गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 17-20 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 17-20 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

प्रकरण-17

सिद्धार्थ शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार से कष्ट देने वाले तपस्या-विधियों संतुष्ट नहीं हुए, तत्पश्चात सांख्य-दर्शन का रहस्य जानने हेतु आलार-कालाम के आश्रम की ओर चल पड़े

सिद्धार्थ अन्य पथों का परीक्षण करने के उद्देश्य से राजगृह से भृगु आश्रम पहुँचा। वहाँ उसने अपने शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार से कष्ट देते हुए ऋषियों की तपस्या-विधियों का अवलोकन किया जैसे- पक्षी की भांति दाना चुगना, हिरणों की तरह घास चुगना, साँपों की तरह वायु-सेवन, पत्थरों से पोषण प्राप्त करना, सिर्फ दाँतों से ही पीसकर अन्न खाना, पानी में जटाओं को निरन्तर भिगोए रखना, मछली की तरह पानी में डूबे रहना। यह सब देखकर सिद्धार्थ संतुष्ट नहीं हुए और वहाँ से वे सांख्य-दर्शन का रहस्य जानने हेतु आलार-कालाम के आश्रम की ओर चल पड़े।

प्रकरण-18

सिद्धार्थ ने आलार-कालाम से सांख्य-दर्शन सीखा

आलार-कालाम का आश्रम वैशाली में था। सिद्धार्थ वहाँ पहुँचा। उसने आलार-कालाम से सांख्य-दर्शन सीखा। सिद्धार्थ ने ध्यान-मार्ग की विधियाँ भी उन्हीं से सीखीं। जब उसने वहाँ की समस्त विघाएँ सीख ली तो वह वहाँ से भी आगे चल पड़ा।

प्रकरण-19

सिद्धार्थ उद्दक रामपुत्त नामक योगी के आश्रम पहुँच योग की व ध्यान की अनेक क्रियाएँ सीखी

आलार-कालाम से विदा लेकर सिद्धार्थ उद्दक रामपुत्त नामक योगी के आश्रम पहुँचा। वहाँ उसने योग की व ध्यान की अनेक क्रियाएँ सीखी।ध्यान की अन्य विधियों को सीखने के लिए वह मगध पहुँचा। वहाँ उसने ध्यान की सवर्धा भिन्न विधि भी सीख ली। इस विधि के करने में उसे बहुत कष्ट होता था।

प्रकरण-20

सिद्धार्थ ने कष्टदायी तपस्याएँ की,अत्यंत दुर्बल सिद्धार्थ को सुजाता ने खीर खिलाई

भृगु आश्रम में विभिन्न प्रकार की तपस्याओं का अवलोकन तो सिद्धार्थ ने किया था, किन्तु उनका परीक्षण नहीं कर पाया था। एतदर्थ वह गया पहुँचा। वहाँ उरूवेला में राजऋषि , नेंगरी का आश्रम था।

यह आश्रम नेरंजरा नदीं के तट पर था। वहाँ उसे पाँच ब्राहमण मिले। वे भी उसके साथ हो लिए। सिद्धार्थ की तपस्या तथा आत्म क्लेष की प्रक्रिया अत्यन्त उग्र रूप की थी। अत्यंत अल्पाहार, टाट के वस्त्र, सिर व दाढ़ी के बाल नोचना, बैठे-बैठे आगे सरकना जैसी अनेक कष्टदायी तपस्याएँ उसने की। वह अत्यंत दुर्बल हो गया था।

किन्तु इन सबसे उसे संतुष्टि नहीं मिली। उसने पुनः अन्न ग्रहण करना प्रारंभ कर दिया। सुजाता ने स्वयं उसे खीर खिलाई। उसे भ्रष्ट मार्गी हुआ सोचकर पाँचों ब्राहमण साथी उसका साथ छोड़ गए।

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