@ कमल उनियाल उत्तराखंड :-
होली एक पारम्परिक मनाया जाने वाला प्रसिद्ध पर्व है तन और मन दोनो होली के रंगो में रंग जाते हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मनायी जाने वाली होली की रंगत देखते ही बनती है। यहाँ अलग ही अंदाज मे होली मनायी जाती है। शाम ढलते ही हुल्यारो की टोली गीत गाते हुये दूसरे गाँँवो में निकल जाते हैं कही कहीं तो होली के होल्यार दो तीन दिन तक गाँव गाँव जाकर होली माँगते है।
पर्वतीय क्षेत्रों में परम्परा के अनुसार होली के पहले दिन पँयां की डाली लायी जाती है और गाँव के पूज्नीय स्थान पर इसे पूजा के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है। और अगले दिन हर रोज इसकी पूजा अर्चना करके गाँव गाँव में भ्रमण पर होली के हुल्यार निकल जाते हैं। ये हुल्यार होली के पारंपरिक गीत गाते हुये दूसरे गाँव में प्रवेश करते हैं और होली के मधुर गीतो से मन मोह लेते हैं।
मत मारो मोहन लाला पिचकारी मत काहे को तेरो रंग बनो है।
जल कैंसे भरुँ यमुना गहरी जल उँचे भरूँ राम जी देखे। हर फूलों से मथुरा छाई रही होली खेलेरघुवीररा अवध में।
जैसे पारम्परिक गीत गाते हुये होल्यार गाँव के घर घर जाते हैं तो मिलन के इस अनोखे संगम को होल्यारो को चाय पकोडे, मिष्ठान तथा पारितोषिक देकर गाँव वाले सम्मान करते हैं। और देवताओ के मधुर गीतो से हुल्यार और गाँव वाले नाचते गातै है।
क्षेत्र में कभी डाबर तिमली बमोली, दिखेत, ग्वीन, की होली काफी प्रसिद्ध थी। जिसका साल भर से सभी को इन्तजार रहता था। अब पहाड के हुल्यार प्रवासी मैदानी निवासियो के यहाँ जाकर अपनी संस्कृति सजोने का भी काम कर रहे हैं और प्रेम रस्वादन ढोलक मंदिरा की थाप प्रवासी लोग होली के रंग में रंग कर इनका स्वागत कर रहे हैं। सेवानिवृत्ति सूबेदार मेजर बीरेन्द्र रावत और सेवानिवृत्त सूबेदार रसपाल रावत ने बताया हम अपने पहाड की संस्कृति को कभी नहीं भूल सकते।