प्रकृति मित्र जीवनशैली से घटेगा धरती का ताप : श्रीराम माहेश्वरी की कलम से
(लेखक पर्यावरण और जैव विविधता पुस्तक के लेखक तथा पर्यावरणविद हैं )।
धरती पर बढ़ते तापमान से आज समूचा विश्व चिंतित है। तापमान के उतार चढ़ाव, बेमौसम बारिश और बाढ़ से जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। अचानक आने वाले तूफान, सुनामी और चक्रवात की घटनाएं भी भयावह हैं। बीते वर्षों की तुलना में इस वर्ष तापमान अधिक बढ़ा है। इससे कई स्थानों पर गर्मी के कारण लोगों की मौतें हो गई।
जलवायु परिवर्तन से पारिस्थिति तंत्र में आ रहा यह बदलाव वाकई गंभीर और चिंताजनक है। बंगाल और उड़ीसा के तटीय इलाकों में तूफान आने की घटनाएं हुई हैं। इससे हजारों लोग बेघर हुए। सुनामी जैसी आपदा जल क्षेत्र से आती है। समुद्र में तीव्र तरंगे तेज वायु के साथ आती हैं। समुद्री तटीय क्षेत्रों में इस तरह की आपदा से भयावह तबाही होती है। समुद्र की गहराई में कभी-कभी भूकंप आता है। इस कारण सुनामी आती है। सुनामी और तूफान से बचाव के लिए प्रणाली विकसित करना होगी । विभिन्न क्षेत्रों के सूचना केंद्रों के बीच समय पर संवाद और सूचनाओं के आदान-प्रदान से बचाव के उपाय किए जा सकते हैं।
हम अच्छी तरह से जानते हैं कि पृथ्वी ऐसा ग्रह है जहां जीवन है और यह भी सत्य है कि हमारे पास पृथ्वी एक ही है। इसके बावजूद हमने विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया और अब भी कर रहे हैं। लाखों उद्योग लगाकर जंगल और पेड़ काटकर हम लाखों किलोमीटर सड़कों का जाल बना रहे हैं। नए नगरों का निर्माण पेड़ों की बलि देकर किया जा रहा है। शहरों की कोई सीमा निर्धारित नहीं है । बड़े नगर आसपास के गांव को निगलते जा रहे हैं। पहाड़ों को खोदा जा रहा है। रेत माफिया हर क्षेत्र में नदी तंत्र का आधार खत्म करने पर आमादा है । जंगल में वन्य प्राणियों के जीवन पर संकट है। नगरों में अंधाधुंध ट्यूबवेल खोदे जाने से भूमि का जलस्तर हर साल नीचे जा रहा है। भूमि, वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण की हालात बदतर है। इन सब कारणों से तापमान बढ़ रहा है।
वैज्ञानिकों ने समय-समय पर सरकारों और लोगों को आगाह किया है किंतु चिंता की बात यह है कि पर्यावरण संबंधी चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया । वायुमंडल और जलवायु परिवर्तन से भविष्य में जीवन पर पडने वाले दुष्प्रभावों पर गहन चिंतन की आवश्यकता है। हालांकि जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए पिछले दशकों में लोगों की आवश्यकताये बढ़ी हैं। मांग की पूर्ति के लिए औद्योगिक विस्तार किया जाने लगा । नवाचार को बढ़ावा दिया गया । बिजली आपूर्ति के लिए थर्मल पावर स्टेशन स्थापित किए जाने लगे। तेल, गैस और कोयले की खपत बढ़ी । जीवाश्म ईंधन उपयोग बढा। इस बीच उपभोक्तावादी संस्कृति पनपी। वाहनों की संख्या बढ़ने और उद्योगों से होने वाले प्रदूषण ने गर्मी को बढ़ाया है। इसके अलावा गर्मी के दिनों में अनेक राज्यों में जंगल में आग लगने की घटनाएं होती हैं । उत्तराखंड का ताज़ा उदाहरण हमारे सामने है। हर साल इससे सैकड़ो पेड़ नष्ट हो जाते हैं । खेतों में नरवाई जलाने की घटनाएं हर साल होती है । इससे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट और तरल रसायन जलाशयों, नदियों और आसपास की भूमि को प्रदूषित कर रहे हैं।
