पश्चात लोगों ने तथागत को आमंत्रित करने का निर्णय लिया। तथागत के पधारते ही जोर की वर्षा हुई और अकाल समाप्त हो गया। लोग इससे बहुत प्रभावित हुए और तथागत के अनुयायी बन गए। वहाँ से चलते समय तथागत ने आनन्द से कहा-‘‘आनन्द! यह अंतिम यात्रा है वैशाली की’’।

वैशाली से तथागत भण्डग्राम, हट्ठीनग़र, भोग नगर तथा भोग नगर से पावा पहुँचे।पावा में चुन्द का आमंत्रण स्वीकार कर उसके घर, सूकर मछव का भोजन किया। चुन्द को धर्मोेपदेश देकर चल पड़े। किन्तु उस भोजन से रक्तस्त्राव होने लगा। कुछ स्वस्थ होने पर वे कुशीनारा पहुँचे। वहाँ हिरण्यवती नदी किनारे दो शाल वृक्षों के बीच विश्राम किया।

प्रकरण-51

तथागत ने बौद्ध धर्म में उत्तराधिकारी नियुक्त करने का विरोध कर, संघ के सारे निर्णय,संघ के ही हाथ में दे दी 

आनन्द, तथागत की सेवा में लगा था। उसे पिछली घटनाएँ याद आने लगी। उसे याद आया कि एकबार चुन्द ने आनन्द को सूचित किया था कि पावा में (महावीर स्वामी) निगण्ठनाथ पुत्र के देहान्त के पश्चात निर्ग्रन्थ लोगों में बड़ा विवाद हुआ। क्योंकि उनका कोई शास्ता नहीं था। अतः इस बात को देखते हुए भगवान को चाहिए कि वे अपने पश्चात किसी को उत्तराधिकारी नियुक्त कर दे।किन्तु तथागत ने कहा था कि संघ के सारे निर्णय किसी एक के हाथ में नहीं वरन् संघ के ही हाथ में होने चाहिए। संघ एकमत होकर जो निर्णय लें। उसी का पालन करना चाहिए। अतः उत्तराधिकारी का प्रश्न ही नहीं उठता।

आनन्द का ध्यान सुभद्र परिव्राजक की आहट से टूटा। सुभद्र भगवान से मिलना चाहता था। आनन्द ने उनके अस्वस्थता के कारण मना किया, किन्तु तथागत के बुलाए जाने पर मिलने की अनुमति दे दी। सुभद्र ने पूछा-‘‘सत्य का ज्ञान किसे है’’? तथागत ने कहा-‘‘जहाँ अष्टांगिक मार्ग है’’। सुभद्र ने दीक्षा लेनी चाही। तथागत ने आनन्द को दीक्षा देने के लिए कहा।

प्रकरण-52

रात्रि के तीसरे पहर तथागत का परिनिर्वाण हो गया, आनन्द शोक विह्वल हो उठा, कई शिष्य दुःखाभिभूत होकर जमीन पर गिर पडे़

तथागत ने आनन्द से कहा कि धर्म विनय ही तुम्हारा गुरू है। छोटे-बड़े का भेदभाव न रखा जाय। मेरे पश्चात किसी के मन में शंका न रह जाय। अतः बुद्ध, धर्म अथवा संघ के बारे में जो भी शंका हो उसे अभी पूछ ले। किन्तु किसी ने कुछ नहीं पूछा। तथागत ने फिर कहा कि सभी संस्कार अनित्य है। अप्रभाद पूर्वक कार्य में लगे रहो।

