“रतन टाटा व्यक्ति नहीं एक सांस्थानिक प्रवाह”
वीरेंद्र सिंह नेगी की कलम से
“टाटा” भारत का एक पारसी परिवार और विश्व विख्यात औद्योगिक घराना है। जिसने पिछले 150 वर्षों से वर्तमान भारत के निर्माण और विकास में समांतर भूमिका निभायी है।
जमशेदजी टाटा (3 मार्च 1839 – 19 मई 1904) भारत के महान उद्योगपति तथा विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक थे। यह परिवार देश में पहला व्यवसायी बनने वाला परिवार बना जिसने मुंबई में एक निर्यात व्यापार फर्म की स्थापना की ।
जमशेदजी की मृत्यु के बाद, उनके बड़े बेटे दोराबजी टाटा (1859-1932 ) 1904 में अध्यक्ष बने। वे टाटा समूह के पहले चैयरमैन बने और 1908 से 1932 तक चैयरमैन बने रहे। सर दोराबजी ने 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना की, जिसे अब टाटा स्टील के नाम से जाना जाता है। इनकी कोई सन्तान नहीं थी।
इसके पश्चात का यह औद्योगिक घराना रतनजी दादाभाई टाटा (1856-1926) जो जमशेदजी टाटा के दूसरे बेटे थे और जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित टाटा संस के भागीदारों में से एक थे और रतनजी जेआरडी टाटा के पिता से जुड़ा।
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा या जे आर डी टाटा (29 जुलाई 1904- 29 नवंबर, 1993) भारत की स्वतंत्रता पूर्व और स्वातंत्र्योत्तर काल के महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे। आपने अपनी सूझ बूझ और दूर दृष्टि से भारत में औद्योगीकरण, शोध, शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी असाधारण भूमिका निभायी।
नेवल होर्मुसजी टाटा (30 अगस्त 1904 – 5 मई 1989) सर रतनजी टाटा के दत्तक पुत्र और टाटा समूह के एक प्रसिद्ध पूर्व छात्र थे। वह रतन टाटा, जिमी टाटा और नोएल टाटा के पिता हैं।
“रतन टाटा” दिसंबर 1937 को नवल और सूनू टाटा के घर जन्मे रतन टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा के परपोते थे। उनके माता पिता बचपन में ही अलग हो गए थे और दादी ने उनकी परवरिश की थी। 1991 में उन्हें टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था।
रतन नवल टाटा (1937-2024) भारतीय उद्योगपति थे जो टाटा समूह और टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे भारत की सबसे बड़ी व्यापारिक इकाई, टाटा समूह, के 1991 से 2012 तक अध्यक्ष थे। वे अविवाहित ही रहे।
रतन टाटा की यात्रा समाप्ति के पहले से ही 2012 से टाटा उत्तराधिकारियों की अगली पीढ़ी, लिआ, माया और नेविल की देखरेख में वर्तमान टाटा समूह की गति प्रवाहमान है।