गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 37-42 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 37-42 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

प्रकरण-37

श्रावस्ती के पूर्व में उत्तरवती नामक नगर के पाँच सौ ब्राह्मणों ने तथागत की शरण ली

गंगातट पर एक निर्ग्रन्थ तपस्वी शरीर पर धूल आदि लपेटे रहता था। श्रावस्ती के पूर्व में उत्तरवती नामक नगर के पाँच सौ ब्राहमण उस ऋषि के पास जा रहे थे। जंगल में वे प्यास से तड़पने लगे। एक वृक्ष देवता ने उन्हें खाना-पीना दिया।

पूछे जाने पर वृक्ष देवता ने बताया कि उसने जेतवन में भगवान का उपदेश सुना था, किन्तु सुबह घर लौटा तो पत्नी ने उसे भला-बुरा कहा। वह प्रतिवाद न कर सका। इसी कारण इस जन्म में वृक्ष बना। उसकी बातें सुनकर सारे ब्राह्मणों ने तथागत की शरण ली।

प्रकरण-38

तथागत ने कहा है -‘‘हमारे प्रियजन शोक, संताप, कष्ट, दुःख और अनुताप का कारण होते है’’।

भगवान श्रावस्ती के जेतवन में ठहरे हुए थे। उसी समय एक गृहस्थ का प्रिय पुत्र मर गया। वह पुत्र शोक से पागल सा हो गया। जब वह तथागत के पास गया तो तथागत ने कहा-‘‘हमारे प्रियजन शोक, संताप, कष्ट, दुःख और अनुताप का कारण होते है’’। गृहपति इस बात से असंतुष्ट इसे, उसे बताता रहा कि तथागत ऐसा कहते है। बात राजा के रनिवास तक पहुँची।

रानी मल्लिका ने राजा को बताया। राजा यह सुनकर क्रुद्ध हो उठा। तब मल्लिका ने एक ब्राह्मण को तथागत के पास भ्रम निवारणार्थ भेजा। तथागत ने अनेक उदाहरण दिए जिससे सिद्ध होता था कि प्रियजन संताप के कारण होते है। रानी ने राजा को उदाहरण देकर समझाया तब राजा को भी विश्वास हुआ कि तथागत ठीक ही कहते है।

प्रकरण-39

निर्वस्त्र भिक्षुओं की वृत्तांत सुनकर विशाखा ने तथागत से आठ वर माँगे, तथागत ने गौतमी को दिया – -जन्म -मृत्यु के सच्चाई का ज्ञान

विशाखा श्रावस्ती की एक बड़ी धनी महिला थी। उसने तथागत को संघ सहित भोजन के लिए आमंत्रित किया। उस रात बहुत वर्षा हुई। भिक्षुओं ने अपने चीवर भीगने से बचाने के लिए उतार दिए। जब विशाखा की नौकरानी उन्हें बुलाने गई तो भिक्षुओं को निर्वस्त्र देख लौट आई। उससे वृत्तांत सुनकर विशाखा ने तथागत से आठ वर माँगे।

1. वर्षावास में आजीवन चीवर दान

2. बाहर से आने अथवा जाने वाले भिक्षुओं को भोजन

3. रोगियों को भोजन

4. रोगी भिक्षुओं को दवा

5. रोगियों की सेवा करने वालों को भोजन

6. भिक्षुओं को खीर दान,

7. भिक्षुणियों को वस्त्र दान,तथा

8. रोगी भिक्षुओं की रक्षा सर्वोपरि हो

कृवा गौतमी के प्रिय पुत्र का देहांत हो गया। वह तथागत के पास उसे जीवित कराने की प्रार्थना करने गई। तथागत ने कहा कि तुम किसी ऐसे घर से सरसों के दाने लाओ जिस घर में कभी किसी की मृत्यु न हुई हो। वह दर-दर घूमी तब उसे सच्चाई का ज्ञान हुआ।

प्रकरण-40

तथागत ने श्रावस्ती के नीच जाति के सुणीत, सुप्पीय व सोपाक के साथ-साथ सुमंगल, छन्न, धनिय, कप्पत-कुर को संघ में प्रवेश दिया

राजगृह में सुणीत नाम का भंगी था। जब तथागत एक मार्ग से भिक्षुओं के साथ जा रहे थे। सुणीत उन्हें देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ किन्तु डरकर दीवार से सटकर खड़ा हो गया। तथागत उसके पास गए और उसे प्रव्रजित किया।

श्रावस्ती में एक अछूत महिला प्रसव वेदना से बेहोश हो गई। उसे मरा जानकर चिता पर रखा ही था, कि वर्षा होने लगी। लोग उसे छोड़ कर चले गए। उसने एक बच्चे को जन्म दिया और स्वर्ग सिधार गई। श्मशान के रखवाले ने अपने पुत्र सुप्पीय के साथ उसे पाला उसका नाम सोपाक रखा गया। एक दिन तथागत को देख उसने संघ में प्रविष्ट होने की आज्ञा माँगी। पिता की आज्ञा पाकर सुप्पीय तथा सोपाक संघ में प्रविष्ट हुए।

श्रावस्ती के ही सुमंगल, छन्न, धनिय, कप्पत-कुर नीच जाति के थे, जिन्हें तथागत ने संघ में प्रवेश दिया।

प्रकरण-41-

तथागत पितृ-गृह कपिलवस्तु गए,उद्यान में ठहरे,पिता राजा शुद्धोदन को शुद्धाचरण का उपदेश दिया

पिता का संदेश पाकर भिक्षु संघ सहित तथागत पितृ-गृह कपिलवस्तु गए।राजा शुद्धोदन उन्हें देखकर गदगद हो गए। राजा ने अपना राज्य पुनः उसे देना चाहा, किन्तु उपदेश सुनकर वह संतुष्ट हुआ। तथागत उद्यान में ही ठहरे।

दूसरे दिन वे भिक्षा पात्र ले नगर में निकले। पूरे नगर में बात फैल गई। राजा घबराया, उनके पास पहुँचा तथा भिक्षा न माँगने का अनुरोध किया किन्तु तथागत ने कहा- भिक्षु वंश तो भिक्षाटन करता ही है और तब उन्होंने शुद्धोदन को शुद्धाचरण का उपदेश दिया।

प्रकरण-42

यशोधरा की वेदना, वचनों से परे की बात थी,उत्तराधिकार माँगने पर सात-साल के राहुल को तथागत ने उसकी इच्छानुसार भिक्षु संघ में शामिल किया।

राजा शुद्धोदन, तथागत को घर ले गया। सभी संबंधियों से भेंट कर वे यशोधरा के कक्ष में गए। यशोधरा उनके चरणों पर गिरकर जोर-जोर रोने लगी। राजा शुद्धोदन ने कहा-‘‘जब से तुम गए हो तब से यह भी तपस्वियों का ही जीवन जी रही है’’।

यशोधरा की वेदना, वचनों से परे की बात थी। उसने सात-साल के राहुल को तथागत के पास अपना उत्तराधिकार माँगने भेजा। तथागत ने उसे उसकी इच्छानुसार भिक्षु संघ में शामिल कर लिया।

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