@ नई दिल्ली
विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग के विधायी प्रारूपण एवं अनुसंधान संस्थान ने आज “प्रसन्नता – मानवीय मूल्यों के माध्यम से क्षमता निर्माण” विषय पर प्रेरणा व्याख्यान सह कार्यशाला का आयोजन किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि तथा विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि समस्याओं को दूसरों के साथ साझा करना और उसका समाधान ढूंढना एक स्वस्थ तौर-तरीका है, जिसे कार्य वातावरण में शामिल किया जा सकता है। इस संदर्भ में अपने अनुभव से जुड़े उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि खुशहाली और प्रसन्न रहने के लिए महत्वपूर्ण है कि जीवन में तनाव को उद्देश्यपूर्ण तरीके से हल किया जाए।
मेघवाल ने कहा कि भारतीय परंपरा ऐसे उदाहरणों से भरी पड़ी है, जहां समस्याओं को दूसरों के साथ साझा करने से न केवल रचनात्मक समाधान के लिए मुद्दों को कम करने में मदद मिलती है, बल्कि यह काम में उत्पादकता बढ़ाने के लिए भी आवश्यक होता है।
व्याख्यान सह कार्यशाला के आयोजन के विषय और उद्देश्य का परिचय देते हुए, विधि और न्याय मंत्रालय, विधायी विभाग के सचिव डॉ. राजीव मणि ने इस बात पर जोर दिया कि एक टीम में काम करते समय, कुछ कौशल और तौर-तरीके बहुत आवश्यक होते हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रयास में, कार्य जीवन संतुलन और खुशहाली के प्रासंगिक पहलुओं से निपटने के दौरान समन्वय और पेशेवर दृष्टिकोण के संबंध में यह कार्यशाला अत्यधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।
कार्यशाला में लेखक एवं प्रेरणा प्रदाता वक्ता डॉ. नंदितेश निलय ने अपने विचार-विमर्श को व्यापक रूप से चार महत्वपूर्ण बिंदुओं पर केंद्रित किया, जो एक खुशहाल और सफल कार्य वातावरण की ओर ले जाएगा, जिससे विभाग का क्षमता निर्माण होगा और विभाग के प्रत्येक सदस्य खुशहाल होगा। उनके व्याख्यान निम्न महत्वपूर्ण बिंदुओं पर केंद्रित थे – पहला, अपने काम के प्रति मेहनती होना और अपने जीवन में एक उद्देश्य होना; दूसरा, काम किसी व्यक्ति को एक पहचान प्रदान देता है; तीसरा, किए जा रहे काम पर गर्व होना चाहिए और चौथा, व्यक्ति के मन में आध्यात्मिकता होनी चाहिए।
उन्होंने दैनिक दिनचर्या में कार्य संतुलन को एक आवश्यक पहलू के रूप में लाने के लिए सभी से “कार्य में जीवन लाने” का आग्रह किया। डॉ. निलय ने उल्लेख किया कि कार्य को ऐसे उद्देश्य और लक्ष्य प्रदान करने चाहिए, जिनकी किसी भी व्यवस्था के तहत काम करने के दौरान आकांक्षा की जाती है। महाभारत में अर्जुन को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि यथार्थवादी होना महत्वपूर्ण है, कार्य वातावरण में केंद्रित रहना सर्वोत्कृष्ट है।
उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को अपने कार्य में गर्व महसूस करना उचित है, जो व्यक्ति को पहचान और उद्देश्य प्रदान करता है। डॉ. निलय ने कहा कि हालांकि, खुश रहना एक मानसिक स्थिति है, लेकिन ईमानदारी और लगन से काम करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मानव संसाधन कार्य वातावरण में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान करते हैं, जिसके माध्यम से क्षमता निर्माण के लिए योग्यता का उपयोग किया जा सकता है।
व्याख्यान सह कार्यशाला में विधि और न्याय मंत्रालय, विधायी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे और इसका समापन विधायी विभाग के अपर सचिव डॉ. मनोज कुमार ने मीडिया बिरादरी की उपस्थिति में किया, जिन्होंने पूरे सत्र को ध्यान से सुना और प्रेरक सत्र की प्रभावशीलता की सराहना की।