राष्ट्र, विचार परम्परा से नहीं बल्कि विश्वास परम्परा से संचालित होता है : आचार्य मिथिलेश

@ भोपाल मध्यप्रदेश :- कृतज्ञता का भाव, भारत की सभ्यता एवं विरासत है और भारतीय ज्ञान परम्परा का अभिन्न अंग है। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति, नदियों एवं सूर्य सहित समस्त ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण के लिए, कृतज्ञता भाव से समृद्ध परम्पराओं को स्थापित किया था। भारत का ज्ञान, ज्ञान परम्परा एवं मान्यता के रूप में भारतीय समाज में सर्वत्र विद्यमान है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर, भारतीय समाज में परंपराएं एवं मान्यताएं स्थापित हुई हैं।

हर विधा-हर क्षेत्र में विद्यमान भारतीय ज्ञान को युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में नए सन्दर्भों में, पुनः शोध एवं अनुसंधान कर वर्तमान वैश्विक आवश्यकतानुरूप दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता है।

यह बात उच्च शिक्षा, त कनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने शनिवार को दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान भोपाल के तत्वावधान में मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के डॉ. जगदीश चंद्र बसु सभागृह में आयोजित “भारत के पुनरुत्थान के लिए सहयोगात्मक अनुसंधान की पहल” विषयक तीन दिवसीय “राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” के शुभारंभ सत्र में कही। मंत्री परमार ने कहा कि शोधार्थियों को समाज के प्रश्नों का समाधानकारक शोध करने की आवश्यकता है। शोधार्थियों के शोध का प्रभाव, समाज के दृष्टि पटल पर परिलक्षित होना चाहिए।

उच्च शिक्षा मंत्री परमार ने “राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” के आयोजन एवं सफलता के लिए आयोजकों एवं सहभागियों को शुभकामनाएं दीं। परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसरण में भारत केंद्रित शिक्षा के लिए यह समागम उपयोगी होगा। यह समागम, प्रदेश के समस्त उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध एवं अनुसंधान के लिए अभिप्रेरक बनेगा। परमार ने कहा कि “राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” भारतीय दृष्टि से शोध एवं अनुसंधान की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगा। परमार ने कहा कि स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने में भारत केंद्रित शिक्षा की महती भूमिका होगी। भारत को विश्व मंच पर पुनः सिरमौर बनाने के लिए सभी की सहभागिता आवश्यक है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सारस्वत अतिथि सिद्धपीठ हनुमन निवास अयोध्या धाम के पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा, अतीत के कालखंडों में गुरुकुल शिक्षा पद्धति के नष्ट किए जाने से विलोपित हुई है। गुरुकुल शिक्षा पद्धति में पहली कक्षा से ही शोध किया जाना प्रारंभ हो जाता था। आचार्य ने कहा कि वेदों में, भारतीय ज्ञान परम्परा विद्यमान है। शोध के लिए मौलिकता की ओर वापस लौटना होगा। आचार्य ने कहा कि राष्ट्र, विचार परम्परा से नहीं बल्कि विश्वास परम्परा से संचालित होता है। शोध के लिए विश्वास परम्परा की ओर लौटने की आवश्यकता है।

बीज वक्ता के रूप में प्रखर राष्ट्रवादी विचारक एवं लेखक मुकुल कानिटकर ने कहा कि राष्ट्र पुनर्निर्माण के लिए, श्रेष्ठ व्यक्ति निर्माण आवश्यक है। वास्तव में स्वयं का निर्माण करने वाले ही राष्ट्र पुनर्निर्माण में सहभागिता कर सकते हैं। कानिटकर ने कहा कि शोध का वास्तविक अर्थ है शुद्ध करना, शोधार्थियों के जीवन का अंतिम लक्ष्य शोध ही होना चाहिए। इसके लिए शोधार्थियों में मौलिकता के साथ, विश्लेषण एवं संश्लेषण दोनों के संस्कार जागृत करने की आवश्यकता है। स्वयं को शुद्ध करते हुए, द्वंद्व से मार्ग निकालने से प्राप्त मौलिकतापूर्ण परिणाम ही वास्तव में शोध है।

इस अवसर पर राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान भोपाल के निदेशक प्रो. चंद्र चारु त्रिपाठी, मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक प्रो. अनिल कोठारी, दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. मुकेश मिश्रा एवं विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी उच्च शिक्षा डॉ. धीरेंद्र शुक्ल सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलगुरू एवं देश भर से पधारे विविध शोधार्थी उपस्थित थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

LIVE OFFLINE
track image
Loading...