बन्द तथा आनन्द उनकी सेवा में थे। तथागत ने आनन्द से कहा कि रात्रि के तीसरे पहर तथागत का निर्वाण हो जायेगा। आनन्द ने प्राणियों के कल्याणार्थ उनके दीर्घजीवी होने की प्रार्थना की किन्तु तथागत ने कहा-‘‘अब रहने दो आनन्द’’। आनन्द दुःख के कारण वहाँ से हट गया, किन्तु तथागत के बुलाने पर पुनः पास आकर बैठ गया। तथागत ने उसे रोने से मना करते हुए समझाया। साथ ही चुन्द को दोष न देने की बात भी कही। उन्होंने अपने परिनिर्वाण की सूचना मल्लों को देने के लिए भी कहा। रात्रि के तीसरे पहर तथागत का परिनिर्वाण हो गया। आनन्द शोक विह्वल हो उठा। कई दुःखाभिभूत होकर जमीन पर गिर पडे़।

————-समाप्त————-

एक पल एक दिन को बदल देता है जैसे कोरोना ने हमारे देश को बदल दिया

दुख से छुटकारा पाया जा सकता है – भगवान बुद्ध

सत्येन्द्र कुमार पाण्डेय / पटना (बिहार)

गौतम बुद्ध ने सारनाथ में दिए अपने पहले उपदेश में भी दुख के बारे में बात की है। बुद्ध ने कहा है दुख के बारे में अच्छे से जान लेने के बाद ही सुख मिलता है। उन्होंने बताया कि हर इंसान कभी न कभी दुखी होता ही है। हर इंसान को ये जान लेना चाहिए कि दुख का कारण क्या है?क्यों दुख आता है ?

हर तरह के दुख से छुटकारा पाया जा सकता है। पाँच उपदेश वे दिशानिर्देश हैं ।जो बौद्ध नैतिकता की नींव बनाते हैं। उपदेश हैं: हत्या न करना, चोरी न करना, यौन संबंध का दुरुपयोग न करना, मिथ्या भाषण न करना और मादक पदार्थों का सेवन न करना।मनुष्य को कभी भी क्रोध की सजा नहीं मिलती, बल्कि क्रोध से सजा मिलती है। हजारों लड़ाइयों के बाद भी मनुष्य तब तक नहीं जीत सकता, जब तक वह अपने ऊपर विजय प्राप्त नहीं कर लेता है।

मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से ज्यादा अपनी यात्रा पर ध्यान देना चाहिए ।जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो। फिर जीत हमेशा तुम्हारी होगी, इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता। किसी भी हालात में तीन चीजें कभी भी छुपी नहीं रह सकती, वो है- सूर्य, चन्द्रमा और सत्य। बौद्ध धम्म में तथागत गौतम बुद्ध ने ईश्वर को एक कोरी कल्पना कहा है। धम्म में कोई कल्पना को बिना जांचे पहचाने ईश्वर है इस बात को स्वीकारा नहीं जा सकता। बुद्ध एक उच्च कक्षा की मानसिक अवस्था है और उसे प्राप्त कर लेता है वह बुद्ध कहलाता है। गौतम बुद्ध खुद कहते थे की मैं कोई ईश्वर नहीं हूं।

राजगीर में भगवान बुद्ध से जुड़ा “विश्व शांति स्तूप” सदैव चर्चे में रहा है

रामचन्द्र पाण्डेय/राजगीर (नालन्दा ) बिहार

भगवान बुद्ध ने चमत्कारिक ज्ञान से स्पष्ट किया,जिसमें वर्णित है कि लोगों का दुख एवं कष्ट किस प्रकार दूर किया जाय । किस प्रकार लोगों को सही मार्ग बताया जाए । मानव व प्राणी ईश्वर का ही एक रूप है । बौद्ध धर्म के विचार है। आज विश्व में 6 से अधिक देशों (गणतंत्र राज्य भी) में बौद्ध धम्म बहुसंख्यक या प्रमुख धम्म के रूप में हैं। विश्व में लाओस, कम्बोडिया, भूटान, थाईलैण्ड, म्यानमार और श्रीलंका ये छह देश “अधिकृत” ‘बौद्ध देश’ है, क्योंकि इन देशों के संविधानों में बौद्ध धम्म को ‘राजधर्म’ या ‘राष्ट्रधर्म’ का दर्जा प्राप्त है।

