@ नई दिल्ली :-
राष्ट्रपति भवन में आयोजित दो-दिवसीय विजिटर्स कॉन्फ्रेंस संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में निम्नलिखित विषयों पर विचार-विमर्श किया गया – शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में लचीलापन, कई बार प्रवेश एवं निकास संबंधी विकल्पों के साथ क्रेडिट शेयरिंग और क्रेडिट ट्रान्सफर; अंतरराष्ट्रीयकरण संबंधी प्रयास एवं सहयोग; अनुसंधान या नवाचार को उपयोगी उत्पादों एवं सेवाओं में परिवर्तित करने से संबंधित अधिक अर्थपूर्ण अनुसंधान एवं नवाचार; एनईपी के संदर्भ में विद्यार्थियों के चयन की प्रभावी प्रक्रिया और विद्यार्थियों की पसंद का सम्मान; और प्रभावी आकलन एवं मूल्यांकन। विचार-विमर्श के निष्कर्षों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
अपने समापन भाषण में, राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य इस सदी के पहले भाग के अंत से पहले भारत को एक विकसित देश बनाना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, शैक्षणिक संस्थानों और विद्यार्थियों से संबंधित के सभी हितधारकों को वैश्विक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। अंतरराष्ट्रीयकरण के प्रयासों एवं सहयोग को मजबूत करने से युवा विद्यार्थी 21वीं सदी की दुनिया में अपनी और अधिक प्रभावी पहचान बना सकेंगे। हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में उत्कृष्ट शिक्षा की उपलब्धता से विदेश में जाकर अध्ययन करने की प्रवृत्ति में कमी आएगी। हमारी युवा प्रतिभाओं का राष्ट्र निर्माण में बेहतर उपयोग हो सकेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। आत्मनिर्भर होना ही सही मायने में एक विकसित, बड़ी एवं मजबूत अर्थव्यवस्था की पहचान है। अनुसंधान एवं नवाचार पर आधारित आत्मनिर्भरता हमारे उद्यमों व अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएगी। ऐसे अनुसंधान और नवाचार को हरसंभव सहयोग मिलना चाहिए। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में शिक्षा और उद्योग जगत के बीच का संबंध मजबूत दिखाई देता है। उद्योग जगत और उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच निरंतर आदान-प्रदान के कारण शोध कार्य अर्थव्यवस्था एवं समाज की जरूरतों से जुड़े रहते हैं। उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों से आग्रह किया कि वे औद्योगिक संस्थानों के वरिष्ठ लोगों के साथ आपसी हित में निरंतर विचार-विमर्श करने के संस्थागत प्रयास करें। उन्होंने कहा कि इससे शोध कार्य करने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों को लाभ होगा। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षण संस्थानों की प्रयोगशालाओं को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक जरूरतों से जोड़ना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि विद्यार्थियों की विशेष प्रतिभा एवं आवश्यकताओं के अनुरूप व्यवस्था आधारित तथा लचीली शिक्षा प्रणाली का होना अत्यंत आवश्यक व चुनौतीपूर्ण है। इस संदर्भ में निरंतर सजग और सक्रिय रहने की आवश्यकता है। अनुभव के आधार पर समुचित बदलाव होते रहने चाहिए। विद्यार्थियों को सशक्त बनाना ऐसे बदलावों का उद्देश्य होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि चरित्रवान, समझदार एवं योग्य युवाओं के बल पर ही कोई राष्ट्र सशक्त तथा विकसित बनता है। शिक्षण संस्थानों में हमारे युवा विद्यार्थियों के चरित्र, विवेक और क्षमता का विकास होता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुख अवश्य ही उच्च शिक्षा के उदात्त आदर्शों को हासिल करेंगे और भारत माता की युवा संततियों का उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करेंगे।
सभा को संबोधित करते हुए, केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उद्घाटन एवं समापन सत्र के दौरान मार्गदर्शन और प्रेरणा भरे शब्दों के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने विजिटर्स कॉन्फ्रेंस में सक्रिय भागीदारी और सार्थक चर्चा के लिए अकादमिक जगत की अग्रणी हस्तियों के प्रति भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनके विविध दृष्टिकोण एवं दूरदर्शी विचारों ने इस समागम को समृद्ध किया है और देश के उज्ज्वल भविष्य के रोडमैप को आकार देने में योगदान दिया है।
