गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 30-36 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 30-36 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

प्रकरण-30

राजगृह के वेश्या का पुत्र तथा मगध नरेश बिम्बिसार का राज-वैद्य एवं प्रसिद्ध चिकित्सक जीवक, एक आम्रवन तथागत को दान में दे उनका अनुयायी बन गया

जीवक राजगृह की एक वेश्या का पुत्र था। जिसे कूड़े के ढेर पर फेंक दिया था। राजकुमार अभय ने उसका पालन-पोषण किया। उसने सात वर्षों तक तक्षशिला में विद्यार्जन किया। वह एक प्रसिद्ध चिकित्सक बन गया। उसने साकेत के एक सेठ की पत्नी को ठीक किया। राजा बिम्बिसार को ठीक किया। एक सेठ के खोपड़ी की शल्य चिकित्सा की।

वह राज-वैद्य बना दिया गया। उसकी तथागत में बड़ी आस्था थी। वह उनकी तथा संघ के भिक्षुओं की भी चिकित्सा करता था। एक बार अवंति-नरेश चण्डप्रद्योत को वमन की औषधि देकर उसके क्रोध से बचने के लिए भाग आया। जीवक ने एक आम्रवन तथागत को दान में दिया तथा उनका अनुयायी बन गया।

प्रकरण-31

तथागत ने वैशाली की अनुपम सौंदर्य वाली राज नर्तकी अम्बपाली का भोजन का आमंत्रण स्वीकार किया, भगवान बुद्ध को अम्बपाली ने वैशाली का उद्यान अर्पित कर दी

वैशाली में अम्बपाली नामक एक अनुपम सौंदर्य वाली नर्तकी थी। मगध-नरेश बिम्बिसार अम्बपाली पर मुग्ध था। वह छदमवेश में अम्बपाली से मिलने जाता था। अम्बपाली भी उसे चाहती थी। फलस्वरूप अम्बपाली को एक पुत्र हुआ।

एक बार तथागत अम्बपाली के आम्रवन में ठहरे थे। जब उसे पता लगा तो वह तथागत के पास गई और भोजन का आमंत्रण दे आई। वैशाली के लिच्छवी भी भगवान को आमंत्रित करना चाहते थे। किन्तु अम्बपाली बाजी मार ले गई। लिच्छवियों ने उसे एक लाख कार्षापण देने चाहे किन्तु वह न मानी। उसने भिक्षु-संघ सहित भगवान को भोजन कराया तथा अपना उद्यान उन्हें अर्पित कर दिया।

आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज्जिसंघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवि राजनृत्यांगना थी। अम्बपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था।आम्रपाली ने राजनर्तकी (दरबारी नर्तकी) का खिताब भी जीता। बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करते हुए, वह अरिहंत बन गईं।

प्रकरण-32

देवदत्त, अजातशत्रु का मित्र बन,बदला लेने के लिए बिम्बिसार को पथ से हटाने का षडयंत्र रच, यातनाएं दिलवायी, बिम्बिसार की कारागार में मृत्यु हो गई

देवदत्त एक रात भिक्षुवेश में यशोधरा के शयन कक्ष में जा पहुँचा। उसने यशोधरा का सच्चा प्रेमी हूँ, कहते हुए उससे प्रणय निवेदन किया। यशोधरा ने उसे खूब भली बुरी सुनाई तथा उसे महल से भगा दिया।

वह अजातशत्रु का मित्र बन गया तथा बुद्ध से बदला लेने के लिए पहले बिम्बिसार को पथ से हटाने का षडयंत्र रचा। उसे बेटे द्वारा बंदी बनाकर यातनाएँ दी। उस समय बुद्ध राजगृह के गृद्धकूट पर रहते थे। कारागार की एक खिड़की से वह दिखाई देता था। अजातशत्रु ने उसे भी बंद कर दिया। बिम्बिसार की कारागार में ही मृत्यु हो गई। प्रसेनजित ने बहनोई की मृत्यु का बदला अजातशत्रु को हराकर लिया।

प्रकरण-33

देवदत्त भगवान बुद्ध को मार्ग से हटा, बौद्ध संघ का प्रधान बनने के लिए षडयंत्र रचा,सत्य का आभास होने पर,अजातशत्रु भगवान बुद्ध का अनुयायी बन गया

देवदत्त भगवान बुद्ध को मार्ग से हटाकर स्वयं बौद्ध संघ का प्रधान बनना चाहता था।एक बार भगवान बुद्ध राजगृह के गृद्धकूट पर्वत की छाया में चहल कदमी कर रहे थे, तो उसने ऊपर से एक बड़ा पत्थर उन पर लुढ़का दिया। बुद्ध के पैर में चोट आई।