भगवान बुद्ध जन्म शक वंश के सिद्धार्थ गौतम के रूप में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म चमत्कारी था, उनका बचपन असामयिक था और उनका पालन-पोषण राजसी ढंग से हुआ। उन्होंने शादी की और उनका एक बेटा राहुल था। उनका सामना एक बूढ़े आदमी, एक बीमार आदमी, एक लाश और एक धार्मिक तपस्वी से हुआ । ये सभी उनके विचारों को बदला।

राजगीर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है भगवान बुद्ध से जुड़ा “विश्व शांति स्तूप” सदैव चर्चे में रहा है। यह स्तूप भगवान बुद्ध के शांति और विश्वसंघ के प्रतीक के रूप में जाना जाता है ।इसका निर्माण भारत-जापान के मित्रता के अवसर पर हुआ था और इसकी ऊंचाई से पूरा राजगीर का खूबसूरत दृश्य मिलता है । राजगीर मगध सम्राट राजा जरासंध,भगवान बुद्ध एवं महावीर की तप भूमि है। बुद्ध ने चार आर्य सत्यों के बारे में सिखाया: दुख का सत्य: हर कोई पीड़ित है । दुःख के कारण का सत्य: सांसारिक इच्छाएँ; दुख के अंत का सत्य: इच्छाओं को दूर करना; और उस मार्ग का सत्य जो हमें दुखों से मुक्त करता है अष्टांगिक मार्ग। बुद्ध ने ज्ञान, नैतिक चरित्र और एकाग्रता के विकास पर जोर दिया।

राजगीर पांच चट्टानी पहाड़ियों से घिरा है. जिसका जिक्र महाभारत और रामायण में भी है. 3. राजगीर में घूमने के लिए सबसे खूबसूरत जगह, राजगीर पर्यटन स्थल, राजगीर भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के प्रमुख तीर्थ स्थल के लिए प्रसिद्ध है।

एक पल एक दिन को बदल देता है,कोरोना ने हमारे देश को बदल दिया

रश्मि पांडेय/ कोलकाता :

भगवान गौतम बुध्द का जीवन दर्शन आज के दौर में प्रासंगिक हो चली है। उनका एक संदेश है कि एक पल एक दिन को बदल सकता है और एक दिन एक जीवन को बदल सकता है। आज के दौर में चार वर्ष पूर्व जब पूरा विश्व कोरोना महामारी जैसे संकट से जूझ रहा तब यह संदेश और भी ताजा हो गई है। क्या किसी को पता था कि यह कोरोना वायरस आएगा? शायद नहीं। सभी देशों में विकास की होड़ लगी हुई थी।

सभी प्रतिद्वंदी एक दूसरे से आगे निकलने में जुटे हुए थे । लेकिन इसी बीच कोरोना क्या आई सबकी पहिया थम गई। विश्वभर में हाहाकार मच गई। अपना देश भारत भी इस मुश्किल घड़ी से गुजर रहा है, दिन रात कोरोना-कोरोना हो रहा था। पूरा सिस्टम ही बदल गया है। सरकारी दफ्तरों से लेकर निजी कंपनियों में वर्क फॉर होम को बढ़ावा मिला। ऐसा दौर आएगा कभी किसी ने सोचा भी नहीं था लेकिन, लोगों की ढृढ़ इच्छाशक्ति ने आपदा को अवसर में बदला और अब तो कई ऐसे लोग भी है जिनकी पूरी कहानी ही बदल गई। आत्मनिर्भर भारत को तेजी से बल मिला है। जिस चीज के लिए पहले हम दूसरे देशों पर निर्भर रहा करते थे वह प्रोडक्ट अब भारत में ही बनने लगा।

