सत्ता फिर बदली, तरीका भी बदला,अब आगे क्या ? सरिता चतुर्वेदी की कलम से

सत्ता फिर बदली, तरीका भी बदला, अब आगे क्या ? सरिता चतुर्वेदी की कलम से

बांग्लादेश, पहले भारत का हिस्सा फिर पाकिस्तान का हिस्सा और 1971 में एक स्वतंत्र देश बना। निसंदेह, बांग्लादेश अपने वजूद के लिए कहीं न कहीं भारत के योगदान को स्वीकार करता है। लेकिन सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, भोगोलिक और बांग्लादेश को आपत्ति समय में भारत के सहयोग के देने के बावजूद भी दोनों देशो के आपसी संबंध कभी सहज नहीं रहे। दोनों देशो के बीच द्विपक्षी संबंध अक्सर कड़वे, तनावपूर्ण और आरोप प्रत्यारोप से भरे हुए रहे।और अदभुत ये है कि, दोनों देशो के संबंध इस बात पर ज्यादा निर्भर करते हैं कि किस देश में कौन सी पार्टी दिल्ली और ढाका में सरकार बना रही है।

देखा जाय तो शेख मुजीबुर रहमान (1971 -1975) के समय, भारत बांग्लादेश का सबसे बड़ा भागीदार बन कर उभरा लेकिन उनकी हत्या के बाद, सैन्य शासन ने भारत विरोधी मुद्दे को हवा दी और बांग्लादेश को इस्लामी पहचान की दिशा में झोक दिया।

कुछ दशको तक इस ख़टास को कम करने में कोई कामयाबी ना मिल सकी लेकिन 1996 में बांग्लादेश अवामी लीग (बीएएल) सत्ता में आती है और चीजें बदलने लगी पर जैसे ही 1998 में बीजेपी ने दिल्ली में दस्तक दी और एक बार फिर संबंध खराब होने लगे क्योंकि बीजेपी सिमा पर घुसपैठ को एक बड़े मुद्दे के तौर पर उठा रही थी और इसका नतीजा ये हुआ कि एक लंबे समय तक द्विपक्षीय संबंध न्युनतम स्तर पर जा पहुचे। पर कोशिशे जारी रही और मनमोहन सिंह की सरकार ने काफी प्रयास भी किया।

बांग्लादेश की यात्रा के दौरान कई प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए जिनमें भूमि सीमा समझौता भी शामिल था ये अलग बात है कि तीस्ता जल बंटवारा संधि पर एक राय कायम न हो सकी । भारत बांग्लादेश के आपसी संबंध को पंख तब लगे जब प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश को पड़ोसी देश के नाते पहले पायदान पे रखा।

एक तरफ तत्कालिन प्रधानमंत्री शेख हसीना दूसरी तरफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। दोनों प्रधानमंत्रियों के शासन काल में दोनों देशो ने विकास और आपसी सहभागिता में नई उचाईयों को छुआ। यहां गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी ने अपनी कोई नीति अलग से नहीं थोपी, पूर्वोत्तर भारत के विकास के लिए बांग्लादेश को और तरजीह दी गई।

महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के शुरूआत में ही बांग्लादेश का दौरा किया था और तब से लेकर जुलाई 2024 तक सिमा विवाद, व्यापार क्षेत्र और कनेक्टिविटी जैसे मसलों पर काफी काम किया जा चुका है, पर दुर्भाग्य से अगस्त 2024 में, बांग्लादेश मे फिर से तख्ता पलट हो जाता है और एक बार फिर भारत और बांग्लादेश के आपसी संबंध हासिये पे चले जाते हैं। इतिहास फिर से खुद को दोहरा रहा है क्योंकि 1975 में सैन्य सरकार थी और भारत को बांग्लादेश विरोधी करार दे दिया गया था और इस बार फिर भारत को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।

चाहे मसला पूर्व प्रधान मंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण का हो, वीजा का मुद्दा हो या फिर बाढ की विभीषिका। हैरत नहीं कि पश्चिमी मीडिया घी में आग डालने का काम कर रही है।

भारत ने कई बार इन तमाम मुद्दों पर अपनी बात रखी है, पर बांग्लादेश साइबर स्पेस में यहीं चर्चा है कि भारत बांग्लादेश को दिक्कतें रहा है खासतौर पे बाढ़ को लेकर।

इन नई तबदिलियों के बीच, अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने पूर्व प्रधान मंत्री हसीना का राजनयिक विज़ा रद्द कर दिया है और भारत अभी भी कुछ बोलने की स्थिती में नहीं है। भारत इस बात पर बार-बार जोर दे रहा है कि कानून व्यवस्था सही तरीके से बांग्लादेश में लागू होनी चाहिए ताकि हिंसा का दौर खत्म हो और आपसी सहयोग की बात आगे बढ़े। .

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