भारत की शिक्षा प्रणाली को आकार देने की सामूहिक जिम्मेदारी पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एनईपी 2020 का त्वरित और बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन एक राष्ट्रीय मिशन होना चाहिए।
आगे की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए, उन्होंने इस बात को दोहराया कि सामूहिक प्रयासों, एक साझा दृष्टिकोण एवं मजबूत प्रतिबद्धता के साथ शिक्षा प्रणाली को फिर से परिभाषित किया जा सकता है, जिससे 2047 तक एक विकसित देश बनने की यात्रा पर अग्रसर ज्ञान से संचालित एवं आत्मनिर्भर भारत का मार्ग प्रशस्त होगा।
उन्होंने शिक्षा प्रणाली के सबसे महत्वपूर्ण हितधारक व रीढ़ के रूप में विद्यार्थियों के महत्व को भी रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को दोहराते हुए, उन्होंने न केवल एक शैक्षणिक दायित्व बल्कि राष्ट्र के प्रति एक कर्तव्य के रूप में विद्यार्थियों की शिक्षा में निवेश करके उनके हितों को प्राथमिकता देने, उन्हें सही कौशल से लैस करने, उन्हें बड़े सपने देखने के लिए सशक्त बनाने और उनकी आकांक्षाओं को हासिल करने में उनका समर्थन करने के महत्व पर जोर दिया।
केन्द्रीय शिक्षा एवं उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास राज्यमंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. विनीत जोशी ने विभिन्न सत्रों का सारांश प्रस्तुत किया। प्रधानमंत्री के सलाहकार अमित खरे और राष्ट्रपति की सचिव दीप्ति उमाशंकर भी इस अवसर पर उपस्थित थीं। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति भवन एवं शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी और विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुख भी उपस्थित थे।
कुल पांच सत्रों की मुख्य बातों को संक्षेप में प्रस्तुत करने के अलावा, डॉ. जोशी ने अपने भाषण में कहा कि इस सम्मेलन ने एक ऐसे मंच के रूप में काम किया है जिसने भारत में उच्च शिक्षा के भविष्य पर विचार-विमर्श करने हेतु दूरदर्शी नेताओं, शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को एक साथ लाया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020, जोकि प्राचीन भारतीय सिद्धांतों में निहित एक परिवर्तनकारी सुधार है, ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को सर्वोच्च मानवीय लक्ष्यों के रूप में बढ़ावा देती है। उन्होंने एनईपी 2020 के पांच प्रमुख स्तंभों पर जोर दिया। इन स्तंभों में शिक्षार्थी-केन्द्रित शिक्षा, डिजिटल लर्निंग, अकादमिक अनुसंधान एवं अंतरराष्ट्रीयकरण, उद्योग और शिक्षण संस्थानों के बीच सहयोग और भारतीय ज्ञान प्रणाली शामिल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस नीति का उद्देश्य एक समग्र, समावेशी, उच्च-गुणवत्ता वाला और सुलभ शिक्षा संबंधी इकोसिस्टम बनाना है।
सत्रों का सार:
सत्र 1:
पहले सत्र का विषय अकादमिक पाठ्यक्रमों में लचीलापन, कई बार प्रवेश एवं निकास संबंधी विकल्पों के साथ क्रेडिट शेयरिंग और क्रेडिट ट्रान्सफर था। इस सत्र का सार राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आनंद भालेराव द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने विचार-विमर्श के मुख्य अंशों की जानकारी दी, जिनमें शैक्षणिक लचीलेपन की आवश्यकता; क्रेडिट शेयरिंग एवं ट्रान्सफर: विद्यार्थियों की गतिशीलता का एक मार्ग; भारत के लिए एक आदर्श के रूप में सर्वोत्तम वैश्विक कार्यप्रणालियां; कई बार प्रवेश एवं निकास संबंधी विकल्पों के जरिए उच्च शिक्षा का लोकतंत्रीकरण; और कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियां तथा आगे की राह शामिल थी। इस सत्र में संस्थागत तैयारी, अंतर-विश्वविद्यालय समन्वय, तकनीक एवं बुनियादी ढांचे, गुणवत्ता नियंत्रण और नियामक ढांचे जैसे फोकस क्षेत्रों पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया। उन्होंने पैनल की सिफारिशों की भी जानकारी दी जिसमें नीति एवं नियामक ढांचे को मजबूत करना, क्रेडिट ट्रान्सफर के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे का निर्माण करना, विश्वविद्यालय सहयोग एवं साझेदारी को बढ़ाना, संकाय एवं प्रशासकों के लिए क्षमता निर्माण, विद्यार्थियों में जागरूकता एवं जुड़ाव सुनिश्चित करना और उद्योग जगत का सहयोग एवं कौशल विकास को बढ़ावा देना शामिल था।