अजातशत्रु से कुछ आदमी लेकर उन्हें तथागत की हत्या करने भेजा, किन्तु वे भी लौट आए। उन पर नालगिरि नामक हत्यारा हाथी छोड़ा, किन्तु वह भी कुछ न कर सका। अजातशत्रु देवदत्त को पहचान गया। उसने उसकी सहायता बंद कर दी। तब देवदत्त कोशल नरेश प्रसेनजित के पास गया। वहाँ से भी उसे भगा दिया गया। उसकी दशा बहुत दयनीय हो गई। अंत में अजातशत्रु भी भगवान का अनुयायी हो गया।

प्रकरण-34

सुदत्त श्रेष्ठी को भगवान बुद्ध ने भ्रामक धारणाओं से मुक्त किया,परमार्थ भरे जीवन की प्रेरणा पाकर वह भगवान बुद्ध का शरसागति बन गया, उसने भगवान बुद्ध को विहार प्रदान किया

कोसल जनपद की राजधानी श्रावस्ती में सुदत्त नामक श्रेष्ठी रहता था। एक बार वह अपनी ससुराल राजगृह गया। उसका ससुर भी श्रेष्ठी था। उससे प्रेरणा पाकर सुदत्त भगवान बुद्ध के पास पहुँचा।

भगवान बुद्ध ने उसे निर्माणकर्ता, ब्रहमा, आत्मा आदि से संबंधित भ्रामक धारणाओं से मुक्त किया। सुदत्त दरिद्रों को बहुत दान देता था। इसी कारण उसे अनाथपिंडक कहते थे। उसने भगवान से पूछा कि वह क्या करे? तब भगवान ने उसे गृहस्थ रहते हुए जीवन-संघर्ष की प्रेरणा दी। परमार्थ भरे जीवन की प्रेरणा पाकर वह भगवान का शरसागति बन गया। उसने जेलन विहार उन्हें प्रदान किया।

प्रकरण-35

प्रसेनजित को भगवान बुद्ध ने उपदेश दिया,प्रसेनजित आजीवन भगवान बुद्ध के उपासक बन गए

जब प्रसेनजित ने सुना कि भगवान जेतवन पधारे हैं तो वह उनके दर्शनार्थ पहुँचा। भगवान ने उसे उपदेश दिया कि हमारे कर्म हमारे साथ रहते हैं। हमारा ह्रदय मैत्री पूर्ण हो।

दुःखियों की सहायता करे। ठाट-बाट तथा खुशामदियों से दूर रहे। धर्म और सुपथ का विचार करे। अन्याय न करें। प्रज्ञा प्राप्त करे। कामाग्नि से बचे। शुभ कर्म ही करे। बुद्धि संगत व्यवहार तथा सदाचार परायण जीवन व्यतीत करें। राज धर्मों का उल्लंघन न करे। प्रसेनजित आजीवन उनके उपासक बन गए।

प्रकरण-36

रट्ठपाल भगवान बुद्ध का शिष्य बना, कुरू-नरेश राजा रट्ठपाल की बातें सुनकर भगवान बुद्ध के प्रति प्रभावित हुआ

भगवान संघ सहित कुरू-जनपद के थुल्लकोहित नामक निगम में ठहरे थे। वहाँ गृहपति उपदेशामृत पान कर लौट गए। किन्तु रट्ठपाल नाम तरुण भगवान बुद्ध का शिष्य बनने के उद्देश्य से रुक गया। भगवान ने उसे माता पिता की आज्ञा लेकर आने के लिए कहा। माता पिता के मना करने पर उसने कहा कि मैं यहीं पर मर जाऊँगा, यदि आज्ञा न मिली ।

उसे आज्ञा मिल गई। जब वह भिक्षु बनकर अपने ही घर भिक्षार्थ पहुँता तो पिता ने उसे न पहचान कर गालियाँ दी। दासी ने बासी चावल उसके पात्र में डालते हुए उसे पहचान लिया। तब उसके माता पिता दौड़े-दौड़े उसके पास गए तथा घर चलने का आग्रह किया, किन्तु रट्ठपाल ने अस्वीकार कर दिया। दूसरे दिन पिता ने उसे आमंत्रित कर यथेच्छ भोजन कराया।

रट्ठपाल की पत्नियाँ उसके समक्ष आई तो उसने उन्हें, बहनों कहकर संबोधित किया। वे देवियाँ मूर्छित होकर गिर पड़ी। भोजनोपरांत रट्ठपाल कुरू-नरेश के मृगोद्यान पहुँचा। राजा उसे देखने आए तथा समझाने का प्रयत्न किया किन्तु रट्ठपाल की बातें सुनकर वह स्वयं उससे प्रभावित हुआ।

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