गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 43-47 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से
प्रकरण-43
राजगृह की ओर लौटने के क्रम में शाक्यों परिवारों से एक-एक सदस्य संघ में सम्मिलित हो गए, तथागत ने उपाली नाई व अन्य युवकों को प्रव्रजित किया
शाक्यों ने तथागत का स्वागत किया तथा अनेक परिवारों से एक-एक सदस्य संघ में सम्मिलित हो गए। शाक्य जनपद में अमृतौदन के दो पुत्र अनुरूद्ध और महानाम थे। अनुरूद्ध संघ में शामिल होने हेतु माँ से आज्ञा लेने गया। माँ ने कहा यदि भद्दिय-शाक्य राज अपना राज्य छोड़कर संघ में चला जाय तो तुम भी संघ में शामिल हो सकते हो।
अनुरूद्ध ने भद्दिय को मना लिया। उनके साथ अनुरूद्ध, आनन्द, भृगु किम्बिल तथा उपाली नाई भी राजगृह की ओर तथागत के लौटने पर चल पड़े। उन्होंने उपाली को अपने गहने तथा वस्त्र दे कर कपिलवस्तु लौट जाने को कहा। किन्तु वह उनके पीछे-पीछे चलता रहा। तथागत ने पहले उपाली नाई को तथा बाद अन्य युवकों को प्रव्रजित किया।
प्रकरण-44
शुद्धोदन का पुत्र प्रेम फिर जाग उठा,बुद्ध से गृहस्थ जीवन जीने का आग्रह किया गया, तथागत ने अनिवार्य वियोग स्पष्ट कर, सदमार्ग का उपदेश दिया है
शुद्धोदन का पुत्र प्रेम फिर जाग उठा। उसने उदायी महा तथा पुरोहित को भेजा कि वे बुद्ध को लौटा लाए और गृहस्थ जीवन जीने का आग्रह करें। दोनों चल पड़े और मार्ग में ही तथागत से भेंट की। उन्होंने राजा शुद्धोदन की इच्छा बुद्ध के सामने प्रकट की। दोनों ने हर प्रकार से उन्हें समझाने का प्रयत्न किया। यशोधरा, राहुल, शुद्धोदन, प्रजापति की दशाओं का वर्णन किया, किन्तु तथागत ने अनिवार्य वियोग को स्पष्ट कर उन्हें संतुष्ट किया। उन्हें सदमार्ग का उपदेश दिया।
प्रकरण-45
तथागत, स्त्रियों को संघ में सम्मिलित व प्रव्रजित होने के लिए आठ नियम बनाए, यशोधरा ने प्रजापति के साथ ही प्रव्रज्या ग्रहण की तथा भद्रा कात्यायना कहलाई
महाप्रजापति गौतमी ने तथागत से संघ में सम्मिलित होने की आज्ञा मांगी। तथागत ने स्त्रियों को संघ में शामिल करने से मना कर दिया। तब प्रजापति बहुत रोई। उसने अन्य स्त्रियों से मंत्रणा की। उन्होंने स्वयं अपने बाल काटे, काबाय वस्त्र पहने और वैशाली के महावन के कुटागार भवन पहुँची।
उसके पाँव चलते चलते सूज चुके थे। उसने तथागत से पुनः निवेदन किया, किन्तु इस बार भी उन्होंने मना कर दिया। तब आनन्द ने भगवान से निवेदन किया। उन्होंने तब भी मना किया। आनन्द ने कारण पूछा और तथागत को अन्ततः आनन्द की बात माननी पड़ी। उन्होंने स्त्रियों को प्रव्रजित होने के लिए आठ नियम बनाए। यशोधरा ने भी प्रजापति के साथ ही प्रव्रज्या ग्रहण की तथा भद्रा कात्यायना कहलाई।
प्रकरण-46
तथागत ने प्रकृति नामक सुन्दर चाण्डाल कन्या ने अपनी भूल स्वीकार करा प्रव्रजित किया
तथागत जेतवनाराम में थे। आनन्द भिक्षार्थ नगर में गया। जब वह पानी पीने नदी पर गया तो प्रकृति नामक एक सुन्दर चाण्डाल कन्या से उसकी भेंट हुई। आनन्द से उससे पानी माँगा। चाण्डाल होने पर भी आनन्द ने उसके हाथ का पानी पिया। प्रकृति उसपर अनुरक्त हो गई। किन्तु आनन्द ने विवाह करने से अस्वीकार कर दिया। प्रकृति ने अपनी माँ मातंगी से जंतर-मंतर चलाने को कहा किन्तु आनन्द अप्रभावित रहा। तब प्रकृति दरवाजा बंद कर अलंकृत होकर उसके पास आई।
फिर भी आनन्द पर प्रभाव न हुआ। मातंगी ने कमरे में जादू-टोने से आग लगा दी। फिर भी वह न माना। तथागत ने जब यह सब सुना तो उसे बुलवा भेजा। उन्होंने प्रकृति को मुण्डन कराने की शर्त रखी। मातंगी ने मना किया किन्तु उसने मुण्डन करा लिया। तथागत ने पूछा तुम आनन्द के किस अंग से प्यार करती हो? प्रकृति ने एक-एक अंग गिनाया और तथागत ने उनको गंदगी का भंडार बताया। प्रकृति ने अपनी भूल स्वीकार की और प्रव्रजित हो गई।
प्रकरण-47-
राजगृह के अत्यंत असंयत आदमी को, श्रावस्ती में तथागत ने बलिकर्म तथा कर्मकाण्ड की निस्सारता का ज्ञान कराकर सत्पथ दिखा अनुयायी बनाया
राजगृह में एक अत्यंत असंयत आदमी रहता था। वह न तो माता पिता का सम्मान करता था न बड़े-बूढ़ों का। वह अपने पापा कर्मों से छूटकारा पाने हेतु सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि देवता की पूजा किया करता था। वह तीन साल तक पूजा पाठ तथा बलिदान आदि करता रहा, किन्तु उसे मानसिक शांति नहीं मिली। अंत में वह श्रावस्ती पहुँचा और तथागत के चरणों में गिर पडा। उनके तेजोमय व्यक्तित्व के दर्शन पाकर उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। तथागत ने बलिकर्म तथा कर्मकाण्ड की निस्सारता का ज्ञान कराकर उसे सत्पथ दिखाया। वह भगवान का अनुयायी बन गया।