होंसलो की खुशबु ने भरा जीवन में खुशी का रंग

@ कमल उनियाल उत्तराखंड :

कहते हैं कि अगर हार न मानने की जिद ठान ली जाय तो कुछ भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। चाहे विपरीत से विपरीत परस्थियाँ क्यो नहीं हो जज्बा होंसले और लगन मंजिल हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता एक पैर कटने के बाद भी अपनी मशकबीन की मधुर धुन से शादी मे ऐसी कर्णप्रिय मिठास से सबको मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

यह शख्स है शेखरानंद कन्डवाल जो कि ब्राहमण परिवार में जन्मे ने एक पैर कट जाने के बाद भी अपने दृढ संकल्प, कभी हार नही मानी जिला पौड़ी गढ़वाल के विकास खंड द्वारीखाल ग्राम बनाली निवासी 65 वर्षीय शेखरनंद कंडवाल वह दिन कभी नहीं भूलते जब वे 45 वर्ष पूर्व मात्र 20 वर्ष की आयु में अपने सपने साकार करने गाजियाबाद नौकरी करने गये थे पर रेलवे पटरी पार करते समय ट्रेन हादसे में उनका एक पैर कट गया और शरीर के अन्य अंगो में गम्भीर चोट आ गयी ऐसे में आम आदमी की हिम्मत टूट जाती है पर शेखरानंद ने कभी हार मनाने वाले नही है उन्हें अपनी मिट्टी और भगवान से प्यार था।

करीब एक साल के उपचार के बाद वे कृत्रिम पैर के सहारे चलने लगे उन्होने कुछ बडा करने की ठानी और आजीविका चलाने के लिए मशकबीन बजाना सीखा तो लोगो ने ताने कसने शुरू कर दिये एक पैर से पर्वतीय क्षेत्रों की शादी में मशकबीन के साथ कैसे जायेगा तब के समय में 15से20 किलोमीटर पैदल बरात जाती थी लेकिन अद्वितीय साहस के धनी ने अपनी कमजोरी को ही ताकत बनायी और सामान्य आदमी की तरह ही मसकबीन के सुरीले धुनो के साथ पैदल उँचे नीचे पहाड़ी रास्तो का सफर किया और पहले दिव्यांग मशकबीन वादक वन कर उदाहरण पेश किया कि सच्ची लगन दिव्यांगता को भी मात दे देती है।

शेखरानंद कंडवाल मशकबीन के हुनर से पारम्परिक वादय यन्त्र को भी संरक्षण कर रहे हैं उनके मधुर धुन के मुरीद पहाड़ी क्षेत्रों में ही नहीं मैदानी क्षेत्र के प्रवासी भी है अन्य राज्य में बसे प्रवासी और बडे बडे शख्शियत भी उनके मशकबीन के धुनो के मुरीद है और वे भी अब अपनी संस्कृति से जुड रहे हैं और पहाडी ढोल वादक मशकबीन वादको को शादी बुलाने लगे हैं।

प्रसिद्ध समाजसेवक पूर्व ग्राम प्रधान कादराबाद विजयनगर दर्शन सिह रावत के लडके की भव्य विवाह में शेखरानंद कंडवाल के मशकबीन वादन और पहाड़ी वादययनत्रो की ऐसी मधुर धुन बिखरी की सांसद रूचीवीरा सहित विधायको, उद्योगपति, समाजसेवी कलाप्रेमी भी इनके हुनर के कायल हो गये।शेखरानंद उन लोगो के लिए एक नजीर है जो नाकामी का रोना रोते है।

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