@ नई दिल्ली :-
बेंगलुरु में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 09 मार्च, 2025 को कर्नाटक के भारतीय वायु सेना के इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन का दौरा किया। वे इस संस्थान का दौरा करने वाले पहले रक्षा मंत्री हैं। राजनाथ सिंह को भ्रमण के दौरान पायलट प्रशिक्षण, उनके चिकित्सा मूल्यांकन और एयरोमेडिकल अनुसंधान में संस्थान की अद्वितीय भूमिका के बारे में जानकारी दी गई।
रक्षा मंत्री ने लड़ाकू पायलटों के उच्च-जी प्रशिक्षण के लिए उपयोग किए जाने वाले डायनामिक फ्लाइट सिम्युलेटर तथा हाई परफॉरमेंस ह्यूमन सेंट्रीफ्यूज का अवलोकन किया और उड़ान में स्थानिक भटकाव के जोखिम को रोकने के उद्देश्य से सशस्त्र बलों के पायलटों को प्रशिक्षित करने हेतु स्पयल डिसओरिएण्टशन सिम्युलेटर का भी निरीक्षण किया। उन्होंने संस्थान में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद बाह्य शोध परियोजना: उन्नत अनुसंधान केंद्र का भी शुभारंभ किया। इस परियोजना का शीर्षक ‘अंतरिक्ष मनोविज्ञान: भारतीय अंतरिक्ष मिशनों के लिए अंतरिक्ष यात्रियों एवं नामित अंतरिक्ष यात्रियों का चयन और व्यावहारिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण’ है।
राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में हवाई एवं अंतरिक्ष यातायात में निरंतर वृद्धि को देखते हुए एयरोस्पेस चिकित्सा में विशेषज्ञता की बढ़ती आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष, रक्षा के दृष्टिकोण से युद्ध में एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभरा है और हमने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है तथा एंटी-सैटेलाइट जैसी सबसे उन्नत तकनीकों में महारत हासिल की है। रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता विमानन बाजार भी बन गया है। चूंकि हम अंतरिक्ष में नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं, इसलिए हमें एयरोस्पेस चिकित्सा में और अधिक संभावनाएं तलाशने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान एवं विकास में वृद्धि की आवश्यकता है, क्योंकि किसी भी उच्च स्तरीय जटिल प्रौद्योगिकी में अनुसंधान से कई क्षेत्रों को लाभ मिलता है।
रक्षा मंत्री ने एयरोस्पेस चिकित्सा के महत्व को रेखांकित करते हुए इसे सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण, विकिरण और अंतरिक्ष में मानव द्वारा सामना किए जाने वाले अलगाव जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण बताया, साथ ही उन्होंने शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों के समाधान का भी जिक्र किय। सिंह ने कहा कि चाहे वह न्यूरॉन्स से संबंधित मुद्दा हो, हड्डियों का नुकसान हो या मानसिक समस्याएं हों, इन चुनौतियों से निपटना एयरोस्पेस व अंतरिक्ष चिकित्सा क्षेत्र की जिम्मेदारी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस क्षेत्र को भविष्य में बड़ी जिम्मेदारियों के लिए खुद को तैयार करना होगा।
राजनाथ सिंह ने एयरोस्पेस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने में इस संस्थान के योगदान की सराहना की। एयरोस्पेस मेडिसिन के अलावा, इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन क्रू मॉड्यूल डिजाइन और विकास के विभिन्न पहलुओं में एयरो-मेडिकल परामर्श प्रदान करता है। इसका कॉकपिट डिजाइन में योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने कहा कि संस्थान ने उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर, हल्के आधुनिक हेलीकॉप्टर, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर और हल्के लड़ाकू विमान तेजस के डिजाइन एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रक्षा मंत्री ने कहा कि यह देश के सबसे आधुनिक उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान के डिजाइन और विकास में भी सलाह दे रहा है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि आने वाले समय में एयरोस्पेस क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिलेगी और यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र तकनीकी प्रगति, राष्ट्रीय सुरक्षा व आर्थिक विकास को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। इसके अलावा, इसकी उपग्रह प्रक्षेपण, अंतर-ग्रहीय मिशन और वाणिज्यिक अंतरिक्ष सेवाओं जैसे लक्ष्य हासिल करने में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी रहेगी।
इस यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री के साथ वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, प्रशिक्षण कमान के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (एओसी-इन-सी) एयर मार्शल नागेश कपूर, चिकित्सा सेवा महानिदेशक (वायु) एयर मार्शल संदीप थरेजा और भारतीय वायुसेना के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।