@ रांची झारखंड
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री श्री बैद्यनाथ राम ने कहा है कि हाथी न केवल वन्यप्राणी साम्राज्य की प्रमुख प्रजाति है, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी पूजनीय जीव माना जाता है। हमारे देश में सदियों से मानव और वन्यप्राणी शांति पूर्वक सह-अस्तित्व में रहते आए हैं। फिर भी कुछ समय से मानव की आगे बढ़ने की प्रत्याशा ने दोनों प्रजातियों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिसके परिणामस्वरूप अप्रिय स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं और इससे दोनों पक्षों की जान-माल की हानि हो रही है। वह 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस के अवसर पर बेंगलुरु में कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित मानव- हाथी संघर्ष पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में बोल रहे थे।
उन्होंने कर्नाटक की वन्यजीव प्रबंधन प्रणाली प्रशंसा करते हुए कहा कि कर्नाटक में वैज्ञानिक तरीके से वन और वन्यजीव प्रबंधन की एक लंबी और गौरवशाली परंपरा रही है। कर्नाटक सरकार द्वारा मानव- हाथी संघर्ष की बढ़ती घटनाओं पर चर्चा करने के लिए विश्व के प्रमुख विशेषज्ञों को एक साथ लाने की पहल सराहनीय है।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि झारखंड वनों की भूमि है। यहां 29 प्रतिशत से अधिक भूमि वनाच्छादित है। झारखंड एक लैंडलॉक (चारो ओर से जमीन से घिरा) राज्य है, जहां हाथियों की एक स्वस्थ आबादी विचरण करती है। यह राज्य चारों तरफ से हाथियों के प्रवास अनुकूल क्षेत्र वाले राज्यों से भी घिरा हुआ है और East-Central Elephant Landscape के रूप में चिह्नित है। यह परिदृश्य जहां एक ओर उचित वैज्ञानिक वन्यप्राणी प्रबंधन में कठिनाई उत्पन्न करता है, वहीँ दूसरी ओर संबंधित राज्यों के बीच आपसी समन्वय के महत्त्व एवं उसकी आवश्यकता को इंगित करता है। नवीनतम गणना से पता चलता है कि झारखंड में लगभग 600 से 700 हाथियों का बसेरा है। हमारे पास संतोषजनक वन क्षेत्र है, लेकिन हमारे पास बड़े निरंतर वन क्षेत्र नहीं हैं। भूमि खंडित है और जानवरों के गलियारे टूट चुके हैं। फसल कटाई का समय अक्सर हाथियों के प्रवास के समय से मेल खाता है, जिससे हमारे गरीब लोगों और इस महान जीव के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है।
झारखंड के लोगों का जीवन प्रकृति और उसके संरक्षण के साथ अटूट रूप से जुड़ा है, किन्तु झारखंड भी मानव- वन्यप्राणी संघर्ष के वैश्विक रुझान से अछूता नहीं है और हम अपने तरीके से इससे निपट भी रहे हैं। बीते वर्षों में मनुष्य और हाथियों दोनों ने अपनी जान गंवाई है। मानव-हाथी संघर्ष से संपत्ति और कृषि की औसत वार्षिक हानि लगभग 60 से 70 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है, जिसकी प्रतिपूर्ति झारखंड सरकार मुआवजे के रूप में करती है। अवैध शिकार की घटनाएँ तो कम हैं, लेकिन झारखंड में हाथियों की मृत्यु के मुख्य कारण रेल से दुर्घटना और बिजली का करंट है। दूसरी ओर झारखंडवासी अपनी साल भर की मेहनत से उत्पन्न फसल और अपने घरों को अपनी आँखों के सामने नष्ट होते देखते हैं।
अब समय आ गया है कि हम उन व्यावहारिक विकल्पों और रणनीतियों के बारे में सोचें, जो आज हम सभी के सामने आ रही इन जटिल समस्याओं का समाधान कर सकें। हम इस स्थिति का अपने तरीके से समाधान करने का प्रयास कर रहे हैं। यह समाधान दो प्रकार के हैं। पहली यह कि मानव-हाथी के बीच संघर्ष की घटनाएँ ना हो और दूसरी घटना होने की स्थिति में त्वरित उपाय किए जाएँ।
रोकने के लिए प्रभावी रणनीतियां सामने आएंगी, जिससे झारखंड सहित सभी को लाभ होगा। अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इतने गुणी वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ व्यक्तियों की मौजूदगी में ज़रूर कुछ ना कुछ सार्थक परिणाम निकलेगा, जिसका हमारे राज्य को भी लाभ मिलेगा। हम इस कार्यशाला में प्रस्तुत होने वाले सभी सकारात्मक सुझावों का स्वागत करते हैं।