वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल की कलम से…
वैसे तो लंदन में घूमने देखने को बहुत कुछ है। लेकिन टूरिस्ट और एतिहासिक महत्व की जगहों के अलावा मुझे ये दो जगहें बहुत पसंद हैं…
एक: टेम्स के किनारे किनारे मीलों तक टहलना और
दूसरा : नॉटिंग हिल
नॉटिंग हिल इसलिए नहीं कि वो लन्दन की सबसे महँगी रिहायशी कालोनियों में से एक है। बल्कि इसलिए कि वहाँ के मकान बनावट में तो एक से हैं लेकिन अलग अलग रंगों में ऐसे रंगे होते हैं कि देखते ही बनता है। लाल, नारंगी, नीले, पीले मकान। अग़ल बग़ल के कोई दो मकान एक से नहीं आनंद आ जाता है।
नीचे ऐसी कुछ सड़कों के चित्र हैं।
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नॉटिंग हिल की एक और ख़ासियत है यहाँ का मशहूर पोर्टबेलो रोड बाज़ार- कुछ कुछ अपने सरोजिनी नगर मार्केट की तरह। शनिवार को तो यहाँ की रंगत देखते ही बनती है। फुटपाथ पर ही डेढ़ हज़ार से ज़्यादा दूकाने सज जाती हैं। हज़ारों लोग चले आते हैं – ज़्यादातर टूरिस्ट।
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ये बाज़ार इतना मशहूर है कि यहाँ पर हॉलीवुड वालों ने भी इसी नाम से (नॉटिंग हिल) एक फ़िल्म बना डाली। हीरोइन थी जूलिया रॉबर्ट्स। फ़िल्म में हीरो ह्यू ग्रांट जिस मकान में रहते थे उसका नीला दरवाज़ा बहुत फ़ेमस हुआ। आज भी वैसा ही है। इस दरवाज़े के सामने फ़ोटो खिंचवाने के लिए लाइन लगानी पड़ती है।
लाइन में तो कौन लगता। हमने लाइन लगाने वालों की ही फ़ोटो खींच ली।
ये रंगीन मकान अपन को इसलिए भी अच्छे लगते हैं क्योंकि अपने पहाड़ में भी कई गाँवों में लोगों ने अपने मकान ऐसी ही रंगें हुए हैं। नीचे ऐसी एक तस्वीर गांव की भी दे दी है।
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टेम्स नदी के किनारे पैदल चलना हमेशा एक नया अनुभव दे जाता है। जब भी लंदन में होता हूँ कोशिश करता हूँ हर रोज़ पाँच सात किलोमीटर का चक्कर लगा ही लूँ – ख़ासकर नदी के दक्षिणी तट का।
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वेस्टमिंस्टर के सामने वाले ब्रिज से ग्रेनिच (greenwich का सही उच्चारण ग्रेनिच ही है, हालाँकि हम हिन्दी वाले इसे ग्रीनविच् कहते हैं) क़रीब दस किलोमीटर बैठता है। एकाध जगह थोड़ा सा इधर उधर होना पड़ता है वरना ये पूरी दूरी टेम्स के किनारे किनारे चलते हुए नापी जा सकती है।
नदी के दाहिनी ओर आप चल रहे हैं और बायीं ओर इतिहास के पन्ने पलटते जाते हैं- वेस्टमिंस्टर(संसद), बिग बेन, लन्दन ब्रिज, लंदन टावर – वही लंदन टावर जहॉं के “क्राउन ज्यूल हाउस” में हमारा कोहिनूर और फिरंगियों ने हम जैसों से जो लूटे वो सारे हीरे जवाहरात रखे हुए हैं।(नीचे पहली बड़ी तस्वीर इसी टावर की है)। टावर देखते ही हर हिंदुस्तानी/ पाकिस्तानी खून खौलने लगता होगा, अपना तो खौलता ही है।
मैंने जानबूझकर पाकिस्तानी भी जोड़ा क्योंकि जब यहीं टहलते हुए एक पाकिस्तानी भाई ने कोहिनूर का नाम आते ही फिरंगियों को गालियाँ निकालनी शुरू कीं तो एक बार को तो मैं भी चौंक गया था – लेकिन है तो ये भी साँझा विरासत ही, हम भूल रहे हैं तो क्या?
दक्षिणी तट पर ही वेस्टमिंस्टर के सामने ब्रिज की दूसरी और “लंदन आई” है। सबसे ज़्यादा टूरिस्ट लंदन-आई देखने ही आते हैं।
मिलेनियम(सहस्राब्दी ) के स्वागत के लिए बने इस विशालकाय चरखी- झूले में बत्तीस डिब्बे हैं जिनके से हरेक में २५ लोग बैठ सकते हैं। हर डिब्बे का एक नंबर है लेकिन १३ नंबर का डिब्बा नहीं है- ये संख्या अपशकुनी मानी जाती है।
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इस तट पर फुटपाथ पर लगा किताबों का भरा पूरा बाज़ार भी है। पुरानी से पुरानी किताब(अंग्रेज़ी की) ढूँढने पर मिल जाएगी। ना मिले तो ऑर्डर करने पर दो चार दिन में कोई ना कोई दुकानदार ले आएगा।
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