सत्र 2:
दूसरे सत्र का विषय अंतरराष्ट्रीयकरण के प्रयास एवं सहयोग था और यूजीसी के अध्यक्ष प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार ने सार प्रस्तुत किया। उन्होंने शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए भारत में मौजूद असीम संभावनाओं पर प्रकाश डाला। विचार-विमर्श के दौरान तीन प्रकार के अंतरराष्ट्रीयकरण पर चर्चा की गई। इनमें भारतीय संस्थानों को भारत के बाहर कैंपस स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना, भारत में निहित अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करने की क्षमता और भारत में भारतीय छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली अंतरराष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करना शामिल था। उन्होंने चर्चा के दौरान विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को फोकस में रखने की बात पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को एक अनूठा अवसर प्रदान करने हेतु भारतीय ज्ञान प्रणाली का समावेश करते हुए संस्थान कैसे एनईपी2020 को लागू कर सकते हैं।
सत्र 3:
तीसरे सत्र का विषय अनुसंधान एवं नवाचार को अधिक अर्थपूर्ण बनाना था। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बैंगलोर के निदेशक प्रोफेसर गोविंदन रंगराजन ने इस सत्र का सार प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रयोगशाला से लेकर जमीनी स्तर तक अनुसंधान और नवाचार को अर्थपूर्ण बनाने में उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) के सामने आने वाली कुछ चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने विज्ञान (जानें-क्यों), इंजीनियरिंग (जानें-कैसे) और ‘प्रौद्योगिकी’ (दिखाएं-कैसे) के बीच के संबंधों को दर्शाया। मौलिक अनुसंधान के महत्व पर जोर देते हुए, उन्होंने संकाय की मानसिकता (प्रकाशन से उत्पाद) को बदलने से जुड़े महत्वपूर्ण कारकों को सूचीबद्ध किया। इनमें मौलिक अनुसंधान को कमज़ोर नहीं करने; उत्पाद पेटेंट एवं शोध पत्रों के बीच लिंक स्थापित करने; स्थानीय समस्याओं (समाज, उद्योग) को हल करने के लिए प्रेरित करने; अर्थपूर्ण अनुसंधान हेतु फेलोशिप आदि जैसी बातें शामिल थीं। उन्होंने बताया कि विचार-विमर्श के दौरान आवश्यक इकोसिस्टम के निर्माण के लिए आवश्यक कारकों तथा उद्योग जगत को आकर्षित व उसके साथ साझेदारी (विश्वास एव ट्रैक रिकॉर्ड) करने पर भी चर्चा की गई।
सत्र 4:
चौथे सत्र का विषय विद्यार्थियों के चयन की प्रभावी प्रक्रियाएं और एनईपी के संदर्भ में विद्यार्थियों की पसंद का सम्मान था। इस सत्र का सार आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर मणिंद्र अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत किया गया।
सत्र 5
पांचवें सत्र का विषय प्रभावी आकलन एवं मूल्यांकन था। इस सत्र का सार इसरो के पूर्व अध्यक्ष तथा आईआईटी कानपुर के बीओजी के अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने चर्चा के संदर्भ के बारे में विस्तार से बताया, जोकि प्रौद्योगिकी थी। प्रौद्योगिकी (शिक्षाशास्त्र सहित) तेजी से आगे बढ़ रही है और व्यापक हो रही है। चर्चा के दौरान बहुविषयक मन के लिए अनिवार्य चीजों; विद्यार्थियों के समग्र विकास; परिणाम आधारित शिक्षा; और प्रमुख समर्थकों, जिनमें संकाय, पाठ्यक्रम और संस्थान शामिल हैं, पर भी बात हुई। उन्होंने पढ़ाई के समग्र विकास से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। इन पहलुओं में बौद्धिक, सौंदर्य, सामाजिक, शारीरिक, पाठ्येतर कला, खेल, भावनात्मक, नैतिक और मूल्य-आधारित शिक्षा शामिल हैं। उन्होंने परिणाम-आधारित शिक्षा के पांच आयामों पर हुई चर्चा के बारे में भी विस्तार से बताया । इन आयामों में ज्ञान अर्जन (रिकॉल); ज्ञान का अनुप्रयोग (समस्या-समाधान); विश्लेषणात्मक क्षमता (पैटर्न, रुझान, आलोचनात्मक सोच को समझना); संश्लेषण (बहु-विविध आदानों से प्राप्त नए विचार); और सीखने के तौर-तरीकों को सीखना शामिल है।