यह सत्य है की धरती सबका पेट पाल सकती है, लेकिन एक लालची का नहीं । मनुष्य की लालची प्रवृत्ति और दूषित मानसिकता ने समस्या को और गहरा कर दिया है। प्राकृतिक संसाधनों का हमने बेतहाशा दोहन किया। इसे विकास का मॉडल बताया, जबकि इससे प्रदूषण अधिक हुआ। हमें पर्या मित्र समावेशी विकास का रास्ता चुनना था, जबकि ऐसा नहीं हुआ। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये बिना उत्पादन के मॉडल को अपनाने के स्थान पर हमने असंतुलित उत्पादन को अपनाया। इसके दुष्प्रभाव हम सबके सामने हैं। नगरीय विकास के साथ-साथ दूरसंचार क्रांति आई है। हर जगह ऊष्मा उपयोग हो रहा है।
दूरसंचार के टावर लगने से कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल सभी में ऊष्मा का संचार हो रहा है। ऊष्मा का संचार करने वाली हर छोटी बड़ी इकाई वायुमंडल में ताप बढाती है । साथ ही एसी और रूम हीटर का उपयोग भी बढ़ रहा है। इसके साथ ही शहरों और ग्रामीण अंचलों में हरियाली लगातार काम हो रही है । इन सब कारणों से वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ोतरी हो रही है।
विश्व में शांति होगी तो पर्यावरण शुद्ध होगा। युद्ध की स्थिति में हथियारों के असीमित निर्माण की होड़ बनी रहेगी। विश्व में जहां भी युद्ध हुए हैं, हो रहे हैं या भविष्य में होंगे, हथियारों, मिसाइलों और विस्फोटकों का प्रयोग होगा। इससे वायुमंडल प्रदूषित होगा। इस तरह देखा जाए तो वायु प्रदूषण बढ़ने की एक वजह है युद्ध भी है ।
विश्व के कई देशों के अनेक भागों में ग्लेशियर हैं। जब गर्मी बढ़ती है तो यह ग्लेशियर पिघलाकर जल बनाते हैं। यह जल नदियों के माध्यम से समुद्र में जाता है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इन ग्लेशियर के पिघलने में तेजी देखी जा रही है । यह छोटे द्वीपों और समुद्र किनारे पर बसे देशो के लिए खतरे की घंटी है। समुद्र का जलस्तर बढ़ता है तो सुंदरबन जैसे क्षेत्र और उड़ीसा के तटीय समुद्री क्षेत्र की बसाहट पर भी खतरा आ सकता है। मुंबई महानगर के बारे में तो वैज्ञानिकों ने पूर्व में कई बार चेताया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि हिमालय से जुड़ी कई नदियों के जलस्रोत यह ग्लेशियर ही हैं। यदि ग्लेशियर कम हुये या खत्म हुए तो इन सदानीरा नदियों के प्रवाह पर भी असर पड़ेगा। नदियां सूखीं तो मनुष्य सहित अनेक जीव जंतुओं का जीवन खतरे में होगा।
यह सत्य है कि पृथ्वी के ताप को कम किए बिना समाधान संभव नहीं है। समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के लिए हमें कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना ही होगी। हमें अपनी जीवनशैली प्रकृति मित्र बनाना होगी। ग्रीन टेक्नोलॉजी को अपनाना होगा। हालांकि कई सर्वेक्षण में सामने आया है कि लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। यह अच्छी बात है कि व्यापक स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं। इसके बावजूद हमें बड़े स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। इस विषय में केवल सरकारों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। पर्यावरण संरक्षण के लिए जनभागीदारी और मीडिया की जिम्मेदारी भी बनती है । यह समझने की आवश्यकता है कि धरती मात्र एक भूभाग नहीं ,अपितु हमारी मातृभूमि है । इसकी रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
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