@ जयपुर राजस्थान
जयपुर की चहल-पहल वाले बाबारामदेव नगर में महिला नेत्रियों का समूह स्वच्छता के स्तर में बदलाव लेकर आया है, इससे साबित होता है कि असली बदलाव जमीनी स्तर से शुरू होता है। कई सालों से यहां रहने वाले सैकड़ों परिवार अपर्याप्त स्वच्छता सेवाओं से जूझ रहे थे। सीवर कनेक्शन की सुविधा उपलब्ध न होने और सामुदायिक शौचालयों के खराब रखरखाव के कारण विशेष रूप से महिलाओं को इन चुनौतियों का खामियाजा भुगतना पड़ा। यह सब तब बदलना शुरू हुआ जब मंजू राणा, संजू राणा, छुट्टन बेगम और अन्य महिलाओं ने स्वच्छता क्रांति के नेतृत्व का बीड़ा उठाया।
मछुआरे, कचरा बीनने वाली और गृहणियों जैसी अनेक प्रकार की पृष्ठभूमि से आने वाली इन महिलाओं ने सामुदायिक प्रबंधन समिति और सिंगल विंडो फोरम का गठन किया। उन्होंने अपने समुदाय में हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज़ बनने का दृढ़ संकल्प लिया। सबसे पहले उन्होंने स्वच्छता संचालन और स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) दिशा-निर्देशों पर औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस ज्ञान के बल पर उन्होंने समुदाय को शामिल करने, साक्ष्य एकत्र करने सहित एक स्थायी स्वच्छता मॉडल के सह-निर्माण के लिए योजना तैयार की।
प्रत्येक महिला नेत्री ने यहां के विशिष्ट समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बुजुर्गों, अकेली महिलाओं, दिव्यांगों और कचरा बीनने वालों तक पहुँची। इसके साथ ही उन्होंने 400 से अधिक निवासियों को सुरक्षित स्वच्छता प्रथाओं को अपनाने, गीला और सूखा कचरा अलग करने के काम को लेकर जागरूकता अभियानों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। जल्द ही इसके परिणाम सामने आने लगे। 100 घरों में से 25 घरों में शौचालयों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है जबकि बाकि बचे 75 घरों में शौचालयों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी। महिलाओं ने सामूहिक जिम्मेदारी और स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देते हुए मौजूदा सामुदायिक शौचालयों के रखरखाव का भी जिम्मा उठाया।
इन स्वच्छता चुनौतियों से निपटने के लिए महिलाओं की आवाज़ के महत्व को ध्यान में रखते हुए, महिला नेत्रियों ने पुरुषों के नेतृत्व वाली झुग्गी-बस्ति विकास समिति (एसडीसी) से संपर्क किया। उन्होंने महिलाओं और कमज़ोर समूहों की विशिष्ट चिंताओं के निदान के लिए मज़बूत महिला प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर बल दिया। उनके प्रयासों से न केवल स्वच्छता के बुनियादी ढांचे में सुधार आया, बल्कि अधिक समावेशी और टिकाऊ समाधान में भी योगदान नजर आया और यहां के निवासियों के बीच व्यवहार परिवर्तन को बल मिला।
ये महिला नेत्री बेहतर स्वच्छता की दिशा में एक बड़े राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनी हैं। स्वच्छ भारत मिशन की 10वीं वर्षगांठ के अवसर पर शुरू किया गया स्वाभाव स्वच्छता संस्कार स्वच्छता (4एस) अभियान इसका एक उदाहरण है। 17 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2024 तक चलने वाला यह अभियान वार्षिक स्वच्छता ही सेवा पहल के साथ जुड़ा हुआ है और अब महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। 4एस अभियान केवल सफाई अभियान तक सीमित नहीं है; यह स्वच्छता के माध्यम से स्वामित्व, स्थिरता और गरिमा के मूल मूल्यों को दर्शाता है और ये सिद्धांत बाबारामदेव नगर की महिलाओं द्वारा किए गए काम से मेल खाते हैं।
पिछले दशक की स्वच्छ भारत मिशन की सफलता अपने आप में बहुत कुछ कहती है। 25 सितंबर, 2024 तक, भारत में गांव के घरों में 11.66 करोड़ शौचालय बनाए जा चुके हैं, जिससे अनेक गांवों में स्वच्छता परिदृश्य बदलाव का गवाह बना है। शहरी क्षेत्रों में, 63.63 लाख निजी शौचालयों का निर्माण किया गया है, जिससे लाखों लोगों के लिए स्वच्छता बनाए रखने की स्थिति में सुधार हुआ है।
ये संख्याएँ मिशन की सफलता के पैमाने को दर्शाती हैं लेकिन बाबारामदेव नगर की महिलाओं की व्यक्तिगत कहानियाँ आंदोलन के मर्म को प्रकट करती हैं।
उनके प्रयासों ने दिखाया है कि समुदाय की भागीदारी के बिना और विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी के बिना स्थायी स्वच्छता हासिल नहीं की जा सकती। जिम्मेदारी निभाते हुए इन महिलाओं ने न केवल अपनी बस्ती की स्वच्छता व्यवस्था को बदला है, बल्कि जिस नजरिये से उनका समुदाय महिलाओं के नेतृत्व को देखता है, उसे भी बदला है। उनका काम इसी तरह के दूसरे समुदायों को प्रेरित करता है इससे यह साबित होता है कि जब स्थानीय निवासी नेतृत्व करते हैं तो बदलाव संभव है।
स्वच्छ भारत मिशन अपनी 10वीं वर्षगांठ मना रहा है, ऐसे में बाबारामदेव नगर की कहानी जमीनी स्तर पर सक्रियता की शक्ति का प्रमाण है। इस बस्ती की महिलाओं ने दिखाया है कि स्वच्छ और स्वस्थ भारत के लिए न केवल बुनियादी ढांचे की बल्कि इसके लिए लोगों की प्रतिबद्धता और भागीदारी की भी आवश्यकता है। साहस, लचीलेपन और एक उज्जवल भविष्य की दृष्टि से परिपूर्ण उनकी यात्रा अनगिनत लोगों को अपने समुदायों में बदलाव लाने के लिए के लिए प्रेरित करती है।