वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल की कलम से…
अगर कोई मुझसे पूछे कि देश का सबसे बढ़िया हाईवे कौन सा है तो मैं बेझिझक कह दूँगा : ग्रेटर नोएडा-आगरा -लखनऊ हाई वे।
इस समय दिल्ली से लखनऊ की यात्रा में उसी हाई-वे पर हूँ। आनंद आ रहा है।
मेरे आकलन को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि मैं उन थोड़े से लोगों में से हूँ जिन्होंने देश के लगभग सारे हाई-वे एक या अधिक बार रौंदे हैं।
अभी दो सप्ताह पहले ही कोचीन से दिल्ली तक की यात्रा में केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से गुजरने वाले कई राजमार्गों की यात्रा की है। फिर दिल्ली से कोटद्वार आते जाते ईस्टर्न पेरिफेरियल और मेरठ एक्सप्रेस वे से गुजरा।
विश्वास मानिए बहु प्रचारित ईस्टर्न पेरीफ़ेरियल के कमरतोडू हिचकोलों के बाद यमुना एक्सप्रेस वे पर चलना रेशम के गद्दे पर लोटने जैसा अहसास देता है।
ज़रा सोचिए ईस्टर्न पेरिफेरियल २०१८ में बना जबकि यमुना एक्सप्रेस वे २०१२ में बन गया था। उद्घाटन की जल्दबाज़ी में अच्छे ख़ासे हाई-वे की ऐसी तैसी कर दी। वो अलग क़िस्सा है।फिर कभी।
देश में दूसरा ऐसा कोई हाई वे मुझे तो नहीं मिला जिसमें आप १५०/२०० किलोमीटर तक निरंतर, निर्बाध, बिना हिचकोले खाए चल सकें(टोल नाकों को छोड़कर)- ना कोई कट ना कोई क्रासिंग।
मुंबई- पुणे का हाई-वे भी बहुत अच्छा है लेकिन उसमें भी हर बीस तीस किलोमीटर पर डाईवरज़न मिलते रहते हैं।
१९०/१५० किलोमीटर तक स्पीडोमीटर की सुई लगातार ८०/१०० पर अटकी रहे और हिचकोले ना हों ऐसा हाई-वे तो बस यही है: ग्रेटर नोएडा – लखनऊ हाईवे।
तीस तीस, चालीस चालीस किलोमीटर के टुकड़ों में तो सारे ही हाई – वे ठीक लगेंगे लेकिन सौ दो सौ किलोमीटर तक निर्बाध बिना कमर तोड़े चलना है तो या तो यूरोप जाइए या फिर ग्रेटर नोएडा-आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे में आइये।
दिल्ली से ढाई घंटे में देहरादून और ग्यारह घंटे में मुंबई पहुँचने की बात सालों से सुन रहे हैं। वो जब होगा तब होगा। तब तक के लिए यही हाई- वे है नंबर वन।
PS: लग रहा है कई मित्र कन्फ़्यूज़न में हैं। ये हाई-वे २०१०/१२ का है। आगरा तक मायावती जी के टाइम में बना था और उसके बाद अखिलेश के कार्यकाल में। आज भी एकदम जगमग है।