@ नई दिल्ली :
केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने महान अहोम सैन्य कमांडर लचित बोरफुकन को उनकी 402वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार से लाचित बोरफुकन की सैन्य प्रतिभा ने असम में मुगलों को हराया जो किसी भी विदेशी आक्रमण या प्रभाव के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प को प्रेरित करता है और किसी भी कीमत पर मातृभूमि के सम्मान की रक्षा करता है।
भारत के सबसे प्रसिद्ध संतानों में से एक, महावीर लाचित बोरफूकन अपनी अदम्य वीरता और देशभक्ति के साथ हम सभी को प्रेरित करते हैं। आज, महान अहोम सेनापति की 402वीं जयंती के अवसर पर, नई दिल्ली में मेरे सरकारी निवास पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर बोलते हुए सर्बानंद सोनोवाल ने कहा, लचित बोरफुकन की बहादुरी, अदम्य शक्ति, साहस और वीरता की कहानी हमारे देश, विशेष रूप से युवाओं को प्रेरित करती है। सराईघाट के ऐतिहासिक नौसैनिक युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व और रणनीतिक प्रतिभा ने उन्हें एक नायक के रूप में अमर कर दिया, जिन्होंने शक्तिशाली मुगल सेनाओं से असम की रक्षा की। उनके नेतृत्व के अंतर्गत, असम की सेना ने केवल असम के अस्तित्व को ही नहीं बल्कि उसके भविष्य को भी सुरक्षित रखा।
लचित बोरफुकन की देशभक्ति, निष्ठा और अपने राष्ट्र के प्रति अद्वितीय प्रतिबद्धता सभी भारतीयों को प्रेरणा देती है। उनकी विरासत हमें देश के प्रति आत्मनिर्भरता, साहस और अटूट समर्पण के महत्व की याद दिलाती है। जैसा कि हम उनकी स्मृति का सम्मान करते हैं, आइए हम उसी भावना को मूर्त रूप देते हुए एक मजबूत, समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की कोशिश करें जो उन्होंने हमारी भूमि और विरासत की रक्षा में प्रदर्शित की थी। लचित बोरफुकन का नेशन फर्स्ट’ सिद्धांत पीढ़ियों, विशेष रूप से युवाओं को प्रेरित करता है, क्योंकि हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्व में अपने राष्ट्र का पुरर्निमाण एक आत्मनिर्भर एवं विकसित भारत के रूप में करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
सर्बानंद सोनोवाल ने आगे कहा, सरायघाट की लड़ाई ब्रह्मपुत्र नदी पर लड़ी गई सबसे बड़ी नौसैनिक लड़ाइयों में से एक है। यहीं पर लाचित बोरफुकन ने युद्ध के मैदान में अंतर्देशीय जलमार्गों के रणनीतिक महत्व की पहचान की। लाचित की दूरदृष्टि से प्रेरित होकर, हमने देश के जलमार्गों को मजबूत करने और अपने राज्य को सशक्त बनाने के लिए ब्रह्मपुत्र की क्षमता का दोहन करने के लिए कदम उठाए हैं। सराईघाट की लड़ाई अस्तित्व की लड़ाई थी, असमिया राष्ट्र की गरिमा और आत्मसम्मान को बनाए रखने की लड़ाई थी।
भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए दृढ़ संकल्पित मुगलों को लाचित बोरफुकन की ओर से विकट चुनौती का सामना करना पड़ा। उनकी प्रतिभा और साहस ने न केवल मुगलों की महत्वाकांक्षाओं को विफल किया बल्कि शक्तिशाली मुगल साम्राज्य की कमजोरियों को भी उजागर किया। मातृभूमि के लिए उनका अटूट समर्पण और सम्मान पीढ़ियों को प्रेरित करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लचित बोरफुकन द्वारा स्थापित उदाहरण का अनुसरण करते हुए राष्ट्र की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए निर्णायक कार्रवाई की है। लाचित की तरह, मोदी ने बाहरी आक्रमण से भारत की रक्षा करने और हमारे महान राष्ट्र की संप्रभुता सुनिश्चित करने का मजबूत संकल्प दिखाया है। लचित बोरफुकन द्वारा मुगल शक्तियों की हार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के विदेशी आक्रमण या प्रभाव के खिलाफ संकल्प और मां भारती के सम्मान की रक्षा के लिए प्रेरित करती है।
प्रसिद्ध अहोम सेनापति महावीर लचित बोरफुकन की 402वीं जयंती आज यहां केंद्रीय मंत्री के आधिकारिक आवास पर एक भव्य समारोह में मनाई गई। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य प्रसिद्ध इतिहासकार संजीव सान्याल सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने हिस्सा लिया।
मैरीटाइम इंस्टीट्यूशन और सेंट्रल बैंड के कैडेटों ने इस अवसर को औपचारिक बना दिया। कार्यक्रम की शुरुआत लचित बोरफुकन को पुष्पांजलि अर्पित करने से हुई, जिसमें 1671 में सरायघाट की लड़ाई के नायक के रूप में उनकी विरासत का सम्मान किया गया, जहां उन्होंने मुगल सेना के खिलाफ अहोम सेना का नेतृत्व किया और जीत प्राप्त की। इस आयोजन ने समुद्री विरासत और राष्ट्रीय गौरव पर बोरफुकन के स्थायी प्रभाव को रेखांकित किया, अपने समय में भारत की संप्रभुता की रक्षा में बोरफुकन की भूमिका पर ध्यान केंद्रीत किया।