याद कीजिए जब हमारे देश में कोरोना की इंट्री हुई थी तब हमारे पास न तो पीपीई किट की व्यवस्था थी और न ही जांच के लिए मशीनें थी। लेकिन, हमारे देश की जनता ने मजबूती के साथ आगे बढ़ी और उसे कर दिखाया। अब देश में ही मास्क से लेकर पीपीई किट, कोरोना जांच करने वाली मशीन सहित अन्य प्रोडक्ट तैयार हो रहे हैं। यहां तक की कोरोना वैक्सीन निर्माण में भी हमारा देश विश्व में सबसे आगे रहा है। वैक्सीन लेने वालों की संख्या से लेकर वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों की मेहनत ने आज हमारे देश का सिर उंचा कर दिया है। इस तरह से एक पल ने लोगों की दिनचर्या से लेकर उनके कार्य करने के अंदाज और सोचने-विचारने की क्षमता भी बदल दिया है।

लोभ एवं लालसा दुख का कारण है— गौतम बुद्ध

संगीता पाण्डेय/ लखनऊ (उ.प्र)

आज हर कोई परेशान है। हर कोई दुखी है। बहुत कम लोग ही मिलेंगे जो सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसके मुख्य कारणों में एक लोभ व लालसा भी शामिल है। भगवान बुद्ध ने कहा था कि लोभ और लालसा ही दुख का प्रमुख कारण है। सामान्य तौर पर बुध्द की यह बात बहुत सरल-सी लगती है, लेकिन यदि कोई इस गहराई से विचार करने लगे और इस विचार को अपने ऊपर लागू करके देखने लगे तो उसे समझ में आ जाएगा कि ढ़ाई हजार साल पहले कही गई बात आज भी कितनी सही है। आज अधिकांश लोगों के जीवन में दुख का प्रमुख कारण लोभ व लालसा ही बना हुआ है। लोगों के जीवन से संतुष्टि खत्म होते जा रही है। जो जहां है वहीं, बेईमानी करने में जुटा हुअा है। बेईमानी से संपति हासिल हो जाए तो ठीक और नहीं होने से इंसान दुखी हो जाता है। एेसे में सुखी जिंदगी जीने के लिए लोभ, लालस से बाहर निकलने की जरूरत है।

यथार्थ जगत में दुखों और पीड़ाओं को संघर्ष के जरिए नहीं, मानसिक प्रयत्नों के द्वारा ही दूर किया जा सकता है -भगवान गौतम बुद्ध

रश्मी पाण्डेय/ ग्वालियर ( म . प्र )

कोरोना जैसे संकट से देश जूझ कर नई जीवन पाने वाले लोगों को भगवान गौतम बुध्द का यह संदेश बल देगा। उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करेगा। भगवान बुध्द ने कहा था ‘यथार्थ जगत में दुखों और पीड़ाओं को संघर्ष के जरिए नहीं, मानसिक प्रयत्नों के द्वारा ही दूर किया जा सकता है।’ जाहरि है कि मनुष्य पशु से केवल इस मानये में श्रेष्ठ है कि उसके पास बुध्दि है, विवेक है। वह सोच-समझ सकता है और अपनी सोच और समझ के अनुसार कुछ भी कर सकता है। जिसकी सोच जितनी व्यवस्थित होगी, उसका जीवन उतना ही अधिक व्यवस्थित होगा।

अभी देखा जा रहा है कि देश की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से डगमगा गई है, जिससे लोगों के जीवन भी गहरा प्रभाव पड़ा है। स्थिति यह हो गई है कि लोगों में मानसिक बीमारी तेजी से बढ़ रही है। कोई नौकरी को लेकर तनाव में हैं तो कोई नौकरी छूट जाने से। अभी हाल के आंकड़े देखा जाए तो देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। एेसी परिस्थिति से निपटने लिए अपने आप को प्रेरित करना अपने आप को हिम्मत देना बहुत जरूरी है इसके लिए भगवान गौतम बुध्द का संदेश जरूर पढ़ना चाहिए। यह आपको आत्मबल प्रदान करेगा खासकर युवाओं को पढ़ना चाहिये |

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